Utpanna Ekadashi vrat ki katha in hindi – उत्पन्ना एकादशी की कहानी – उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा हिंदी
उत्पन्ना एकादशी: एक समय भगवान श्री कृष्ण अपने सखा अर्जुन के साथ वार्तालाप कर रहे थे और फिर अर्जुन ने भगवान से पूछा हे केशव- आपने मेरे भ्राता युधिष्ठर को वर्ष की सभी एकादशी का महत्व तो बता दिया और आपने ये भी बताया सहस्त्रों यज्ञ कने से जो फल मिलता है उसकी तुलना भी एकादशी व्रत के अर्जित फल के बराबर नहीं है लेकिन मेरा संशय ये है की ये एकदशी तिथि इतनी महत्वपूर्ण क्यों है? उत्पन्ना एकादशी की जन्म कथा क्या है और आपकी प्रिये कैसे बनी क्या रहस्य है इसके पीछे?
भगवन श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया हे धनुर्धर इसके पीछे रहस्य तो है मैं तुम्हे विस्तार से बताता हूँ उत्पन्ना एकादशी के जन्म के बारे में सुनो ये सतयुग के समय की बात है जब मुर नाम के एक दैत्य ने अपनी अर्जित शक्तियो से सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने वश में कर लिया था।
फिर उसकी नज़र पड़ी स्वर्गलोक और देवताओ पर बस फिर क्या था उस भयंकर दैत्य ने अपने बाहुबल और क्रोध से इंद्रा, वरुण, ब्रह्मा सभी देवताओं को भी अपने नियंत्रण में कर लिया अब खबराए हुए देवता कहा जाते तो फिर वे चल पड़े कैलाश की और उन्होंने भगवान् शिव जी से प्राथना की और कहा- हे प्रभु हमारी रक्षा करे इस देत्य के अत्याचारों से हमें बचाए।
भगवान शिव ने कहा खबराइये मत इस समय आपको श्री हरि भगवान विष्णु के पास जाना चाहिए। और वही आपकी समस्या का समाधान कर सकते है फिर सभी देवता ब्रह्मा जी के अध्यक्षता में पहुँच गए क्षीर सागर में जहां दूध के सागर की लहरों में शेष नाग पर श्री हरी विराजमान थे।
देवताओं ने विनती की और आने का प्रयोजन बताते हुए कहा हे प्रभु आप तो सर्वयज्ञ है जानते ही है ब्रह्म वंश में उत्पन्न एक अत्यंत भयंकर दैत्य दथिजंगा ने सभी देवताओं का संहार करने की प्रतिज्ञा ली थी।
और अब उसी का पुत्र मूर दैत्य उत्त्पन हुआ है जिसने इस प्रतिज्ञा को पूरा किया उसने स्वर्ग से हमें निष्काषित कर दिया है और अब वह असुर स्वर्ग पर राज कर रहा है कृपया हमें इस संकट से बचाइए प्रभु देवताओं की बात सुनकर श्रीहरि को क्रोध आ गया।
उन्होंने उसी क्षण देवताओ को आदेश दिया की वे मूर दैत्य की नगरी चन्द्रावती पर आक्रमण करे। और वह स्वम इस युद्ध था नितृत्व करंगे बस फिर क्या था भगवान् की आज्ञा अनुसार सभी देवता मूर दैत्य के साम्राज्य पर आक्रमण कर दिया।
असुरों ने देखा कि सभी देवता आक्रमण करने आ रहे है तो उन्होंने भीषण गर्जना करना आरम्भ कर दिया इस भयंकर गर्जना से सभी देवता इधर उधर चले गए लेकिन फिर श्री हरि नारायण आये और सभी देत्यो का उसी समय संघार कर दिया।
तभी भगवान् के साथ युद्ध करने के लिए मूर दैत्य स्वयं आ गया दोनों के बीच 1000 वर्ष तक युद्ध हुआ ना कोई हरा न कोई जीता लेकिन बस इस दैत्य का अन्त समय अंत आ गया था। क्योंकि भगवान श्रीहरि अब दिव्य लीला करने जा रहे थे।
अचानक भगवान् युद्ध भूमि से अदृश्य हो गए और पहुँच गए बद्रिका आश्रम वहाँ जाकर वे हिमवती गुफा में योग निंद्रा में चले गए मूर दैत्य भगवान् का पीछा करता करता वहा पंहुचा उसने गुफा में प्रवेश किया और और भगवन पर प्रहार करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा।
उसी क्षण बिजली की करकराहट सुनाई दी एक तेजस्वी प्रकाश पूरी गुफा में फैल गया और वही से प्रकट हुई एक दिव्य कन्या जिसने मूर दैत्य के साथ भीषण युद्ध किया और दैत्य का संहार किया।
जब भगवान श्रीहरि ने इस कन्या को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। और उस कन्या से वरदान मांगने के लिए कहा इसके उत्तर में कन्या ने कहा हे परमपालक श्री हरी यदि आप सच में मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे ये वरदान दे कि मेरे उत्त्पन होने के दिन जो भी व्यक्ति उपवास करे और आपकी आराधना करे उसके अनेक जन्मों के पापों को में नष्ट कर सकू।
आपकी कृपा से उस व्यक्ति को हर सुख समृद्धि प्राप्त हो और जीवन के अंत में वह आपके धाम आये भगवान इस कन्या की इच्छा सुनकर बहुत प्रसन्न हुए और बोले हे देवी मेरी आध्यात्मिक शक्ति से मार्ग शेष मास के कृष्ण पक्ष में 11वे दिन उत्त्पन हुई है।
इसलिए आपका उत्पन्ना एकादशी नाम होगा जो भी व्यक्ति इस दिन निष्ठा पूर्वक व्रत पालन करेगा उअके सभी पाप नष्ट होंगे और अंत में मेरे धाम की प्राप्ति होगी।
कथा का सम्पन करते हुए भगवन श्री कृष्ण ने कहा कथा का सम्पन करते हुए भगवन श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन से कहा तो इस प्रकार एकदशी तिथि उत्पन्न हुई और जो भी व्यक्ति इस दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत का पालन करता है वह मुझे अत्यन्त प्रिय है और मै उसे सभी भौतिक ऐश्वर्य सुख संपति के साथ साथ अपनी शुद्ध भक्ति भी प्रदान करता हूँ।
उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा समापन
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उत्पन्ना एकादशी ने किस दैत्य का वध किया?
उत्पन्ना एकादशी माता ने मूर दैत्य का वध किया।