श्री सेनजी की विरासत: एक प्रेरक कहानी भक्त के माध्यम से विश्वास की भक्ति
यह बात बहुत प्रसिद्ध है, कि भगवान ने अपने भक्त श्री सेन जी की मदद की। प्रेमी प्रभु ने अपने भक्त (सेनजी) के लिए एक नाई का रूप बदल दिया, तेजी से उसके पास पहुँचकर बगल में छुड़ी लटकाई और हाथ में एक दर्पण लिया। उन्होंने सेनजी के जैसा ही रूप धारण किया और फिर राजा के पास जाकर उसकी मालिश की।
जब राजा ने इस रहस्य को समझ लिया, तो वह बड़े ही चौंक गए क्योंकि बाद में उन्हें पता चला कि उनकी मालिश करने वाला व्यक्ति सेन नाई के रूप में स्वयं भगवान थे। सेन जैसे भगवत भक्त के लिए भगवान को आते देख राजा सेन जी का शिष्य बन गया। इसका मतलब है कि वह बिल्कुल ही अद्भुत और चमत्कारिक बात हो गई। यह जैसे होता है कि एक गाय जब नवा बछड़ा पैदा करती है, तो वह हमेशा अपने बच्चे के साथ रहती है और उसकी देखभाल करती है। ठीक उसी तरह, भगवान श्री श्यामसुन्दर भगवान श्री सेनजी के लिए हमेशा सबसे पास ही रहते थे और उनकी सेवा में लगे रहते थे।
श्री सेनजी से सम्बन्धित कुछ विवरण इस प्रकार है-
पाँच-छः सौ साल पहले की बात है, जब बघेलखण्ड के बान्धवगढ़ नगर अत्यंत समृद्ध था। वहाँ के राजा महाराज वीरसिंह थे। इस नगर में एक परम सन्तोषी, उदार, और विनयशील भगवत भक्त रहते थे, जिनका नाम था सेन। उनका राज परिवार से नित्य का संबंध था; ये जाति के नाई थे और राजा की यहाँ राजा की मालिश और हज़ामत कर काम करते थे भगवान की कृपा से वे दिनभर की मेहनत और मजदूरी से जो भी कुछ कमाते, वो संतो की सेवा और परिवार के पोषण में लगा देते।
वे अपने परिवार का ख्याल रखकर और संत सेवा करके संतुष्ट रहते थे। वे हर दिन सुबह स्नान करके, भगवान की पूजा करके और भजन गाकर राज सेवा के लिए निकलते थे। दोपहर में वे घर लौट आते थे।
राजा का दैनिक काम था कि वे अपने बालो में तेल लगाकर स्नान कराते थे। सेन नाई जब राजा के महल जाने के लिए घर से बहार निकले, तो वे देखा कि एक समृद्धि संतो मण्डली भगवान के नाम का संकीर्तन करते हुए उनके घर की ओर आ रही है। सेन ने बहुत प्रेम से संतो का स्वागत किया, उनकी सेवा की, और सत्संग किया। वही बीतते-बीतते बहुत समय बित गया, और उधर महाराज वीरसिंह, सेन का इंतजार कर रहे थे।
सेनजी का रूप रख कर भगवान् महाराज वीरसिंह के महल गए:-
इसके बाद, लीला विहारी भगवान् सेन नाई रूप में राजमहल पहुँच गए। उनके पास एक छोटी सी पेटी थी, जिसमें छुरा, कैंची और अन्य उपयोगी सामान था। सेन रूप भगवान ने राजा के सिर पर तेल लगाया, उनकी मालिश की और उन्होंने उन्हें एक दर्पण दिखाया। सेन नाई की मासूसी मस्तिष्क और मुख पर तेज के द्वारा राजा को अत्यधिक सुख मिला, आज कुछ अलग प्रतीत हो रहा था रजा को आज से पहले इतना सुख कभी नहीं मिला था। फिर सेन नाई रूप भगवान ने पूरी तरह से राजा की सेवा की और चले गए।
उधर जब भक्तमण्डली चली गई, तो थोड़ी देर बाद भक्त सेन को याद आया कि उसको अब राजा की सेवा में जाना है। उसने जल्दी सामान तैयार किया और डर के मारे राजमार्ग पर कदम रखा। उसे डर था क्योंकि वह सोच रहा था कि आज राजा बहुत गुस्सा करेगा मुझे जाने में बहुत देर हो गई।
महल के बाहर खड़े सैनिक ने सेन जी से पूछा, “कुछ भूल तो नहीं गए?”
सेनजी ने कहा, “नहीं, अभी तक तो मैं राजमहल तक पहुँचा ही नहीं है।”
‘क्या आप ठीक हैं? आपका दिमाक तो है, ना?’ सैनिक ने कहा।
सैनिक ने कहा ‘राजा आपकी सेवा से आज तो बहुत खुश है, और इसकी खबर पूरे नगर में फैल रही है।’ सैनिक ने आगे कुछ नहीं कहा।
सेन जी को समझने में देर न लगी आज मेरे रूप में मेरे भगवान् ही आकर राजा की मालिश कर गए और ये सोच सोच कर सेन रोने लगे सेनजी को अब पूरा यकीन हो गया कि उनकी खुशी और संतोष के लिए भगवान को एक नौकर की तरह सेवा करनी पड़ी। उन्हें खुद पर शरम आई क्योंकि उन्हें एक छोटी सी सेवा के लिए भगवान श्री राघवेन्द्र को एक नौकर का रूप लेने पड़ा। भगवान के लिए यह कठिनाइयों से भरा था! वे ध्यान से भगवान के पाद कमलों का स्मरण करने लगे और मन में ही ही भगवान से क्षमा मांगने लगे।
भक्त और भगवान की कथा
जब वे राजा वीरसिंह के राजमहल में पहुँचे तो उन्हें सारी बात बताई राजा और सेन जी गले लगकर रोने लगे राजा सेन जी कहने लगे में कितना पापी हूँ मेरी वजह से भगवान् को कष्ट हुआ अपनी मालिश कराइ, उन्हें भगवान के साक्षात्कार का अहसास हो रहा था। राजा ने भक्त सेनजी क्षमा माँगी, दोनों ने आपस में गले मिल लिया और राजा ने सेन के पैरों को छू लिया। और सेन जी राजा ने प्राथना की मुझे अपना शिष्य बना लीजिये आप जैसे प्रेमी भक्त के कारण ही आज में भगवान् को देख पाया।
राजा ने कहा- ‘राजपरिवार जन्म-जन्म तक आपका और आपके वंशजों का आभार मानता रहेगा। भगवान् ने आपकी ही प्रसन्नता के लिये मंगलमय दर्शन देकर हमारे असंख्य पाप तापों का अन्त किया है।’
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