भगवान विष्णु के वराह अवतार की कहानी कथा
श्री वराह अवतार, हिन्दू धर्म में दसावतारों में से एक है जो भगवान विष्णु का तीसरा अवतार माना जाता है। इस अवतार में, भगवान विष्णु ने वराह रूप धारण किया था, जिसका उद्देश्य भूमि को रक्षा करना था।
अनुसार पुराणों के अनुसार, वराह ने भूमि को हिरण्याक्ष नामक दानव की छवि से मुक्त करने के लिए अपने कंधों पर लेकर पारिणामिक रूप से इसको समुद्र से उठाया था। इस अवतार के माध्यम से, विष्णु ने धरती को सुरक्षित किया और अधर्म का नाश किया।
स्वायम्भु मनु, जिन्होंने ब्रह्मा की आज्ञा से पृथ्वी के सृजना का काम शुरू किया, ने पृथ्वी को प्रलय के जल में डूबते हुए देखा। उन्होंने भगवान से प्रार्थना की कि कृपा करके पृथ्वी को उद्धार करें, ताकि वह और उनकी प्रजा यहाँ निवास कर सकें।
ब्रह्माजी थे ही हैरान, क्योंकि पृथ्वी तो बहुत गहरे जल में चली गई थी, और उसे बाहर निकालना मुश्किल था। तभी उन्होंने भगवान विष्णु की शरण ली।
इस समय, ब्रह्मा जी की नाक से एक छोटे से अंगूठे के बराबर वराह का रूप निकल आया, और वह तुरंत बड़े पर्वत के समान विशाल गजराज के रूप में परिणत हो गए।
श्री वराह अवतार वराह भगवान गर्जने लगे। उनका शरीर बहुत कठोर था, उस पर बाल थे, सफेद दाढ़ी थी, और उनकी नेत्रों से तेज ज्यों कि बिजली बरस रही थी। उनकी दाढ़ें भी बड़ी कठोर थीं। फिर, वह अपने वज्रमय पर्वत की तरह कठोर शरीर से जल में प्रवेश किया।
वे तीर के समान पैने खुरों से पानी को चीरते हुए पानी के पार पहुँच गये। रसातल में सभी जीवों के निवास स्थान को देखा, वापस आए। वे जल से बाहर निकलते समय महापराक्रमी हिरण्याक्ष ने उन पर हमला किया, लेकिन भगवान ने उसे आसानी से परास्त कर दिया।
फिर वे पृथ्वी को उठाकर ले आए। भगवान ने अपने विशाल हाथों पर पृथ्वी को रखकर, वे जल से बाहर आए, तमाल वृक्ष के समान नीला वर्णवाले भगवान वराह अवतार को देखकर सब यह जान गए कि वे भगवान हैं। सबने हाथ जोड़कर उनकी स्तुति की।
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