अजामिल कथा: “नारायण” नाम से अजामिल का उद्धार |Ajamil’s Story: The Redemption of Ajamil through the Name “Narayana” | Ajamil Katha -2023

अजामिल नाम का कन्‍नौज के च्युत जाति के ब्राह्मण ने एक कुलटा दासी को अपनी पत्नी बनाया था। वह धन को जैसे भी प्राप्त करके उस दासी को खुश रखने के लिए समर्थ थे। लेकिन वह अपने माता-पिता की सेवा और अपनी पत्नी के साथ अच्छा व्यवहार करने का कर्तव्य भूल गए थे।

“नारायण” नाम से अजामिल पर संतों की कृपा हुई-

एक बार की बात है, गांव में एक संत आए। वहां कुछ बच्चे खेल रहे थे। संत ने बच्चों से पूछा, “क्या तुम मुझे भिक्षा दिला सकते हो, जहां भिक्षा मिलेगी?” बच्चों ने मजाक में अजामिल के घर का पता बता दिया।

संत अजामिल के घर गए और भिक्षा के लिए आवाज दी। अजामिल ने बाहर से कहा कि यहां कुछ नहीं है और संतों को तिरस्कार किया।

फिर, ब्राह्मण की पत्नी बाहर आई और कही, “ऐसा नहीं कहो, ये संत हैं। वे संतों से कहते हैं कि मैं आपको भोजन कराऊं।” संतों ने ब्राह्मण की पत्नी से सूखा सामान मांगा, क्योंकि वे खुद तैयार करना चाहते थे।

भोजन तैयार होने के बाद, संतों ने भगवान के लिए भोग लगाया और अजामिल को भोजन करने के लिए बुलाया। अजामिल ने अपने परिवार के साथ उनके साथ भोजन किया।

आखिरी में संतों ने कहा, “दक्षणा नहीं दोगे हमें?” तब अजामिल ने कहा, “यहाँ से चले जाओ, कोई दक्षणा नहीं है।” तब अजामिल की पत्नी ने पूछा, “तुम्हें क्या चाहिए दक्षणा?” संत भगवान ने जवाब दिया, “तुम्हारे पति कभी भगवान का नाम नहीं लेते, तुम अपनी आखिरी संतान का नाम नारायण रखना वही हमारी दक्षण होगी |

उस कुलटा दासी से अजामिल के कई सन्तानें हुईं। पहले का किया पुण्य सहायक हुआ, किसी सत्पुरुष का उपदेश काम कर गया। अपने सबसे छोटे पुत्र का नाम अजामिल ने ‘नारायण’ रखा। बुढ़ापे की अंतिम संतान पर पिता का बहुत अधिक मोह होता है। अजामिल के प्राण वैसे ही उस छोटे बच्चे में ही थे। इसी मोह भावना के कारण मृत्यु का समय आ गया।

अजामिल के मुख से ‘नारायण ! नारायण ! नाम सुन कर भगवत् पार्षदों आये-

यमराज के डरावने दूत ने बड़ी भयंकर पाश लिए और डरा देने की धमकी दी, फिर उन्होंने अजामिल के सूक्ष्म शरीर को पकड़ लिया। जब यह भयंकर दूत आए, तो ब्रह्मिण अब्राह्मण डर के मारे अपने छोटे बच्चे को खेलते हुए बुलाया और उसको डरते स्वर में पुकारा, “नारायण! नारायण!

“इस पुकार को सुनकर भगवत्प्रेमी पर्शाद भगवान के साथ आए और उन्होंने उन भयानक दूतों के पाश को तोड़ दिया। यमदूत बिना कुछ कहे विचलित हो गए। उनके साथ ऐसा अपमान पहले कभी नहीं हुआ था। फिर उन्होंने बड़े साहस से पूछा, “तुम कौन हो? हम धर्मराज के सेवक हैं और हम उनकी आज्ञा के अनुसार पापियों को लेजाते हैं। तो तुम हमें हमारे कर्तव्य का पालन करने में क्यों रोक रहे हो?”

जब भगवत् पार्षदों ने धर्मराज के सेवको को फटकारा दिया-

भगवान के सेवकों ने कहा, “तुम तो वास्तव में धर्मराज के सेवक हो, परंतु तुम्हें धर्म का ज्ञान नहीं है। वह व्यक्ति, जानकर या अनजान में, जिसने ‘भगवान नारायण’ का नाम उच्चारण किया है, वह पापी नहीं रहता। यह व्यक्ति अपने पुत्र के बहाने सही नारायण प्रभु का नाम लिया है, इसलिए उसके परमात्मा के प्रति कोई पाप नहीं होता। इसलिए, तुम्हें किसी निष्पाप व्यक्ति को दोष न देने की दृढ़ता नहीं दिख

यमदूत ने एक ब्राह्मण को छोड़कर यमलोक आकर अपने स्वामी के सामने हाथ जोड़कर पूरी घटना सुनाई। यमराज ने कहा, “आपको यमलोक जाकर केवल उन पापी लोगों को लेना चाहिए जिनकी जीभ से कभी भगवान का नाम नहीं आया, जिन्होंने कभी भगवत कथा नहीं सुनी, जिनके पैर कभी भगवान के पवित्र स्थलों पर नहीं गए और जिन्होंने कभी भगवान की मूर्ति की पूजा नहीं की।”

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