ब्रह्मर्षि श्री शमीक जी का जीवन परिचय-
परम तपस्वी श्री शमीक जी जीवन में गौओं के पास रहते थे और गौओं के दूध पीते समय बछड़ों के मुख से जो फेन निकलता था, उसी को पीते रहते थे और तपस्या में लगे रहते थे। वे बहुत ही शांत, दान्त, धैर्यशील, और क्षमाशील साधू थे।
एक दिन, राजा परीक्षित वन में शिकार करने के लिए गए थे और वहाँ भूख और प्यास से परेशान हो गए। वे श्री शमीक के आश्रम में गए, लेकिन ऋषिद्वारा उनके मौन व्रत के कारण राजा का सबसे न्यायिक और समय पर सत्कार नहीं कर सके।
क्षुधा और तृषा से पीड़ित होने वाले राजा परीक्षित ने मुनि की स्थिति को समझे बिना, ईर्ष्या और क्रोध में लिपटकर धनुष की कोर से ऋषि के गले में मृतक सर्प को डालकर उसे घर लेकर आए।
ऋषिकुमार शृंगी ने सातवें दिन के अंदर राजा परीक्षित् को तक्षक नाग के डसने से मर जाने का दिया शाप-
जब ऋषिकुमार शृंगी को यह पता चला, तो वह राजा के व्यवहार से परेशान हो गए और उन्होंने राजा परीक्षित को एक शाप दिया – “आज से सात दिनों के बाद राजा परीक्षित् को तक्षक नाग डँस लेगा। जब ब्रह्मर्षि शमीक ने यह जान लिया, तो उन्होंने अपने पुत्र का शाप को स्वीकार नहीं किया, क्योंकि वे समझते थे कि यह शाप अधिक कठिन है। उन्होंने कहा, “बेटे, तुने एक छोटी सी गलती के लिए बड़ा शाप दिया है, जो अधिक है। तुझे यह याद रखना चाहिए कि राजा ईश्वर का अंश होते हैं और उन्हें साधारण मनुष्य से अलग समझना चाहिए।
जिस समय राजा भगवान की छवि धारण करके दिखाना बंद कर देंगे, तब प्रजा अनियंत्रित हो जाएगी और अनियमित तरीके से व्यवहार करेगी। इस समय हम जैसे आम लोगों को उनके किए गए अपराधों का कोई संबंध नहीं होगा, फिर भी हम प्रायश्चित के रूप में उनके पापों का दोषी माना जाएगा। सम्राट परीक्षित बड़े महान और न्यायप्रिय राजा हैं।
उन्होंने कई अश्वमेध यज्ञ किए हैं और वे भगवान के विशेष भक्त हैं। एक दिन वे भूख-प्यास से त्रस्त होकर हमारे आश्रम आए थे। उनका शाप कभी भी अनुचित नहीं था, लेकिन एक अज्ञान बच्चे ने उनके बिना सोचे-समझे राजा के ऊपर एक अपराध लगा दिया है, जोकि बिना दोष के हमें परेशानी में डाल देगा। कृपा करके ईश्वर, इसे माफ करें।
महामुनि शमीक ने अपने पुत्र के अपराध के बाद बड़ा पश्चात्ताप किया। राजा परीक्षित ने उनका अपमान किया था, लेकिन महर्षि शमीक ने उस पर ध्यान नहीं दिया। यह दिखाता है कि साधु पुरुषों की विशेष बात यह है कि वे अपमान और अत्याचार के बावजूद शांत और सहमत रहते हैं।
फिर, महर्षि शमीक ने अपने शिष्य गौरमुख के माध्यम से राजा को शाप देने का संदेश भेजा और राजा के भलाइ की कामना की।
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