कल्कि अवतार: धरती पर धर्म की जीत की प्रतीक
कल्कि अवतार, भगवान विष्णु के 10वें अवतार में से एक है। यह अवतार भगवान कल्कि के रूप में जाना जायेगा। जिसमे भगवान् भविष्य में आयेंगे और धरती से अधर्म को समाप्त करेंगे। कलियुग के अंत में, जब भगवान के भक्तो और धर्मात्मा सत्पुरुषों के घरों में भी भगवान की कथा को लेकर बाधा होगी, ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ढोंगी और पाखण्डी हो जायँगे और अधर्मी राजा होंगे, यहाँ तक कि कहीं भी भजन, कीर्तन और वेद मंत्र की ध्वनि नहीं सुनायी पड़ेगी।
राजा प्रजा के लुटेरे बन जायेंगे, तब कलियुग का शासन करने के लिये भगवान् कल्कि रूप में संभल ग्राम में विष्णुयश के घर में अवतार ग्रहण करेंगे।
परशुराम जी उनको वेद पढ़ायेंगे। शिवजी शस्त्रास्त्रों का साधन सिखायेंगे, साथ ही एक घोड़ा और एक खड्ग देंगे। तब कल्किभगवान् ब्राह्मणों की सेना साथ लेकर संसार में सर्वत्र फैले हुए अधर्मियों का नाश करेंगे।
पापी दुष्टोंका नाश करके वे सत्ययुग के प्रवर्तक होंगे। वे ब्राह्मणकुमार बड़े ही बलवान्, बुद्धिमान् और पराक्रमी होंगे।धर्म के अनुसार विजय प्राप्त कर वे चक्रवर्ती राजा होंगे और इस सम्पूर्ण संसार को आनन्द प्रदान करेंगे।
भगवान कल्कि अवतार कथा का महत्व
कल्कि अवतार का विस्तार हिन्दू धर्म के ग्रंथों, पुराणों में व्यक्त है। इस अवतार का आगमन भगवान कौशिक ऋषि के द्वारा श्रीकृष्ण के जन्म के समय का संकेत माना जाता है। कल्कि अवतार तब होगा, जब मानवता अधर्मिकता और अध्यात्मिक अंधकार से घिरी होगी।
कल्कि अवतार की चरित्रिक विशेषताएं और लीलाएं भगवान के इस अवतार को लेकर विविध पुराणों में विवरणित हैं। इस अवतार को सजीवन मुक्ति का साक्षात्कार कराने वाला माना जाता है, जिससे अधर्मिक तात्कालिकता और अध्यात्मिक ज्ञान की पुनर्निर्माण की जाएगी।
कल्कि अवतार का आगमन और उसकी दिव्य अस्त्र-शस्त्र से युद्ध करके वह अधर्म का समाप्त करेंगे और धरती को नए सत्ययुग की शुरुआत के लिए तैयार करेंगे।
भगवान कल्कि का विचार हिन्दू साहित्य और धार्मिक विचारधारा में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और यह आशा दिलाता है कि अंत में धरती पर धर्म की जीत होगी और सत्ययुग की पुनर्निर्माण होगी।
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