श्री दधीचि जी की कथा एवं चरित्र: उनकी महिमा, बलिदान और प्रेरणादायक कहानी | The Inspiring Story and Life of Shri Dadhichi Ji: A Symbol of Wholeness Amongst Gods(2023)

श्री दधीचि जी: देवों के वरदान से मर्त्य लोक की रक्षा-

दधीचि जी:- एक बार की बात है, देवराज इन्द्र अपनी सभा में बैठे थे। उन्हें अभिमान हो आया कि हम तीनों लोकों के स्वामी हैं। ब्राह्मण हमें यज्ञ में आहुति देते हैं, देवता हमारी उपासना करते हैं। फिर हम सामान्य ब्राह्मण बृहस्पति जी से इतना क्यों डरते हैं? उनके आने पर खड़े क्यों हो जाते हैं, वे तो हमारी जीविका से पालते हैं। ऐसा सोचकर वे सिंहासन पर डटकर बैठ गये। भगवान् बृहस्पति के आने पर न तो वे स्वयं उठे, सभा सदों को उठने दिया देवगुरु बृहस्पति जी इन्द्र का यह औद्धत्य देखकर लौट गये और कहीं एकान्त में जाकर छिप गये।

थोड़ी देर के पश्चात् देवराज का मद उतर गया, उन्हें अपनी गलती मालूम हुई। वे अपने कृत्य पर बड़ा पश्चाताप करने लगे, दौड़-दौड़े गुरु के यहाँ आये किंतु गुरु जी तो पहले ही चले गये थे, निराश होकर इन्द्र लौट आये। गुरु के बिना यज्ञ कौन कराये, यज्ञ के बिना देवता शक्तिहीन होंगे। असुरों को यह बात मालूम हो गयी, उन्होंने अपने गुरु शुक्राचार्य की सम्मति से देवताओं पर चढ़ाई कर दी। इन्द्र को स्वर्ग छोड़कर भागना स्वर्ग पर असुरों का अधिकार हो गया। पराजित देवताओं को लेकर इन्द्र भगवान् ब्रह्मा जी के पास गये, अपना सब हाल सुनाया।

ब्रह्मा जी ने कहा- ‘त्वष्टा के पुत्र विश्वरूप को अपना पुरोहित बनाकर काम चलाओ। देवताओं ने ऐसा ही किया। विश्वरूप बड़े विद्वान् वेदज्ञ और सदाचारी थे; किंतु इनकी माता असुर कुल की थीं, इससे ये देवताओं से छिपाकर असुरों को भी कभी-कभी भाग दे देते थे। इससे असुरों के बल की वृद्धि होने लगी।

इन्द्र को इस बात का पता चला, उन्हें दूसरा कोई उपाय ही न सूझा। एक दिन विश्वरूप एकान्त में बैठे वेदाध्ययन कर रहे थे कि इन्द्र ने पीछे से जाकर उनका सिर काट लिया। इसपर उन्हें ब्रह्महत्या लगी। जिस- किसी प्रकार गुरु बृहस्पति जी प्रसन्न हुए उन्होंने यज्ञ आदि करा के ब्रह्महत्या को पृथ्वी, जल, वृक्ष और स्त्रियों में बाँट दिया । इन्द्र का फिर से स्वर्गपर अधिकार हो गया।

इधर त्वष्टा ऋषि ने जब सुना कि इन्द्र ने मेरे पुत्र को मार दिया है तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ। अपने तप के प्रभाव से उन्होंने उसी समय इन्द्र को मारने की इच्छा से एक बड़े भारी बलशाली दैत्य वृत्रासुर को उत्पन्न किया। वृत्रासुर के पराक्रम से सम्पूर्ण त्रैलोक्य भयभीत था। उसके ऐसे पराक्रम को देखकर देवराज भी डर गये, वे दौड़े-दौड़े ब्रह्मा जी के पास गये। सब हाल सुनाकर उन्होंने ब्रह्मा जी से वृत्रासुर के कोप से बचने का कोई उपाय पूछा।

ब्रह्मा जी ने कहा-‘देवराज! तुम किसी प्रकार वृत्रासुर से बच नहीं सकते। वह बड़ा बली, तपस्वी और भगवद्भक्त है। उसे मारने का एक ही उपाय है कि नैमिषारण्य में एक महर्षि दधीचि तपस्या कर रहे हैं। उग्र तप के प्रभाव से उनकी हड्डियाँ वज्र से भी अधिक मजबूत हो गयी हैं। यदि परोपकार को इच्छा से वे अपनी हड्डियों दे दें और उनसे तुम अपना वज्र बनाओ तो वृत्रासुर मर सकता है।

देवराज इंद्र की मंगलकामना के लिए महर्षि दधीचि का बलिदान-

ब्रह्मा जी को सलाह मानकर देवराज समस्त देवताओं के साथ नैमिषारण्य में पहुँचे। उग्र तपस्या में लगे। हुए भगवान् दधीचि को उन्होंने भाँति-भाँति स्तुति की। तब ऋषि ने उनसे वरदान माँगने के लिये कहा। इन्द्र ने हाथ जोड़कर कहा- त्रैलोक्य की मंगलकामना के निमित्त आप अपनी हड्डियाँ हमें दे दीजिये।
महर्षि दधीचिने कहा- देवराज समस्त देहधारियों को अपना शरीर प्यारा होता है, स्वेच्छा से इस शरीर को जीवित अवस्था में छोड़ना बड़ा कठिन होता है; किंतु त्रैलोक्य को मंगलकामना के निमित्त मैं इस कामको भी करूंगा। मेरी इच्छा तीर्थ करने की थी।

इन्द्र ने कहा—’ब्रह्मन्! समस्त तीर्थों को मैं यहीं बुलाये देता हूँ। यह कहकर देवराज ने समस्त तीर्थों को नैमिषारण्य में बुलाया। सभी ने ऋषि की स्तुति को ऋषि ने सब में स्नान, आचमन आदि किया और वे समाधि में बैठ गये। जंगली गौ ने उनके शरीर को अपनी काँटेदार जीभ से चाटना आरम्भ किया। चाटते चाटते चमड़ी उड़ गयीं। तब इन्द्र ने उनकी तपःपूत रीढ़ की हड्डी निकाल ली, उससे एक महान् शक्तिशाली तेजोमय दिव्य बज्र बनाया गया और उसी वज्र की सहायता से देवराज इन्द्र ने वृत्रासुर को मारकर त्रिलोकी के संकट को दूर किया।

इस प्रकार एक महान् परोपकारी ऋषि के अद्वितीय त्याग के कारण देवराज इन्द्र बच गये और तीनों लोक सुखी हुए। संसार के इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत थोड़े मिलेंगे, जिनमें स्वेच्छा से केवल परोपकार के ही निमित्त- जिसमें मान, प्रतिष्ठा आदि अपना निजी स्वार्थ कुछ भी न हो अपने शरीर को हँसते-हँसते एक याचक को सौंप दिया गया हो। इसलिये भगवान् दधीचि का यह त्याग परोपकारी सन्तों के लिये एक परम आदर्श है। दधीचि ऋषि की और भी विशेषता देखिये।

अश्विनी कुमारों को ब्रह्मविद्या का उपदेश देने के कारण इन्द्र ने इनका मस्तक उतार लिया था। फिर अश्विनी कुमारों ने इनके धड़ पर घोड़े का सिर चढ़ा दिया और इससे इनका नाम अश्वशिरा विख्यात हुआ था। जिस इन्द्र ने इनके साथ इतना दुष्ट बर्ताव किया था, उसी इन्द्र की महर्षि ने अपनी हड्डी देकर सहायता की सन्तों की उदारता ऐसी ही होती है। वज्र बनने के बाद जो हड्डियाँ बची थीं, उन्हीं से शिव जी का पिनाकधनुष बना था। दधीचि ब्रह्मा जी के पुत्र अथर्वा ऋषि के पुत्र थे। साभ्रमती और चन्द्रभागा के संगम पर इनका आश्रम था।

Bhaktkath.com is a website that offers a collection of inspiring and captivating stories and tales from Hindu mythology. Readers can explore and immerse themselves in various tales such as the story of Shri Daksh Ji, as well as other fascinating stories of gods, goddesses, saints, and devotees. These stories provide insights into Indian culture and philosophy, while also entertaining and inspiring readers with their moral lessons and spiritual teachings. With a vast collection of stories, Bhaktkath.com is a perfect platform for those who seek to deepen their understanding of Hindu spirituality.