Vaman Avtar: क्यों लेना पड़ा श्री हरी विष्णु को वामन अवतार?
वामन अवतार भगवान विष्णु का 5वां अवतार था असुर राज बालि बहुत शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने अपने तपोबल से तीनो लोको का राज प्राप्त किया वह असुर जरूर थे पर दयालु और दानी थे। वो बहुत बड़े विष्णु भक्त भी थे। इसलिए राजा बलि के पास से स्वर्ग पुनः प्राप्त करने के लिए इंद्र भगवान विष्णु के पास जाते है। और कहते है। प्रभु दया कीजिये राजा बलि ने मेरा इंद्र लोक भी छीन लिया आप कुछ कीजिये भगवान विष्णु मुस्कुराये अपने भक्त की कसौटी के लिए भगवान् ने वामन अवतार लिया।
राजा बलि महान विष्णु भक्त प्रह्लाद के पोत्र थे इसलिए राजा बलि असुर के साथ दयालु दानवीर और भक्तिमय राजा भी थे। वह अपने द्वार आये अपने किसी भी जन को खाली हाथ नहीं जाने देते थे उनके लिए दान का महत्व सबसे अधिक था ।
एक बार राजा बलि ने अपने गुरु शुक्राचार्य के कहने पर अपने पिता के आसुरी गुणों के प्रभाव से प्रभावित होकर देव लोक पर आक्रमण कर दिया और देवताओ पर विजय प्राप्त करके तोनो लोको में अपना अधिपति स्थापित कर लिया।
राजा बलि सदा अच्छे कार्य ही करते थे लेकिन धीरे धीरे उनके आसुरी गुण उत्पन्न होने लगे। और उन्होंने स्वर्ग लोक पर अकर्मण कर देवराज इंद्र से इंद्र लोक भी छीन लिया।
इंद्रदेव सहित सभी देवता राजा बलि के इस व्यहवार से बहुत चिंतित हो गए। इंद्र देव की माँ अदिति ने इस समस्या को देख भगवान विष्णु से प्रार्थना की फिर भगवान् विष्णु ने अदिति माता के गर्भ से वामन भगवान के रूप में जन्म लिया।
एक समय राजा बलि अपने गुरु शुक्राचार्य के साथ मिलकर एक यज्ञ कर रहे थे तभी उन्हें एक ब्राह्मण की आवाज सुनाई दी। भीखशाम देहि, राजा बलि ने अपने गुरु से कहा गुरुदेव प्रतीत होता है कोई ब्राह्मण देवता द्वार पर आये है।
तभी गुरु शुक्राचार्य ने कहा आप यज्ञ को बीच छोड़कर किसी को भिक्षा देने नहीं जा सकते राजन। राजा बलि ने कहा गुरुदेव हमारे द्वार से कभी कोई खाली हाथ वापस नहीं जाता। ये हमारे धर्म के विरुद्ध है हम उन्हें भिक्षा दिये बिना नहीं जाने दे सकते।
राजा बलि यज्ञ छोड़कर ब्राह्मण देवता के पास जाते है और उन्हें प्रणाम करते है और उनसे कहते है की आपको क्या दूँ? स्वर्ण, हीरे, मोती हम आपको क्या दें। कहिये ब्राह्मणदेव – ब्राह्मण रूप वामन भगवान् कहते है एक ब्राह्मण को भिक्षा के अतिरिक्त और क्या चाहिए राजन आप मुझे भिक्षा में केवल 3 पग भूमि दे दीजिये।
राजा बलि कहते है ब्राह्मण केवल 3 पग भूमि, ये तो बहुत कम है परन्तु 3 पग भूमि आपके किस काम की, 3 पग भूमि में तो कोई मनुष्य खड़ा भी नहीं हो पायेगा, ब्राह्मण कहते है मुझे आप केवल 3 पग भूमि ही दीजिये मेरे किये यही पर्याप्त है। सुना है आपके द्वार से तो कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता राजा ने कहा हाँ ब्राह्मण देव अपने ठीक कहा मैं आपको 3 पग भूमि दान में दूंगा। ब्राह्मण देवता ने कहा ऐसे नहीं संकल्प के साथ आप मुझे ये दान प्रदान करें।
राजा बलि संकल्प लेने के लिए जल उठाते है तभी उनके गुरु शुक्राचार्य उन्हें संकल्प लेने से रोकते है कहते है आप इसे कोई दान मत दीजिये अन्यथा आप अपना सब कुछ खो बैठेंगे। सत्य तो यह है ये कोई ब्राह्मण नहीं किन्तु स्वम श्री हरि विष्णु है, श्री हरि का नाम सुनते ही राजा बलि मन ही मन बहुत हर्षित होते है की स्वम् श्री हरि मेरे द्वार पर भिक्षा मांगने आये है मुझसे बड़ा सौभाग्य और किसका होगा।
राजा बलि अपने गुरु से कहते है हम अपने दान धर्म कार्य से अपने कदम पीछे नहीं हटा सकते ब्राह्मण देव को यदि 3 पग भूमि चाहिए तो वो हम अवश्य देंगे। जैसे ही राजा बलि को ब्राह्मण देव संकल्प के लिए अपने कमंडल में से उनके हाथ में जल देते है शुक्राचार्य उस कमंडल की नली में जाकर बैठ जाते है और जल बाहर नहीं निकल पाता।
ब्राह्मण देवता राजा बलि से कहते है शायद कमंडल में कुछ फस गया है और वे धरती से कुशा का तिनका उठाकर कमंडल की नली में डालते है जिससे दैत्य गुरु शुक्राचार्य आंख फूट जाती है और वह भाग जाते है और राजा बलि 3 भूमि का संकल्प लेते है।
राजा बलि के संकल्प लेते ही वामन भगवान बहुत विशाल रूप धारण कर लेते है और अपने पहले पग से वे समस्त पृथ्वी को नाप लेते है वे अपने दूसरे पग से समस्त आकाश समित सभी लोको को नाप लेते है अब भगवन राजा बलि से कहा राजन अपने मुझे 3 पग भूमि दान ने के लिया था था ये तो दो पग में ही समस्त पृथ्वी समस्य आकाश आ गया अब मैं तीसरा पग कहा रखूं?
तब राजा बलि भगवान वामन के सामने हाथ जोड़कर कहते हे करुणा निधान प्रभु मुझे क्षमा करे, मैं खुद को संसार का बहुत बड़ा दानवीर समझता था मुझे स्वम् पर अहंकार हो गया था अपने मेरे इस अहंकार को नष्ट कर दिया। परन्तु मै अपने लिए गए संकल्प को पूर्ण करूंगा, अब मेरे पास केवल मेरा शरीर है आप अपना तीसरा पग मेरे सिर पर रखे मेरे संकल्प को पूरा करे। भगवान वामन ने तीसरा पग राजा बलि के सिर रखा संकल्प को पूरा किया।
वामन भगवान कहा- बलि तुम्हे स्वम् पर बहुत अहंकार गया था और तुमने अहंकार में आकर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर तीनो लोकों पर अकर्मण करके अधिकार कर लिया। तुम्हे तुम्हारे अहंकार से मुक्त कराना अत्यंत आवश्यक था तुमने कुकार्य किया। परन्तु तुम धर्मी दानी भी हो मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ दानी तो बहुत है पर तुमने तो खुद को ही दान कर दिया। राजन मैं तुम्हे कुछ देना हूँ मांगो बलि क्या चाहिए तुम्हे राजा बलि ने कहा प्रभु आपको चाहने के बाद अब मुझे और नहीं चाहिए मुझे बस हर समय आपका दर्शन होता रहे यही कामना है।
वामन भगवान ने राजा बलि को खुश होकर स्वर्ग से भी विशाल और सुन्दर सुतललोक का राजा, राजा बलि को बनाया और खुद अपने भक्त के लिए उसके द्वारपाल बन गए। वो कहते है न भगवान अपने भक्तो पर अपना सर्वस्व लुटा देते है।
इस प्रकार, वामन अवतार की कथा हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण सन्देश लेकर आती है – आदर्श जीवन कैसे जीना चाहिए, और भगवान के प्रति आदर्श भक्ति कैसे बनानी चाहिए। यह हमें दिखाता है कि सच्चे धर्म और न्याय का पालन करने से हम सफलता, खुशियाँ, और मान-सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। भगवान विष्णु के नियमित लीलाओं में से एक था, जिसका उद्देश्य दरिद्रता, अहंकार, और अधर्म को रोकना था। बलि राजा ने इस क्रिया को सही भावना से स्वीकार किया, और उसे आदरपूर्वक निभाया।
Read More – मत्स्य अवतार, श्री वराह अवतार, नृसिंह अवतार
Table of Contents