श्री विभीषण जी – राक्षस वंश से उत्पन्न होते हुए भी वैष्णवों के गुणों का प्रतिनिधित्व करते हुए ब्रह्मा जी के सामने प्रकट हुए।
श्री विभीषण जी, जो कि राक्षस वंश से उत्पन्न हुए, बहुत ही प्रतिष्ठित वैष्णव भक्त थे। उनका जन्म पुलस्त्य के पुत्र विश्रवा से हुआ था। विश्रवा के सबसे बड़े पुत्र कुबेर थे, जिन्हें ब्रह्मा जी ने चौथे प्रजापति के रूप में चुना। विश्रवा की एक असुर कन्या से रावण, कुम्भकर्ण, और विभीषण जन्मे। ये तीनों भाइयों ने अत्यंत तपस्या की, जिसे देखकर ब्रह्मा जी ने उनके सामने प्रकट होकर उनकी आदर्श तपस्या को प्रशंसा की।
रावण ने एक वरदान माँगा, वह चाहता था कि वह त्रैलोक्यों का विजयी बने। कुम्भकर्ण ने अपनी ओर से छः महीने की नींद की माँग की। लेकिन विभीषण ने कुछ भी ऐसा माँगा नहीं। उन्होंने ब्रह्मा जी से भगवद्भक्ति की माँग की। ब्रह्मा जी ने सबको उनकी इच्छानुसार वरदान दिया और चले गए। रावण ने कुबेर को निकाल कर अपनी राजधानी लंका बनाई, जबकि विभीषण ने भगवद्भक्ति के साथ अपने भाई रावण के साथ लंकापुरी में रहने का निर्णय लिया।
श्री हनुमान जी की खोज में श्री विभीषण जी का घर -राम नाम और भक्ति का प्रतीक-
रावण ने त्रैलोक्य पर विजय प्राप्त की, और उन्होंने दण्डकारण्य से पंचवटी पहुंचकर सीता जी को हर लिया। विभीषण ने उसे समझाने की कोशिश की कि ‘दूसरे की पत्नी को इस तरह अपहरण करना गलत है। तुम नहीं समझ रहे हो कि श्री राम परमात्मा हैं और उनसे विरोध करना गलत है।’ लेकिन रावण ने अपने भक्त भाई की सलाह को नजरअंदाज किया और अपने मनमर्जी पर अड़ा रहे रहे। सीता जी को खोजने के लिए लंका में श्री हनुमान आए, वह द्वार-द्वार और हर जगह में सीता जी की खोज करते रहे।
विभीषण जी ने खोज के दौरान हनुमान जी ने उनके घर को भी देखा। उनके घर के चारों ओर राम नाम लिखे हुए थे और तुलसी के पौधे लगे हुए थे। हनुमान जी बहुत ही हैरान हो गए और सोचने लगे – “बहुत ही अद्भुत समय है! अरुणोदय के समय, श्री राम का नाम जपते हुए, विभीषण जी जाग रहे हैं।” हनुमान जी को यह दृश्य देखकर बहुत आनंद आया और वे सोचने लगे – “यह बिल्कुल अद्वितीय है!”
फिर विभीषण जी ने कहा – “मुझे लगता है कि आप मेरे प्रति विशेष प्रेम रखते हैं। मेरे भाई-बहनों के साथ मेरा संबंध थोड़ा अलग है, लेकिन आप मुझे या तो सीधे श्री राम हो सकते हैं या उनके भक्त हो सकते हैं।” तब हनुमान जी ने अपना पूरा परिचय दिया।
इसके बाद, जब विभीषण जी ने जान लिया कि हनुमान जी भगवान राम के दूत हैं, तो वे बहुत खुश हुए और आपसी में गहरा आपसी प्रेम बढ़ गया।
तुम अपने को इतना नीच, दीन क्यों समझते हो ? अरे, प्रभु केवल दीनों का स्वामी है और केवल पतितों का ही शुद्ध है।; तुम स्वयं सोचो मैं ही कौन-सा कुलीन हूँ। जब उन्होंने मेरे जैसे चंचल वानर को गोद ले लिया तो आपके बारे में क्या कहें? विभीषणजी ने कहा- हमने आपस में बात की। हनुमान जी के द्वारा सीता जी का पता पूछने पर उन्होंने सब बातें बतायीं।
हनुमान जी का उत्पात और विभीषण जी का बलिदान: सीता की खबर से लंका में हुआ विस्फोटक विवाद-
सीता जी की खबर मिलने पर हनुमान जी ने उत्पात मचा दिया, और उन्हें पकड़ लिया गया। उन्हें मारने की आज्ञा दी गई। विभीषण जी ने दूत को मारने को अन्याय बताया और कुछ और दंड देने की सलाह दी। इसका परिणामस्वरूप, विभीषण जी के मंदिर को छोड़कर पूरी लंका जल गई।
श्री राम जी ने लंका पर हमला किया और विभीषण जी ने रावण को समझाने की कई कोशिशें की, कि वह सीता जी को छोड़ दें। लेकिन रावण ने क्रोध में आकर विभीषण जी को मार दिया और कहा, “यह मेरा निर्णय है, क्या गीत उनके गाता है? तुम चलो यहाँ से, मैं तुम्हारे यहाँ रहने का अनुमति नहीं देता। अब जब भगवान ने गुरुता देने का आदेश दिया है, तो मैं उनकी शरण में जा रहा हूँ।”
श्री राम जी के अवधपुरी तक पहुँचने के बाद विभीषण जी को भगवान् श्री राम का सम्मान और अजर-अमर होने का आशीर्वाद-
वे आकाश मार्ग से भगवान् के यहाँ पहुँचे। उन्हें राक्षस जान कर भालु-वानर भाँति-भाँति के तर्क करने लगे। किसी ने कुछ कहा, लोग कुछ कह रहे थे, लेकिन भगवान, शरणागतों के प्रतिपालक, ने कहा, ‘वहने ने एक बार कहा है – मैं तुम्हारी शरण हूँ। यह काफी है; मैं उसे अब छोड़ नहीं सकता।’
भगवान ने उन्हें बुलाकर तुरंत लंका के राज्य का दान किया। विभीषण की पूर्व कामना तो उनके चरणों में खो गई थी, लेकिन फिर भी भगवान अपने भक्तों की इच्छाओं को पूरा करने में सफल हुए। विभीषण ने अपनी सम्पूर्ण संपत्ति को भगवान के पादों में समर्पित कर दिया और हर तरह से भगवान की सेवा की।
रावण सपरिवार मारा गया। विभीषण को राज्य मिला। उन्होंने वानर-भालुओं का बड़ा सम्मान किया, पुष्पक विमान पर चढ़कर वे श्री रामजी को अवधपुरी तक पहुँचाया। वहाँ भगवान ने अपने प्रिय सखा के रूप में इनकी प्रशंसा की। भगवान ने इन्हें बड़ा सम्मान दिया और उनको अजर-अमर होने की आशीर्वाद दिया। प्रातःस्मरणीय सात चिरंजीवियों में भक्तवर विभीषण भी शामिल हैं और वे अब तक जीवित हैं। भगवान अपने भक्तों के प्रति कितने दयालु हैं।
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