Bhakt Maharaj Muchukund ji Ki Katha
जिस महान कुल में भगवान श्री राम अवतरित हुए सूर्यवंश का इक्ष्वाकु कुल विशेष रूप से माना जाता है। इस कुल में मान्धाता जैसे भी राजा भी इसी कुल में जन्मे गए। राजा मान्धाता के पुत्र महाराज मुचुकुंद थे। वे महान राजा के साथ बड़े पराकर्मी और बली थे। राजा मुचुकुंद इतने बलशाली थे न केवल पृथ्वी के राजा बल्कि देवलोक के राजा इंद्र को भी उनकी मदद की आवश्यकता पड़ती थी।
एक बार दैत्यों ने इंद्रलोक पर आकर्मण कर दिया। और देवताओ ने उन दैत्यों का सामना करने के लिए महाराज मुचुकुन्द (Maharaj Muchukund) की मदद ली। महाराज ने कई वर्षो तक दैत्यों से अपने पराकर्म और बल द्वारा दैत्यों का सामना किया और विजय प्राप्त की।
Maharaj Muchukund- देवताओं की रक्षा के लिये असुरों से लड़े
तब देवराज इन्द्र ने महाराज मुचुकुन्द से कहा- ‘राजन्! अपने हमारी बहुत सहायता की है आप ने परिवार, स्त्री-पुत्रों, प्रजा को छोड़कर आप हमारी रक्षा में लग गये। यहाँ स्वर्ग में जितना एक वर्ष होता है वहाँ पृथ्वी पर उतने समय को 360 वर्ष कहते है। आप तो आप हजारों वर्षों से यहाँ हैं। अतः अब आपकी राजधानी का कहीं पता भी नहीं है; आपके परिवार वाले सब काल के मुख में चले गये।
राजन हम आपसे बहुत खुश है। आप हमसे मोक्ष को छोड़कर कुछ भी वरदान मांग सकते है। तव महाराज मुचुकुन्द ने विचार किया की वह कई वर्षो दैत्यों के साथ युद्ध की वजह से सोये नहीं है उस युद्ध में उन्होंने बहुत संघर्ष किया था अब वह सोना चाहते थे। फिर, उन्होंने अपनी इच्छा बताई कि वे भरपूर निंद्रा में सकें और कोई उनकी नींद को नहीं तोड़ सके।
महाराज मुचुकुन्द (Maharaj Muchukund) ने देवराज इंद्र से ये अभी कहा यदि जो कोई भी मेरी नींद तोड़े उसका तुरंत नाश हो जाये। तब देवराज ने उनकी इच्छा को पूरा किया और कहा कि वे पृथ्वी पर जाकर आराम से सो सकते हैं। जो भी उनकी नींद को तोड़ेगा, वह तुरंत नष्ट हो जाएगा। महाराज मुचुकुंद पृथ्वी पर आकर गुफा में सो गए और वहां सोते समय कई युग बिता दिए।
फिर युग आया द्वापर, और इस द्वापर युग में यदु वंश में भगवान श्री कृष्ण अवतरित हुए। एक समय, भगवन से बेर करने वाले कालयवन ने मथुरा को घेर लिया और उसे बर्बाद करने की योजना बनाई और भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्तियों से मधुरा को बचाया।
कालयवन घमंडी और बलशाली था, और वह भगवान के पीछे पड़ा गया। भगवान जानबूझकर मैदान से भाग कर एक गुफा में आ छुपे भगवान, जहां महाराज मुचुकुंद सो रहे थे। क्युकि श्री कृष्ण उसके अंत के लिए कुछ ओर ही सोच रखा था।
महाराज मुचुकुंद (Maharaj Muchukund – महाराज मुचुकुन्द ने देवराज से क्या वरदान माँगा ?) सोते देखकर भगवान् ने धीरे से अपना पीताम्बर ओढ़ा दिया, और खुद छिपकर सब दृश्य को देखने लगे। क्योंकि छिपकर तमाशा देखने से आपको बड़ा आनंद आता है। महाराज मुचुकुन्द को भगवान् समझकर कालयवन उन्हें जगाने के लिए जोर से पीताम्बर खींचा, और महाराज तुरंत उठे। महाराज मुचुकुंद देखते ही कालयवन वहीं खड़ा खड़ा भस्म हो गया।
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अब महाराज यहाँ-वहाँ देखने लगे।उन्होंने देखा कि भगवान की शक्ति से पूरी गुफा जगमगा रही थी। उनकी नज़रे भगवान श्री कृष्ण पर पड़ी भगवान को देखते ही उनकी आँखों से अश्रु गिरने लगे समझते देर नहीं लगती ये वही परमेश्वर, आदिशक्ति, परमात्मा का प्रत्यक्ष भगवान श्री कृष्ण है और वे भगवान के पास उनकी शरण में गए उन्हें दंडवत प्रणाम किया।
श्री कृष्ण ने मुचुकुन्द जी वरदान माँगने के लिया कहा, लेकिन मुचुकुन्द जी ने उन्होंने किसी भी भौतिक धन या वर की मांग नहीं की। वे बोले, “प्रभु! अगर आपको कुछ देना है, तो मुझे आपकी भक्ति दीजिए, ताकि मैं सच्चे श्रद्धा और समर्पण के साथ आपकी सेवा करूँ आपके भक्तो का संग करुं।
नाथ आपके दर्शन के बाद, जन्म-मरण का संकट खत्म हो जाता है! महाराज की एक ही लालसा थी की उन्होंने भगवान की भक्तो का संग और अब तक अच्छी तरह से उपासना नहीं की थी और वे मुक्ति के साथ-साथ उपासना को भी चाहते थे। इसलिए भगवान ने कहा, “अब तुम ब्राह्मण कुल ने जन्म लो, सभी जीवों में समान दृष्टि रखो, और फिर मेरी अनन्य उपासना करो।” और फिर महाराज मुचुकुंद (Maharaj Muchukund) ने अपनी उपासना पूरी की।
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