राजा बलि जी की कथा- भगवान वामन की दानि शिरोमणि बलि पर कृपा | Raja Bali Bhakt Katha- 2023

राजा बलि की उत्पत्ति कैसे हुई ?

प्रह्लाद जी के पुत्र विरोचन थे, और विरोचन के पुत्र दानि शिरोमणि महाराज बलि बने थे। वे दैत्य कुल से आए थे, लेकिन वे भगवद्भक्ति में महान थे, और वे दान करने में भी अग्रणी थे। वे बहुत प्राचीन और दीर्घायु थे।

उन्होंने अपनी शक्ति से दैत्यों, दानवों, मानवों और देवताओं को जीत लिया। वे तीनों लोकों के अधिपति थे। इंद्र को स्वर्ग के सिंहासन से हटा दिया था, और महाराज बलि का राज्य सब जगह था। वे बड़े धार्मिक थे और साधुओं की सेवा करने के लिए प्रसिद्ध थे।

भगवान वामन ने अवतार लिया |

एक समय की बात है, जब देवताएं भगवान से एक वरदान माँगा। इन देवताओं की मां अदिति ने एक खास व्रत किया। खुश होकर भगवान ने उसे वरदान दिया कि वे उनकी माता के गर्भ से ही पुत्र रूप में पैदा होंगे, और उनके बेटों का संकट दूर करेंगे।

कुछ समय बाद, भगवान ने अदिति के गर्भ में अवतार लिया। वह अवतार छोटा और प्यारा था, और इंद्र के छोटे भाई के रूप में प्रकट हुए। उन्हें ‘वामन’ और ‘उपेन्द्र’ कहा गया। इससे सभी देवताएं बहुत खुश हुईं क्योंकि उनका गया हुआ ऐश्वर्य फिर से वापस आ गया।

महाराज बलि की परीक्षा के लिए वामन भगवान् ब्रह्मचारी का वेष धारण |

महाराज बलि तीनों लोकों के स्वामी बनकर एक यज्ञ कर रहे थे। एक दिन, वामन भगवान् ने एक ब्रह्मचारी के रूप में महाराज बलि के यज्ञ मण्डप में प्रकट होकर आए। बलि महाराज ने उन्हें शास्त्रों के अनुसार पूजा की, अर्घ्यपाद्य दिया, और गोदान किया। फिर महाराज ने वामन भगवान् से कहा, “आप एक ब्रह्मचारी हैं, कृपया मुझसे जो भी चाहें, वह मांगें। आपके माँगने पर मैं सब कुछ दे सकता हूँ, निःसंकोच होकर आप माँगें मेरे यहाँ से कोई ब्राह्मण विमुख होकर नहीं जाता।

बलि से तीन पग भूमि दान में भगवान वामन ने तीनों लोकों को नाप लिया |

वामन भगवान ने कहा, “मुझे किसी चीज की आवश्यकता नहीं है, मैं बस तीन पग ज़मीन पर बैठने के लिए चाहता हूँ। और मेरी ज्यादा इच्छा नहीं है।” बलि ने बहुत समझाया कि “कल्पवृक्ष के नीचे बैठकर भी आप एक दिन का अन्न ही चाहते हैं। मैं त्रिलोकों का राजा हूँ, कुछ और मांगिए।” राजा ने कई बार प्रयास किया, लेकिन वामन भगवान ने कुछ और नहीं मांगा। वे सिर्फ तीन पग पृथ्वी पर ही ठहरे रहे। आखिरकार राजा ने कहा, “ठीक है, मैं आपको दे दूंगा।”

इस पर बलि के गुरु भगवान शुक्राचार्य ने उसे समझाया कि ‘वो वामन रूप में आए हुए व्यक्ति भगवान हैं, जो तीन पग में तीनों लोकों को छू सकते हैं। तुम उसे कुछ न देने की बात मत कहो।’

बलि ने कहा, ‘पहले, हमें किसी बात को कहकर फिर से वापस लेना ठीक नहीं है, और ब्राह्मण के सामने इसे कहना भी गलत है। सबसे अच्छा है कि हम मान लें कि वह वामन रूप में ही भगवान हैं, तो हमें उनके दिये गए दान को स्वीकार करना चाहिए। मैं इस यज्ञ को भगवान के प्रसन्न होने के लिए कर रहा हूँ, और अगर वह साक्षात् भगवान हैं तो मेरे लिए यह एक बड़ी कृति होगी। मैं उसका दिया हुआ वचन जरूर पूरा करूँगा।’

जब गुरु ने उन पर क्रोध किया और उन्हें शाप दिया, तो भी वे अपने निश्चय से हिल नहीं गए। वामन रूप धारी वे भगवान थे। उन्होंने एक पग में पृथ्वी और दूसरे में स्वर्ग नाप लिया और तीसरे पग में बलि को बंध लिया। बलि तनिक भी विचलित नहीं हुए। उनके सैनिक तथा जाति वाले तो क्रुद्ध भी हुए, किंतु बलि ने

जन्म सुंदर कुल में, अच्छे कर्मों के साथ, युवावस्था में, आकर्षक रूप में, शिक्षा के साथ, अधिक धन और संपत्ति प्राप्त करने के बाद भी जिसकी गर्व नहीं होती, उसको हम भगवान कहते हैं।

सभी को समझाते हुए, वह भगवान से बोले, ‘भगवान!- ‘ब्रह्मन् ! दातव्य वस्तु से वस्तु का दाता बड़ा होता है, अतः तीसरे पैर में आप मेरे शरीर को ले लीजिये।’

भगवान वामन ने राजा बलि को क्यों बाँधा |

महाराज के अद्वितीय त्याग को देखकर, सभी देवता वहाँ पहुंच गए। ब्रह्मा जी ने भगवान से पूछा, “भगवन, एक शुभ काम करने पर शुभ फल क्यों नहीं मिला? इसने यज्ञ किया, दान दिया, फिर भी इसे बंधवाया क्यों गया?”

इस पर भगवान ने कहा, ‘ब्रह्मन! जिस पर मैं कृपा करता हूँ, मैं उसका पहले सब धन हर लेता हूँ, फिर चाहे उसको सम्पूर्ण संपत्ति देने का वचन दे दूँ। यह मेरी अनुग्रह है। बलि मेरा बहुत भक्त है, और उसका दुर्भाग्य कभी नहीं होगा। देवताओं के ऐश्वर्य से भी बढ़कर, मैं उसे पाताल के ऐश्वर्य का अनुभव कराऊंगा, जो बहुत ही दुर्लभ है। एक बार उसकी इंद्र बनने की इच्छा थी, और मैं उसकी इच्छा को पूरा करके उसे अपने धाम में ले जाऊंगा।’

महाराज बलि के त्याग और संयम को देखकर भगवान् खुश हुए और बोले, “राजा! तुम जो भी चाहते हो, वह वरदान मुझसे मांगो।”

महाराज ने कहा, “भगवान! मेरे पास सांसारिक चीजों की जरूरत नहीं है, मैं तो बस आपको चाहता हूँ। मेरी इच्छा है कि आप हमेशा मेरे पास रहें।”

भगवान हँसने लगे और सोचने लगे, ‘मैं सोचता था कि मैंने इसे बाँध लिया है, लेकिन अब पता चला कि वही ने मुझे बाँध लिया है।’ भगवान हमेशा अपने भक्तों के प्यार में रंगा हुआ है। उन्होंने कहा, ‘अब से मैं हमेशा तुम्हारे द्वार के पालक रहूँगा।’

भगवान् आज तक राजा बलि दरवाजे पर एकरूप से द्वारपाल बने खड़े हैं |

भगवान से मिलकर बलि खुश हो गए और सुतल लोक में चले गए। वहाँ पर भगवान विष्णु के द्वार पर एकरूप से द्वारपाल बने हुए हैं। इससे हमें दिखाई देता है कि भगवान की प्रेम भक्तों के लिए अत्यधिक है और वे अपनी भक्तों के सर्वस्व का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण हैं।

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