श्री भगीरथ जी कौन थे ?
भगीरथ का गंगा प्रयाण: -दिलीप राजा के पुत्र थे और वे इक्ष्वाकु वंश के सम्राट थे। उन्होंने गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया था और इस कार्य में देवताओं की सहायता की।
उनके पूर्वजों ने कपिल से प्राप्त क्रोधाग्नि से भस्मीभूत हो गए सगर पुत्रों को उद्धार करने के लिए गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए बड़ी कोशिशें की थी, और वे तपस्या करते-करते अपने प्राण त्याग दिए थे, परंतु उनके कार्य सफल नहीं हो सके।
अब महाराज भगीरथ राज्य के सिंहासन पर बैठे थे और वे एक प्रभुप्राप्ति के प्रतापशाली राजा थे।
ये देवताओं की सहायता करने के लिये स्वर्ग में जाते और इन्द्र के साथ उनके सिंहासन पर बैठ कर सोम रस पान करते। उनकी प्रजा सब तरह से खुश थी। उनकी उदारता, प्रजावत्सलता, और न्यायशीलता का उनके घरों में प्रसिद्ध था। उनके मन में एक बड़ी चिंता थी, क्योंकि अब तक गंगा जी पृथ्वी पर नहीं आई और उनके पूर्वजों का उद्धार नहीं हुआ था।
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भगीरथ की तपस्या और गंगा का उत्पत्ति कथा-
एक दिन उन्होंने अपने राज्य के मंत्रियों को बुलाया और उनको संभालने का कार्य सौंप दिया। फिर वे स्वयं तपस्या करने के लिए निकल पड़े। वे गोकर्ण नामक स्थान पहुँचकर वहाँ गहरी तपस्या में लग गए। उनकी तपस्या ने ब्रह्मा को संतुष्ट किया, और ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने के लिए कहा। इस पर भगीरथ ने कहा, “प्रभो, कृपया ऐसा उपाय बताएं, जिससे हमारे पितर द्वितीय अंजलि मिलाने के बाद गंगाजल से स्नान कर सकें और गंगा जी आकर उनकी राख को सींच दें, तब उनके उद्धार में कोई शंका नहीं रह जायगी।
ब्रह्मा जी ने कहा, “हिमालय की बड़ी कन्या गंगा जल्दी पृथ्वी पर आएगी। इसलिए आपको महादेव (भगवान शिव) की पूजा करनी चाहिए, ताकि आपकी इच्छाएं पूरी हो सकें।” इसके बाद, उन्होंने एक वर्ष तक महादेव की पूजा की, अपने पैर के अँगूठे पर खड़े रहकर। भगवान शिव खुश हो गए और उनकी प्रार्थना सुन ली।
इसके बाद, गंगा महादेव के सिर पर बहने लगी, लेकिन वह इतनी तेजी से बह रही थी कि उसकी तेज धार शिव को अपने साथ ले जाने की भांति लग रही थी। महादेव नाराज हो गए और उन्होंने अपने बालों में गंगा को छुपा लिया। गंगा बाहर नहीं निकल सकी।
भगीरथ ने भगवान शंकर से विनती की कि वह गंगा नदी को पृथ्वी पर लाएं। शंकर ने उनकी प्रार्थना सुनी और गंगा को विन्दु सरोवर की ओर बहने के लिए उसके धारण किए। इसके परिणामस्वरूप, गंगा के सात प्रमुख धाराएँ उत्पन्न हुईं। इनमें से एक धारा भगीरथ के पीछे बहती थी।
भगीरथ गंगा के साथ दिव्य रथ पर चढ़कर उसका अनुगमन करने लगे। वे गंगा के पीछे-पीछे चलते गए और गंगा सागर के किनारे पहुँचे, जहाँ पूर्वकाल में कपिल मुनि द्वारा उनके पूर्व पुरुषों की दहली हुई देहें थीं।
इस मार्ग पर कई रुकावटें आईं, परंतु भगवान की कृपा से वे सभी पार किए गए। वहाँ पहुँचकर गंगा ने उनके चाचाओं की अशेष भस्म को अपनी धारा से प्लावित कर दिया, जिससे उनके पुरुष आत्माएँ मोक्ष प्राप्त कर सकीं।
भगीरथ और गंगा की बातचीत: संसार को पावन करने वाली गंगा और साधुओं की महिमा-
भगवत पुराण में गंगा और राजा भगीरथ के बीच की बातचीत का वर्णन बहुत ही महत्वपूर्ण है। गंगा जी ने पूछा, “जब भूतल के प्राणी मेरे स्नान से अपने पापों को धो लेंगे, तो उनके पाप मेरे अन्दर चले जाएंगे। इससे मुझे कैसे मुक्ति मिलेगी?”
राजा भगीरथ ने बहुत ही ध्यानपूर्वक और भगवद्भाव से उत्तर दिया, जिससे साधुओं की महिमा दिखती है। उन्होंने कहा, “यदि साधुओं ने आपकी धर्मिकता और ईमानदारी के साथ स्नान किया है, तो उनके पापों का प्रभाव मेरे जल में होगा। और जब मैं आकर्षित होकर गंगा की धारा में बहूं मिलाऊंगा, तो वह पाप हो जायेंगे। साधुओं के पाप से मुझे छुटकारा मिलेगा, क्योंकि मैं आपकी ईच्छा के अनुसार पावन कार्य करूंगा।”
इस उत्तर से हमें यह सिखने को मिलता है कि ईमानदारी और धर्मिकता का महत्व हमारे कर्मों को पवित्र बनाने में होता है, और साधुओं के पापों से हमें छुटकारा मिलता है।
भगीरथ ने कहा- जिनकी विषय वासना निर्मूल हो गयी है और जो शान्त, ब्रह्मनिष्ठ एवं संसार को पावन करने वाले हैं, ऐसे महापुरुष जब तुम्हारे अन्दर स्नान करेंगे तो तो उनके स्पर्श से तुम्हारे सभी पापों की धूल मिल जाती है, क्योंकि वे भगवान श्रीहरि के प्रति हमेशा समर्पित रहते हैं। जैसे कि विश्व को पवित्र करने वाली श्री गंगा, जिनके स्पर्श से पवित्र हो जाती है।