श्री कृष्ण के भक्त सुरथ की कथा: दिव्य भक्ति की गहराई और प्रेम की प्रभावशाली शक्ति | Bhakt Surath: The Devotee of Shri Krishna who Embodies Complete Devotion and Spiritual Practice(2023)

श्री कृष्ण के भक्त: सुरथ

सुरथ चम्पकपुरी के राजा हंसध्वज के पुत्र और सुधन्वा के भाई थे। जब अनुज सुधन्वा की मौत हो गई, तो भागवत वीर-धुरीण सुरथ अपने रथ पर बढ़े, बहुत बड़ी सेना के साथ, और उनके हाथ में एक कठिन को दण्ड था। वह समरांगण में आकर अर्जुन से बोले, “महाबली पार्थ! अब मेरे साथ युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ।

तब सुरथ श्री कृष्ण से कहा, “देवकीनन्दन! अब आप अर्जुन की सही तरीके से रक्षा करें।

आपने अपने पूण्य को बचाने के लिए मेरे भाई के वध का आयोजन किया है, इसका यह अभियांत्रिकी योगदान कहा जा सकता है। आपने अपने नुकसान का ध्यान नहीं दिया। कुछ लोग एक बच्चे को मोतियों के बजाय बेर देते हैं, वैसे ही, आपने सुधन्वा के बदले में अपना पूण्य दिया। ऐसा करके, आपने सुधन्वा के जीवन को बेहतर बनाने में अपना योगदान दिया। इस तरह, श्री कृष्ण ने सुरथ द्वारा अर्जुन को एक प्रेमपूर्ण चुटकुले के माध्यम से ललकारा।

सुरथ के युद्ध के उत्साह को देखकर भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महावीर सुरथ के पास न ले जाने की सलाह दी, इसलिए सेना को अग्रणी बनाया और अर्जुन को रणक्षेत्र से तीन योजना दूर ले गए।

लेकिन सुरथने अर्जुन की बड़ी सेना को तुरंत ही वहाँ पहुंचाया, जहाँ भगवान श्री कृष्ण थे। सुरथ और अर्जुन के बीच घोर युद्ध के बीच, सुरथ ने कहा, “पार्थ, मुझे सुनने को मिला कि तुम्हारे यहाँ की प्रतिज्ञा कभी झूठ नहीं होती है, इसलिए अब तुम एक सत्य प्रतिज्ञा करो।

अर्जुन ने कहा- वीर! मैं तुम्हारे पिता के सामने ही तुम्हें धराशायी करूँगा, यही प्रतिज्ञा है। अब तुम अपनी यथोचित प्रतिज्ञा बतलाओ सुरथ ने कहा- अर्जुन मैं भी तुम्हें युद्धस्थल में रथ से भूतल पर गिरा दूंगा। यदि मैं इस वचन को सत्य न करूँ तो मेरा पुण्य नष्ट हो जाय।

तत्पश्चात् बहुत देर तक दोनों में रोमहर्षण युद्ध होने के बाद, अर्जुन ने एक सर्व देवमय बाण से सुरथ के बड़े-बड़े नेत्रों वाले और कुण्डलों से सुशोभित विशाल सिर को काट गिराया। भगवान ने इस चमत्कार को सत्य करने के लिए एक अद्भुत लीला की, जिसमें सुरयका कटा हुआ सिर उछलकर अर्जुन के माथे में गिर गया, जिसके कारण वह मूर्च्छित हो गए और पृथ्वी पर गिर पड़े। उसके बाद, भगवान ने अर्जुन को पृथ्वी से उठाया और उसे अपने रथ पर बिठाया, और दोनों हाथों से सुरथ के सिर को उठाकर देखा।

अर्जुन ने युद्ध स्थल पर उस शूरवीर के सिर को देखकर कहा, ‘कोई भी योद्धा इसके समान नहीं है।’ फिर, श्री कृष्ण ने कहा, ‘पक्षिराज! तुरंत श्रीमान सुरथ के सिर को प्रयाग में डाल दो। इस सिर के स्पर्श से प्रयाग भी पवित्र हो जायेगा। प्रयाग मेरा धन है, इसलिए इस वीर के मूल्यवान सिर को वहाँ रख दो। श्री गरुड़ ने ऐसा ही किया।’ भगवान् शिव ने सुरथ के सिर को अपनी मुण्डमाला में पिरो लिया। धन्य है मुख्य और धन्य है उनकी वीरता एवं श्री कृष्ण भक्ति!

कथा की सीख– कि साहस और सम्मान को आपसी संघर्ष के बीच में भी बनाए रखना चाहिए। अर्जुन का उस योद्धा के अद्भुत गुणों की पहचान और उसके सम्मान में उनका निर्णय, भगवान कृष्ण के ज्ञान के माध्यम से, दिखाता है कि संघर्ष और युद्ध के बीच भी विनम्रता और उत्कृष्टता की पहचान का महत्व होता है। यह मोरल हमें सिखाता है कि महत्वपूर्ण गुणों और व्यक्तियों का सम्मान करना चाहिए |

Our Website bhaktkatha.com, your one-stop destination for stories of devotion and faith. Here, you will find a vast collection of inspiring tales of devotees and their unwavering love for the divine. From ancient mythology to modern-day spiritual experiences, our website offers a wide range of narratives that will take you on a journey of faith and devotion. Dive into the world of bhakti and explore the power of unwavering devotion with our collection of bhakti kathas. Join us on this spiritual adventure and let these stories inspire and enrich your life.