रात के समय श्री जगन्नाथ और रघुदास की बातचीत: कटहल चोरी की कहानी
एक बार रात के समय जगन्नाथ अपने भक्त रघुदास जी के पास आते हैं जो जगन्नाथ पुरी में ही रहते हैं ओर कहते है रधु चलो आज हम राजा के बागीचे से कटहल चुराते हैं या फिर हम दोनों मिलकर उसका पान करेंगे |
जगन्नाथ जी की बात कर के रघु ने कहा लेकिन आपको कटहल चुराना क्यू है ? यदि तुम कटहल खाना चाहते हो तो मैं राजा से कहकर आपके लिए कटहल लाऊंगा। लेकिन यह सुनकर जगन्नाथ जी ने कहा- नहीं रघु ऐसे तो मुझे हर दिन सभी चीज मिलती है
जगन्नाथ और रघुदास: माखन की चोरी की राह में एक अनूठा किस्सा
ऐसे तो मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं ऐसे तो मेरी मैया यशुदा मेरे लिए इतना माखन मलाई बनती है तो खिलती है लेकिन फिर भी माई गोपियों के घर माखन चुराने जाता हूं | पता है क्यू क्यूकी चुराके खाने में जो आनंद आता है उसका स्वाद ही कुछ अलग है | इस आनंद असानी से मिलने वाली चीज़ो में नहीं मिलता, इसलिए मैं चाहता हूं आज मैं तुम्हें भी इस आनंद की अनुभूति कराऊं |
रघुदास ने कहा नहीं, मुझे ऐसी कोई अनुभूति नहीं करनी, अगर राजा को इस बात का पता चल जाए तो वह आपको कुछ नहीं कहेगा, लेकिन मेरा क्या होगा ये सोचा आपने, रघुदास जी के बार बार मना करने पर भी जगन्नाथ जी उन्हें कटहल चुराने के लिए विवश करने लगे |
रघुनाथदास जी के साथ भगवान जगन्नाथ की कटहल चुराई कहानी
आख़िरकार रघुदास जी क्या करते थक हार कर भगवान जगन्नाथ की बात मनानी पड़ी | और फिर क्या था भगवान जगन्नाथ या रघुनाथदास जी चल पड़े राजा के बाग से कटहल चुराने दोनों बगीचे में पहुँच जाते है | और एक बड़े पेड़ को देखते हुए जगन्नाथ जी बोलते हैं देखो रघु ये पेड़ कितना विशाल है कितने सुंदर कटहल लगे हैं इसपर तुम इस पेड़ पर चढ़ जाओ |
मैं यहां नीचे खड़ा हूं तुम ऊपर से कोई अच्छा वाला फल टूटकर नीचे फेक देना, और नीचे से मुझे पकड़ लूंगा या फिर तुम नीचे आ जाना धीरे से फिर हम यहाँ से भाग जायँगे | अब रघुदास जी इसमें क्या बोलते भगवान तो पहले से ही इन सब कामो में प्रवीण है माखन चुराना हो कटहल चुराना हो या अपने भक्तों का मन उनसे अच्छा कोन जानता है |
फिर क्या था रघुदास जी कह गए कटहल के पेड़ पर उन्हें एक अच्छा बड़ा सा एक कटहल तोड़ लिया ओर नीचे आवाज लगाई जगन्नाथ क्या आप तैयार हो मैं फल नीचे फेक रहा हूं उसे पकड़ लेना | जगन्नाथ जी ने कहा हां हां मैं यहीं पर हूं तुम फेंको उसे पकड़ लूंगा ये सुनकर रघुदास ने तो फल नीचे फेंक दिया |
लेकिन जैसे ही रघु ने फल फेका लेकिन वहा भगवान जगन्नाथ तो थे ही नहीं ओर फल जमीन पर जा गिरा और दो हिसो में टूट गया |
राजा के सिपाहियों का आश्चर्य
जब राजा के सिपाहियों ने ये आवाज़ सुनी तो उन्हे पता चल गया कि जरूर कोई कटहल चुराने आया है वे सब दौड़ते हुए वहां आ गए |
सिपाहियों को ये देख बहुत हैरानी हुई उन्होंने देखा एक बड़ा फल नीचे गिरा पड़ा है ओर रघु जी के ऊपर बैठे हैं सिपाहियों ने तूरंत जाकर राजा को सुचना देते होये कहा, आपको सुचित करना पड़ रहा है की आपके बगीचे में आज रघुदास कटहल का फल चुराने आए थे ओर अभी भी वो पेड़ पर बैठे हैं |
“रघुदास जी के चरणों में: भगवान जगन्नाथ के नाम पर कटहल का बगीचा”
यहां सुनकर राजा को भी बहुत आश्चर्य हुआ कि रघुदास जी कटहल चुराने कैसे आ सकते हैं ऐसा सोचते होए राजा तूरंत वहा पहुंच गए | जब राजा ने जा कर देखा तो रघु जी अभी भी पेड़ पर ही बैठे थे राजा ने रघुदास जी को नीचे आने के लिए कहा, फिर राजा ने उनसे पूछा कि मेरे प्रिय गुरु भक्त रघुदास जी अगर आपको कटहल खाने की इच्छा थी |
अपने इतनी रात को मेरे बगीचे में आने का कष्ट क्यों किया अगर आप कहते तो मै ये फल आपकी कुड़िया में भेजवा देता | अब रघुदास जी क्या उत्तर देते उन्होंने राजा को जगन्नाथ जी की सारी बात बताई | कि किस प्रकार जगन्नाथ जी ने उन्हें चोरी करने के लिए कहा था और फिर वो खुद मुझे यहाँ अकेला छोड़ गायब हो गए | राजा और सिपाही सभी लोग हसने लगे सभी लोगो ने जगन्नाथ और रघु जी की इस लीला का आनद लिया |
राजा भव विभोर होकर रघुदास जी के चरण में पड़ गए और अपने इस बात से खुश होकर की भगवान को मेरे बगीचे के कटहल इतने पसंद है उन्हें पूरा बगीचा भगवान जगन्नाथ जी के नाम कर दिया | और आज ही जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ को उस बगीचे के कटहल का भोग लगता है |
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