भक्त पाण्डव- भगवान के प्रिय पांडवो की कथा | Bhakt 5-Pandav Story of the beloved devotees of lord krishna -2023

5-पांडवों का नाम क्या है?

महाराज पाण्डु के पाँच पाण्डव पुत्र थे, जिनके नाम धर्म, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, और सहदेव थे। युधिष्ठिर का जन्म कुन्ती देवी से हुआ था, और वे धर्म के प्रतीक थे। भीम इंद्र के अंश से उत्पन्न हुए थे और उनकी शक्ति अद्भुत थी। अर्जुन अश्विनी कुमारों के अंश से उत्पन्न हुए थे और वे एक अद्वितीय धनुर्वेदी थे। नकुल और सहदेव माद्री द्वारा उत्पन्न हुए थे और वे भी बड़े धर्मिक और ध्यानी थे।

महाराज पाण्डु का जीवन पाँचों पुत्रों के साथ कुन्ती देवी ने बड़े प्यार से और देखभाल करते हुए बिताया। ये पाँचों भाई हमेशा सच्चाई का पालन करते थे और उनमें धर्मिकता, सादगी, और दयालुता की श्रेष्ठ उदाहरण थे। उन्होंने कभी दुश्मन के प्रति अपनी शीलता और भगवान के प्रति गहरी श्रद्धा में कभी कमी नहीं की।

पांडव और दुर्योधन में शत्रुता –

महाराज पाण्डु के मृत्यु के बाद, उनके पुत्रों को राज्य मिलना चाहिए था, लेकिन उनके अंधे भ्राता धृतराष्ट्र ने राजा बनकर अधिकार किया। धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन क्रूर और स्वार्थी थे, और वे पाण्डवों से नफरत करते थे। उनका बड़ा भाई दुर्योधन भीमसेन से विशेष दुश्मनी रखता था और उसने भीमसेन को विष पिलाकर मूर्च्छित कर दिया, लेकिन भीम नागलोक पहुँच गए, जहाँ उन्हें सर्पों ने काटा, लेकिन विष का प्रभाव दूर हो गया और वे स्वस्थ रूप से वापस आए।

दुर्योधन ने पाण्डवों को एक लाक्षागृह नामक घर में बंद कर दिया और रात्रि के समय उस घर में आग लगा दी, लेकिन विदुर ने पाण्डवों को सचेत किया था। वे अग्नि से बचकर गुप्त रूप से वन में निकल गए और गुप्त रूप से यात्रा करने लगे। भीम अत्यधिक शक्तिशाली थे, उनके हाथ बड़े मजबूत थे, और वे बड़े हाथी आसानी से उठा सकते थे। वन में, माता कुन्ती और उनके सभी भाइयों को वे कंधों पर बैठाकर यात्रा करते थे, और कई राक्षसों को मार डाला।

अर्जुन द्रौपदी स्वयंवर –

धनुर्विद्या में अर्जुन अद्वितीय थे। इसी वनवास में पाण्डव द्रुपद के यहाँ गये और स्वयंवर सभा में अर्जुन ने मत्स्य वेध करके द्रौपदी को प्राप्त किया। माता कुन्ती के वचन की रक्षा के लिये द्रौपदी पाँचों भाइयों की पत्नी बनीं। धृतराष्ट्र ने समाचार पाकर पाण्डवों को हस्तिनापुर बुलवा लिया और आधा राज्य दे दिया। युधिष्ठिर के धर्मशासन, अर्जुन तथा भीम के प्रभाव एवं भगवान् श्री कृष्ण की कृपा से पाण्डवों का ऐश्वर्य विपुल हो गया। युधिष्ठिर ने दिग्विजय करके राजसूय यज्ञ किया और वे राजराजेश्वर हो गये, परंतु युधिष्ठिर को इसका कोई अहंकार नहीं था, उन्होंने अपने भाइयों सहित भगवान् श्री कृष्ण की अग्रपूजा की और उनके चरण पखारे ।

पांडव और कौरवों ने जुआ खेला –

दुर्योधन पांडवों के इस वैभव को सहन नहीं कर सका। धर्मराज को अपने दादी पिता, महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा के तहत जुआ खेलना पड़ा। खेल में हारने के बाद, पाण्डव बारह वर्षों के लिए जंगल में वनवास जाने के लिए सहमत हो गए। उन्होंने एक वर्ष तक अज्ञात रूप से जीवन बिताया। इस अवधि के बाद, जब भी दुर्योधन उनका राज्य वापस देने को तैयार नहीं हुए, तो महाभारत युद्ध हुआ। इस युद्ध में कौरवों को पराजित किया गया।

महाभारत के युद्ध के बाद कितने वर्ष पांडव ने राज्य किया –

युधिष्ठिर राजा बने और 36 साल तक राज्य किया। फिर, जब पता चला कि भगवान श्रीकृष्ण परमधाम को प्राप्त हो गए, तो पांडव ने सब कुछ छोड़कर अपने पौत्र परीक्षित को राज्य सौंपकर हिमालय की ओर चल दिया। वे भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा के साथ महाप्रस्थान कर गए।

भगवान श्रीकृष्ण धर्म और भक्ति के प्रतीक हैं। वहां जहाँ धर्म होता है, वहां हमें श्रीकृष्ण मिलते हैं, और यदि हम श्रीकृष्ण के नाम का उल्लेख करते हैं, तो धर्म बढ़ता है। भीमसेन के नाम से पापों का नाश होता है, अर्जुन के नाम से शत्रुओं का नाश होता है, और नकुल सहदेव के नाम से रोगों का नाश होता है। यह सब धर्म के प्रतीक है। पांडवों में युधिष्ठिर धर्म के प्रतीक थे और वे भगवान के अच्छे भक्त थे।

भगवान् कृष्ण के प्रति पांडवों की भक्ति –

अर्जुन श्री कृष्ण के खास दोस्त थे, और भीमसेन भी श्यामसुंदर (दूसरा नाम श्री कृष्ण का) का बड़ा प्रशंसक थे। भगवान श्री कृष्ण कभी-कभी उनके साथ मजाक करते थे, लेकिन भीमसेन कभी भी उनके आदेशों का उल्लंघन नहीं करते थे। अगर कोई युधिष्ठिर या श्री कृष्ण का अपमान करता, तो भीमसेन उसे सहन नहीं कर सकते थे। एक बार राजसूय यज्ञ में, जब शिशुपाल श्री कृष्ण को अपशब्दों से आक्रमण करने लगा, तो भीम क्रोधित होकर उसे सजीवी में ही मारने की कोशिश कर दी।

पांडवों की भक्ति को किसी भी प्रकार की प्रशंसा करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि उनका भक्ति उनके द्वारकेश भगवान श्रीकृष्ण के प्रति बहुत गहरा था। श्रीकृष्ण स्वयं पांडवों के दूत, सारथी, और सबकुछ थे, और वे हमेशा पांडवों की सहायता करते थे। पांडवों का भाई बंध भी अत्यधिक मजबूत था। युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, और सहदेव

– ये सभी अपने बड़े भाई के प्रति अपने प्राण समान भक्ति रखते थे। वे चाहे जैसी मुश्किलों का सामना करने पड़ा, पर उनके बड़े भाई के प्रति उनका पूरा समर्पण था। युधिष्ठिर ने एक बार जुआ खेला, जिसके कारण उन्के चार भाइयों को वनवास जाना पड़ा और अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके मन में उनके बड़े भाई के प्रति उनका सर्वोत्तम समर्पण बरकरार रहा। किसी भी समय, चाहे वो भीम या अर्जुन हो, यदि किसी ने कड़ी बातें कही, तो वे तुरंत उनके दुख को समझकर अपनी बात वापस लेने को तैयार हो जाते थे।

पाण्डवों के चरित्र में ध्यान देने योग्य बात है कि उनमें भीमसेन-जैसे बली थे, अर्जुन जैसे योद्धा अस्त्रविद्या में अद्वितीय माहिर थे, और नकुल सहदेव जैसे लोग नीति और व्यवहार की कलाओं में चतुर थे। हालांकि ये सभी लोग धर्मराज युधिष्ठिर के आदर्शों के अनुसरण करके उनके साथ चलते थे। इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि सफलता में धर्म का महत्व अत्यधिक होता है, चाहे बल हो, विद्या हो, शस्त्रज्ञान हो, या कला कौशल हो।

धर्मराज भी श्री कृष्णचन्द्र को अपना सर्वस्व मानते थे। उनका धर्म यह था कि वे श्री कृष्ण की इच्छा के अनुसार चलते थे। भगवान में भक्ति रखना और उनके प्रति सम्पूर्ण आत्मसमर्पण करना ही धर्म का आदर्श है। यही बात, यही आत्म निवेदन पाण्डवों में थी और इसी कारण श्यामसुन्दर (श्री कृष्ण) उनके पक्ष में थे। पाण्डवों की विजय भक्ति और धर्म के माध्यम से हुई।

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