श्री पुरूरवा (ऐल जी) : एक महान आध्यात्मिक कथा | Shri Pururava: An Epic Spiritual Tale-2023

श्री पुरूरवा जी की कथा: अद्भुत रोमांचक कहानी-

श्री पुरूरवा जी की कथा: भक्ति और धर्म की प्रेरणादायक कहानी- वैवस्वत मनु के पुत्र नहीं थे। इस समय, भगवान वसिष्ठजी ने उन्हें संतान प्राप्ति के लिए मित्र वरुण देव के यज्ञ का आयोजन किया। मनु की पत्नी श्रद्धा, जिन्होंने यज्ञ की दीक्षा ली थी, वह होता के पास गई और कन्या के लिए प्रार्थना की। फलस्वरूप, होता ने आहुति देने के समय कन्या का संकल्प करके आहुति दी। इस संकल्प के परिणामस्वरूप, मनु के पुत्र की जगह पर एक कन्या पैदा हुई और उसका नाम इला रखा गया।

जब मनु जी ने वह देखा, तो वह खुश नहीं हुए। उन्होंने अपने गुरु वसिष्ठ जी से पूछा कि यह विपरीत फल कैसे हुआ? तब वसिष्ठ जी ने ध्यान से देखा और सब कुछ स्पष्ट हो गया। उसके बाद, वे राजा से पूरी बात कहकर बोले कि अब हम अपने ब्रह्म शक्ति से आपकी इच्छा पूरी करेंगे।

इसके बारे में यह बताया गया है ब्रह्मर्षि वसिष्ठ ने एक कन्या को पुरुष बनाने का निश्चय किया। उन्होंने भगवान नारायण की स्तुति की, जो सबकुछ जानने वाले और सर्वशक्तिमान हैं। भगवान हरि ने इस स्तुति को सुनकर खुश होकर उनसे एक पुरुष के रूप में मांग की और इस प्रार्थना को पुरा किया। इसके परिणामस्वरूप, वह कन्या सुद्युम्न नामक एक श्रेष्ठ पुत्र बन गई।

एक बार जब राजा सुद्युम्न शिकार खेल रहे थे, तो उन्होंने सुमेरु पर्वत के नीचे स्थित गिरिजा शंकर-विहार वन में पहुंच गए। जैसे ही वे वहां पहुँचे, एक पुराना शिव जी का श्राप याद आया, जिसमें कहा गया था कि जो भी वन में आएगा, वह स्त्री बन जाएगा। इस कारण, सभी मर्द स्त्री बन गए। इसलिए वे सब अपने अनुचरों के साथ इला नाम की कन्या बन गए और एक वन से दूसरे वन में घूमने लगे।

उस समय चंद्रमा के पुत्र बुध, जो नजदीकी जंगल में तपस्या कर रहे थे, स्त्री रूप धारी सुद्युम्न को देखकर मोहित हो गए और उन्होंने चाहा कि वह उनके पति बनें। फिर उन दोनों में प्यार हो गया। इसके परिणामस्वरूप, बुध ने उनसे पुरूरवा नामक पुत्र को जन्म दिया। कुछ समय बाद सुद्युम्न ने महान गुरु देव वसिष्ठजी की स्मृति की।

वे आए और जब वे राजकुमार की स्थिति को देखकर उन पर दया आ गई। उन्होंने श्री शंकर की पूजा करके सुद्युम्न को पुनः पुरुष बनाने के लिए प्रार्थना की। भगवान शिव ने अपना शाप वापस लिया और वसिष्ठ जी की विनय को सुनते हुए वह वर दिया कि वे एक महीने के लिए पुरुष और एक महीने के लिए स्त्री बनेंगे। बुध के पुत्र पुरूरवा ही इस क्षेत्र में गर्भ से उत्पन्न होने के कारण ऐल कहलाए।

स्वर्ग की सबसे अद्भुत अप्सरा उर्वशी एक दिन सभा में इंद्र के साथ बैठी थी। तभी देवर्षि नारद जी ने पुरूरवा के गुण, रूप, आचरण, और बहादुरी की कथा सुनाई। उर्वशी उसकी यह कथा सुनकर खुशी और प्रभावित हो गई और वह स्वर्ग से पुरूरवा के पास आ गई।

वरुण के द्वारा उसको मर्त्य लोक में जाने का श्राप था, लेकिन उर्वशी ने तय किया कि वह पुरूरवा के साथ समय बिताकर उस श्राप की समय सीमा का पालन करेगी। इस तरह, वह उनके साथ विचरण करने का निश्चय किया।

यहां, देवकन्या उर्वशी को देखकर राजा पुरूरवा भी बहुत बेचैन हो गए। इस परिणामस्वरूप, उनमें प्यार बढ़ गया। शाप के अवधि समाप्त होने तक पुरूरवा और उर्वशी एक साथ वक्त बिताते रहे। उर्वशी ने स्वर्ग जाने का निर्णय लिया और बिना किसी झिझक के वह उन्हें छोड़कर स्वर्ग चली गई। उसके जाने के बाद, पहले तो महान सम्राट पुरूरवा अपनी प्रेम-विचेद से बहुत उदास हो गए।

परंतु पीछे शोक हट जाने पर उन्हें बड़ा वैराग्य बड़ा हुआ और तब उनके हृदय से जो उद्गार निकला है, वह परमार्थ पथ के पथिकों के लिये बड़े ही महत्वका है। यथा अपने वास्तविक कल्याण को समझने वाले विवेकी पुरुष को चाहिये कि वह स्त्रियों एवं स्त्रीलम्पट पुरुषों का संग न करे। विषय और इन्द्रियों के संयोग से ही मन में विकार होता है, अन्यथा विकार का कोई अवसर ही नहीं है।

जो वस्तु कभी देखी या सुनी नहीं गयी है, उसके लिये मन में विकार नहीं होता। जो लोग विषयों के साथ इन्द्रियों का संयोग नहीं होने देते, उनका मन अपने-आप निश्चल होकर शान्त हो जाता है; अतः मन, वाणी और श्रवण आदि इन्द्रियों से स्त्रियों और स्त्री लम्पटों का संग कभी नहीं करना चाहिये।

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