“Gaj Ki Kahani: गज की कहानी” -गजराज (हाथी) पूर्व जन्म में कौन थे?
गजराज-ग्राह की कथा यह है – द्रविड़ देश में एक पाण्ड्य राजा थे जिनका नाम इंद्रद्युम्न था। वे हमेशा भगवान की याद, ध्यान, पूजा और नाम जप में रत रहते थे। एक दिन, वे कुलाचल पर्वत पर जाकर मौन व्रत ग्रहण किया और श्रीहरि की पूजा करने लगे।
उस समय, वहाँ गुरु अगस्त्य जी भक्तों के साथ आए। राजा उस समय भगवान की पूजा कर रहे थे, इसलिए वह न तो कुछ बोले और न ही उन्होंने उठकर मुनिका सत्कार किया। अगस्त्य जी इस बात से बहुत नाराज़ हुए। उन्होंने क्रोधित होकर यह कहा: “यह मूर्ख व्यक्ति हाथी की तरह व्यवहार कर रहा है, ब्राह्मण का अपमान कर रहा है, इसलिए उसे हाथी की योनि प्राप्त हो।”
अगस्त्य जी ने शाप दिया और चले गए। शरीर छूटने के बाद उनके शाप के कारण, राजा इंद्रद्युम्न त्रिकूट पर्वत के बीच क्षीर सागर में हाथी बन गए। वे बहुत शक्तिशाली थे। उनके डर से वहाँ के वनों में छुपे हुए व्याघ्र और सिंह भी थे। एक दिन, गज राज अपने युवा हाथियों और हाथी के बच्चों के साथ जंगल में घूम रहे थे। जब धूप बढ़ गई, तो उन्होंने प्यास महसूस की, और वे एक सुंदर सरोवर की ओर बढ़े। सरोवर बड़ा था और उसमें साफ पानी था। कमल फूले हुए थे। सभी हाथियों ने पानी पिया, नहाया, और आपस में खेलते हुए बहुत मजा किया।
गज-ग्राह(मगरमच्छ) का युद्ध-
महर्षि देवल के श्राप के कारण उस झील में हुहू नामक गंधर्व रहता था। वह ग्राह(मगरमच्छ) जलक्रीड़ा करते समय चुपचाप गजराज के पास आया और उसके पैर पकड़कर पानी में खींचने लगा। गजराज चिल्लाया, अन्य हाथियों ने भी मदद करने की कोशिश की, लेकिन ग्राह(मगरमच्छ) बहुत ताकतवर था। अन्य हाथी जल्द ही थक गये। कभी ग्राह जल की ओर खींच ले जाता और कभी गजराज उसे किनारे के पास खींच लाते।
इस तरह, दोनों एक-दूसरे को खींच रहे थे। गजराज के पास हजारों हाथियों का बड़ा बल था, लेकिन वह कम होता जा रहा था। वे थक जाते थे। ग्राह जल के अंदर रहने वाला प्राणी था। वह इन हाथियों को जल में बढ़ते हुए देख रहा था। जब ग्राह ने इन हाथियों को जल में डूबने की कोशिश की, तो गजराज को लगा कि उसे अब बचाव के लिए भगवान की शरण में जाना चाहिए।
विष्णु भगवान ने हाथी को डूबने से बचाया-
पूर्व जन्म की आराधना से, उनकी मानसिक शक्ति भगवान की ओर बढ़ गई। पास से एक कमल का फूल तोड़कर उसे अपने हाथ में लिए और भगवान श्रीहरि को पुकारने लगा |
जब कोई बहुत उत्सुक होकर भगवान को बुलाता है, तो भगवान तुरंत उसकी प्रार्थना का सुनते हैं। गजराज बहुत उत्सुक भाव से भगवान का स्तुति कर रहे थे, और इसके परिणामस्वरूप, देवता भी गजराज के साथ भगवान की प्रशंसा कर रहे थे। इस समय, भगवान ने गरुड़ पर सवार होकर वहाँ प्रकट हो गए। गजराज ने खुशी-खुशी फूलों को ऊपर फेंककर कहा, “नारायण, सम्पूर्ण जगत के आदरणीय गुरु, भगवान! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।”
भगवान् के एक हाथ से गजराज को ग्राह के सहित जल में से निकाल कर पृथ्वी पर रख दिया। अपने चक्र से ग्राह का मुख फाड़ कर भगवान् के हाथी को छुड़ाया। भगवान के चक्र से मरकर ग्राह ऋषि के शाप से गया। उसने भगवान् की स्तुति की और उनकी आज्ञा लेकर अपने लोक को चला छूट कर फिर गन्धर्व गया। हाथी को भगवान् का स्पर्श मिला था। उनके अज्ञान का बन्धन तत्काल नष्ट हो गया। उनका हाथी का शरीर सुन्दर दिव्य चतुर्भुज रूप में परिणत हो गया। भगवत्पार्षदों का रूप पाकर वे भगवान् के साथ उनके नित्य धाम में पहुँच गये।
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