श्री नीलध्वज जी की कथा |Anany Bhakti aur Adhyatmik Sanyam: Shri Neeldhwaj Ji ki Aadarshmay Katha | Unwavering Devotion and Spiritual Discipline: The Inspiring Tale of Shri Neeladhwaja Ji- 2023

श्री नीलध्वज जी: अनन्य भक्ति और आध्यात्मिक संयम: श्री नीलध्वज जी की आदर्शमय कथा

ये कथा माहिष्मती नगर के राजा नीलध्वज और उनके बेटे प्रवीर की है। प्रवीर का एक बहादुर पुत्र था। महाराज युधिष्ठिर के एक यज्ञीय अश्व को पकड़ लिया गया, और उसने अपने शौर्य के इस काम पर गर्व किया।

प्रवीर ने उस अश्व को पकड़कर अर्जुन के पास एक संदेश भेजा कि मैं, नीलध्वज के पुत्र प्रवीर, यज्ञीय अश्व को माहिष्मती नगर में भेज दिया है। अब अर्जुन से मेरी यह चुनौती है कि वह इसे छुड़ा लें।

अर्जुन ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एक बड़े युद्ध में प्रवीर के साथ मिलकर खड़ा हो गया। प्रवीर पाण्डव वीरों के बड़े बलिष्ठ सामने नहीं टिक सका, इसके बाद उनके पिता महाराज नीलध्वज तीन अक्षौहिणी सेना के साथ युद्ध भूमि पर पहुँचे। यहां पर उनका मुकाबला वीर अर्जुन से हुआ।

अर्जुन ने महाराज नीलध्वज को मूच्छित कर दिया।

नीलध्वज ने अपनी स्वाहा नाम की कन्या अग्निदेव से विवाह किया था। एक दिन, उन्होंने समय संकट में पड़कर अपने जामाता अग्निदेव को बाणाग्र भागपर भेज दिया, जो पाण्डव सेना के खिलाफ खड़ा हो गया। इसके परिणामस्वरूप, बहुत से वीर वीर क्षण में ही भस्म हो गए।

यद्यपि अर्जुन ने अग्नि को शांत करने के लिए वरुणास्त्र का प्रयोग किया, लेकिन अग्निदेव नहीं शांत हुए, तब अर्जुन ने नारायणास्त्र का प्रयोग किया। नारायणास्त्र का धनुष पर सन्धान हुआ देखकर अग्निदेव शांत हो गए और अर्जुन के यह पूछने पर कि अब तक तो आपकी मेरे ऊपर बड़ी कृपा रही है।

आपने मुझे गांधीव धनुष और दिव्य रथ प्रदान किया है और हमें हमेशा अच्छा साथ मिलता रहा है, लेकिन आजकल आप मेरे खिलाफ अधिक उत्तेजित लग रहे हैं। क्या बात है? आप पहले प्यार से जाने जाते थे, लेकिन अब आपका व्यवहार बदल गया है। मैं क्या कर सकता हूँ? अग्निदेव ने कहा- धनंजय !

अगर तुम युधिष्ठिर को अश्वमेध यज्ञ के माध्यम से पवित्र करना चाहते हो, तो यह लगता है कि तुम मानते नहीं हो कि श्री कृष्ण बिना यज्ञ, देवता या मन्त्र के भी उन्हें पवित्र कर सकते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि तुम्हारा श्री कृष्ण में विश्वास नहीं है।

तुम क्षीर सागर को पाकर भी दूध के लिए बकरी क्यों दुधाते हो, और सूर्य को उदित होते हुए छोडकर प्रकाश के लिए जुगनू की आकांक्षा कैसे कर रहे हो? पार्थ, इस समय मैंने तुम्हारी सेना पर किया गया हमला इसका प्रमुख कारण है।

नीलध्वज की प्रेरणा तो सेकेंडरी थी। इसके बाद, अग्निदेव ने अर्जुन की हानि की सेना को फिर से जीवित किया और राजा नीलध्वज से कहा कि उन्होंने इंद्र के खाण्डव वन को आसानी से जलाकर भस्म कर दिया, जिसे श्री कृष्ण के आंतरिक मित्रों में से कोई हरा नहीं सकता। इसलिए, आप उनके यज्ञीय अश्व को लौटा दें और उनसे मित्रता करें, ताकि आपका कल्याण हो सके।

राजा नीलध्वज ने ऐसा किया और अर्जुन से पूछा – “महाबाहु पार्थ! मैं आपके लिए कैसा काम कर सकता हूँ?” तब अर्जुन ने कहा – “भूपालशिरोमणे! आप एक महान योद्धा हैं। कृपया मेरे साथ रहकर मेरे इस यज्ञीय अश्व की रक्षा करें।” राजा नीलध्वज ने “तथास्तु” कहकर स्वीकार किया, अपने पुत्र प्रवीर को सौंपकर अर्जुन के साथ यज्ञीय अश्व की रक्षा की। अर्जुन के द्वारा राजा नीलध्वज की महान योद्धा क्षमता की सराहना की और इस पर भगवान श्री कृष्ण ने प्यार से उनका आलिंगन किया।

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