श्री अंग जी की कथा- श्री हरि भक्तगण | The Story of Shri Ang ji- devotees of Shri Hari (2023)

भक्त श्री अंग जी कौन थे ?-

महाभाग्वत में बताया गया है राजर्षि अंग के पिता उल्मुक और माता पुष्करिणी की बड़ी तपस्या के बाद उन्हें एक साधु और धार्मिक पुत्र मिला, जिनमें शील, साधुता, और ब्राह्मण्यता जैसे गुण बचपन से ही थे। ये श्री ध्रुव जी के वंशज है |

एक दिन राजर्षि अंग जी ने एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन इसमें वेदवादी ब्राह्मणों के आवाहन के बावजूद देवता यज्ञ में नहीं आए।

इस पर, ऋत्विज यजमान अंग से कहते हैं कि वे जानते हैं कि उनकी यज्ञ सामग्री और वेदमंत्रों में कोई दोष नहीं है, और वे इनको श्रद्धा से तैयार किया है। यह आश्वस्त करते हैं कि उनके यज्ञ का विफल होना किसी दोष की वजह से नहीं है, क्योंकि ऋत्विज यज्ञ के सभी नियमों का पालन करते हैं।

देवताओं का किंचित् तिरस्कार भी नहीं हुआ है, फिर भी कर्माध्यक्ष देवता लोग क्यों अपना भाग नहीं ले रहे हैं? यह सुनकर महाराज उदास हो गए और उन्होंने अपने कर्म को ही कारण मानकर सदस्यों से उनके ज्ञात और अज्ञात अपराध के बारे में पूछा।

इस पर कुछ सदस्यों ने कहा – राजन्! आपके इस जन्म में कोई अपराध नहीं हुआ, लेकिन पूर्व जन्म में कुछ अपराध हुआ है, जिसके कारण आप अब तक पुत्रहीन हैं। हम यकीन रखते हैं कि यदि आप पुत्र की कामना से एक यज्ञ करें, तो यज्ञेश्वर भगवान आपको जरूर पुत्र प्रदान करेंगे।

राजा अंग जी ने एक पुत्र की प्राप्ति के लिए एक यज्ञ किया, और ऋत्विजों ने मेहनत के साथ यज्ञ को सफलता प्राप्त की। जब वे आहुति दे रहे थे, तो एक दिव्य पुरुष स्वर्ण पात्र में सिद्ध खीर के साथ अग्निकुण्ड से प्रकट हुए। राजा ने इस खीर को अपनी अंजलि में लेकर सूँघ कर खुशी-खुशी अपनी पत्नी के पास भेज दिया। रानी ने खीर खाकर गर्भ धारण किया, और जब समय आया, तो उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम बेन था।

राजा अंग की पत्नी किसकी कन्या थी?

राजा अंग जी की पत्नी मृत्यु की पुत्री थी, उसका नाम सुनीथा था। उससे उत्पन्न बालक में अपने नाना मृत्यु के समान गुण, स्वभाव एवं लक्षण थे। चाहे कोई जानवर हो, कोई पक्षी हो, या कोई इंसान हो, वह दुष्ट बच्चा हंसते-हंसते उनकी जान आसानी से ले लेगा।

इसके कारण जनता में बड़ी चिंता फैल गई, और जब भी वह कहीं जाता, लोग डर के मारे चिल्लने लगते। महाराज अंग ने बेटे को सुधारने के लिए कई कोशिशें की, लेकिन वह सफल नहीं हो सका। इससे महाराज बहुत दुखी हुए।

विचार करने लगे कि वे लोग जो बच्चे नहीं पा सकते, उन्होंने पिछले जन्म में श्री हरि की पूजा की होगी, और इससे उन्हें पुत्र के कारण आने वाले कई संकट से छुटकारा मिलता है। इससे सभी प्रकार की बुराईयों से बचाव होता है। इसलिए कौन-कौन समझदार व्यक्ति इस तरह की सोच को अपनाएंगे? लेकिन यह सोचना चाहिए कि यह संतान के लिए नहीं, आत्मा के लिए एक प्रकार का मोहमय बंधन हो सकता है।

फिर से राजा अंग जी के मन में एक ख्याल आया – वह सपूत की बजाय कपूत को ज्यादा अच्छा मानने लगे। क्योंकि सपूत को छोड़ना कठिन होता है, पर कपूत अकेले ही घर को परेशान कर देते हैं। इस तरह के विचारों से राजा अंग जी विश्वास से भर आए और उन्होंने दुनिया से निरंतर आसक्ति त्याग दी।

वे उनको नहीं पा सके, जैसे योगी भगवान को खोजने में समर्थ नहीं होते। रात के समय, वे अपने घर से चुपके से चले गए। उनके प्रजा, पुरोहित, मंत्री, और दोस्त उन्हें ढ़ूंढ़ने के लिए बहुत कोशिश की, पर वे बिना पता लगाए दूर चले गए।

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