विष्णु के 8वें अवतार भगवान श्री कृष्ण: प्रेम और दर्शन की कहानी”
श्री कृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु के एक प्रमुख 8वें अवतारों हैं। भगवान अपने भक्तो के साथी, गुरु, और आराध्य भक्त भी हैं। भगवद गीता में उनका उपदेश और ब्रज भाषा में गोपियों के साथ रासलीला का वर्णन आता है। कृष्ण को बाल लीला, माखन चोरी, गोपीयों के संग रास लीला, और विराट रूप का दर्शन करने वाले रूप में पूजा जाता है। उनकी दिव्य लीलाएं भक्तों को भगवान की अनंत लीलाओं के प्रति आकर्षित करती हैं और उन्हें मानव जीवन के नीति-नियमों को सीखने का सार्थक साधन करती हैं। आइये शुरु करते है भगवान् श्री कृष्ण की अलौकिक कथा
‘साधु-पुरुषों के परित्राण, दुष्टों के विनाश और धर्मसंस्थापन के लिये मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ’–अपने इस वचन को पूर्ण चरितार्थ करते हुए अखिलरसामृतसिन्धु, षडैश्वर्यवान्, सर्वलोकमहेश्वर स्वयं भगवान् श्री कृष्ण भाद्रपद की कृष्णाष्टमी की अर्धरात्रि को कंस के कारागार में परम अद्भुत चतुर्भुज नारायण रूप से प्रकट हुए।
वात्सल्यभावभावितहृदया माता देव की की प्रार्थना पर भक्तवत्सल भगवान् ने प्राकृत शिशु का-सा रूप धारण कर लिया। श्री वसुदेव जी भगवान् के आज्ञानुसार शिशु रूप भगवान को नन्दालय में श्री यशोदा के पास सुलाकर बदले में यशोदात्मजा जगदम्बा महामाया को ले आये।
गोकुल में नन्दबाबा के घर ही जातकर्मादि महोत्सव मनाये गये। भगवान् श्री कृष्ण अवतार की जन्म से ही सभी लीलाएँ अद्भुत और अलौकिक हैं। पालने में झूला रहे थे—उसी समय लोकबालघ्नी रुधिराशना पिशाचिनी पूतना के प्राणों को दूध के साथ पी लिया। संकट भंग किया। तृणावर्त, बकासुर एवं वत्सासुर को पीस डाला।
सपरिवार धेनुकासुर और प्रलम्बासुर को मार डाला। दावानल से घिरे गोपों की रक्षा की। कालिया नाग का वध किया।
नन्दबाबा को अजगर से छुड़ाया। इसके बाद गोपियों ने भगवान को पति रूप से प्राप्त करने के लिये व्रत किया और भगवान् श्री कृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें वर दिया। भगवान् ने यज्ञ-पत्नियों पर कृपा की। गोवर्धन-धारण की लीला करने पर इन्द्र और कामधेनु ने आकर भगवान् का यज्ञाभिषेक किया। शरद ऋतु की रात्रियों में ब्रज-सुन्दरियों के साथ रास- क्रीड़ा की। दुष्ट शंखचूड़ यक्ष, अरिष्ट और केशी का वध किया।
तदनन्तर अक्रूर जी मथुरा से वृन्दावन आये और उनके साथ भगवान् श्री कृष्ण तथा बलराम जी ने मथुरा के लिये प्रस्थान किया। श्री बलराम और श्याम ने मथुरा में जाकर वहाँ कुवलयापीड़ हाथी, मुष्टिक, चाणूर एवं कंस आदि का संहार किया।
माँ देवकी की एवं पिता वसुदेव को कारागार से मुक्त कराया तथा राजा उग्रसेन को भी कारागार से मुक्त कराकर राजसिंहासन पर बैठाया। फिर वे सान्दीपनि गुरु के यहाँ विद्याध्ययन करके उनके मृत-पुत्रों को लौटा लाये। जिस समय भगवान् श्री कृष्ण मथुरा में निवास कर रहे थे, उस समय उन्होंने उद्भव और बलराम जी के साथ यदुवंशियों का सब प्रकार से प्रिय और हित किया।
जरासंध कई बार बड़ी-बड़ी सेनाएँ लेकर आया और भगवान् ने उनका उद्धार करके पृथ्वी का भार हलका किया। कालयवन को मुचुकुन्द से भस्म करा दिया।
द्वारका पुरी बसाकर रातों-रात सबको वहाँ पहुँचा दिया। स्वर्ग से कल्पवृक्ष एवं सुधर्मा सभा ले आये। भगवान् ने दल-के-दल शत्रुओं को युद्ध में पराजित करके श्री रुक्मिणी का हरण किया। बाणासुर के साथ युद्ध के प्रसंग में महादेवजी पर ऐसा बाण छोड़ा कि वे जँभाई लेने लगे और इधर बाणासुर की भुजाएँ काट डालीं।
प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भौमासुर को मारकर सोलह हजार कन्याएँ ग्रहण कीं। शिशुपाल, पौण्ड्रक, शाल्व, दुष्ट दन्तवक्त्र, मुर, पंचजन आदि दैत्यों के बल-पौरुष को चूर्णकर उनका वध किया। महाभारत-युद्ध में पाण्डवों को निमित्त बनाकर पृथ्वी का बहुत बड़ा भार उतार दिया और अन्त में ब्राह्मणों के शाप के बहाने उद्दण्ड हो चले यदुवंश का संहार करवाया।
श्री उद्धव जी की जिज्ञासा पर सम्पूर्ण आत्मज्ञान और धर्मनिर्णय का निरूपण किया। इस प्रकार भगवान् श्री कृष्ण की अनन्त अद्भुत अलौकिक लीलाएँ हैं, जो जगत्के प्राणियों को पवित्र करने वाली हैं।
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