Untold Story of Kumbh Mela 2025: कुंभ मेला क्यों मनाया जाता है?
कुंभ (Kumbh) होता कहा है ये शब्द कहा से आया सिर्फ 12 साल में ही क्यों होता है कहाँ कहाँ है इतने लोग क्यों यहाँ खीचें चले आते है और क्या है इसकी अनसुनी कहानियाँ और एस्ट्रोलॉजिकल कैलक्युलेशंस।
कुंभ (Kumbh) का इतिहास
कुंभ का अर्थ है कलश एक पात्र एक विशेष रूप से नेक्टर यानि की अमृत से भरा हुआ कलश इसके बारे में श्रीमद भगवत और स्कन्द पुराण में वर्णन किया गया है। एक बार दुर्वासा ऋषि इंद्रदेव से मिलने स्वर्ग गए। इंद्र अपने हाथी ऐरावत है विराज थे। उनको रास्ते में वे मिले दुर्वासा ऋषि देवराज इंद्र को प्रसन्न हुए और अपनी माला निकलकर इंद्रदेव को पहना दी।
लेकिन इंद्रदेव ने अपने अहंकार में वो माला अपने गले से उतर कर अपने हाथी ऐरावत के गले में दाल दी। अब हाथी ठहरा जानवर उसने वह माला अपनी सूंढ से जमीन पर गिरा दी और पैरो से कुचलने लगा। ये दृश्य देखकर दुर्वासा जी को बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया। कि इंद्र तुजे बहुत एहंकार हो गया है मै श्राप देता हम तेरी सारी सम्पति, ऐश्वर्या, शक्ति, सम्राज्य तुझसे छीन जायेगा।
और तभी श्राप का असर शुरू हुआ और असुरों ने देवताओं पर अकर्मण किया फलस्वरूप स्वर्ग पर अधिकार कर लिया। ऐसी स्थिति को देख सभी देवता मिलकर ब्रह्मा जी के पास गए। ब्रह्मा जी सबके साथ मिलकर भगवान विष्णु के पास गए और सारी स्थिति बताई। तब भगवान विष्णु ने असुरो के साथ मिलकर समुंद्र मथंन की सलाह दी।
इस मथंन से जो अमृत निकलेगा वह तुम्हे अजय और अमर बन देगा। तब देअवताओ ने असुरों से संधि की और अमृत के चालक से दोनों पक्षों ने मंदिरा पर्वत का मंथन किया। तब इस महामंथन में बहुत सी चीज़े निकली। सबसे पहले हलाहल विष निकला जो भगवान शिवजी ने पान किया और भगवान शिव का नाम इस से नीलकंठ कहलाये।
फिर उसके बाद सुरभि गाय, उच्चश्रावा घोड़ा, कुस्तुभ मणि, पारिजात, लक्ष्मी जी, वारुणी और विष्णु अवतार भगवान धनवन्तरी जी जिनके हाथ में अमृत से भरा हुआ कुंभ यानी कलश लेकर प्रकट हुए। अब असुरों ने जैसे ही अमृत का कुंभ देखा वो उसे लेकर भाग गए। तभी कलश वापस लाना के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया और चतुराई से देअवताओ को वो अमृत पीला दिया।
इस बीच दैवताओ और दानवो के बीच 12 दिनों को भयंकर युद्ध चला। इस युद्ध में इंद्र का पुत्र जयंत कुंभ को लेकर भाग गया। लेकिन लड़ाई चल रही थी तो इन 12 दिनों के बीच में उसको ये कुंभ अपने हाथ से धरती पर चार अलग अलग जगहों पर रखना छुपाना पड़ा। तो उसने इन चार जगहों पर इस कुंभ (Kumbh) को रखा वे जगह थी पहली गंगा नदी हरिद्वार में, दूसरा शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन में, तीसरा गोदावरी नदी के किनारे नासिक में, चौथा गंगा यमुना सरसवती त्रिवेणी संगम प्रयागराज में।
अब जब जब जयंत ने कुंभ को इन जगहों पर रखा और उठाया तो इसमें भरा हुआ अमृत कुंभ में से कुछ बुँदे इन जगहों पर छलक कर गिर गई और इन नदियों में मिल गई। जिससे इन नदियों का जल अमृत जैसा हो गया।
Kumbh Mela: 12 साल में ही क्यों होता है?
अब देवताओ का एक दिन धरती के साल के बराबर होता है। तो उनके 12 दिन का युद्ध यानी हमारी पृथ्वी पर 12 साल और इसलिए हर 12 साल में वो विशेष दिन आता है एस्ट्रोलॉजिकल कैलक्युलेशंस के हिसाब से जब इन अलग अलग जगहों पर जहां कुंभ (Kumbh) का रखा गया था। वहां पर माना जाता है कि उस तिथि में उस समय के लिए अमृत रूपी शक्तियाँ चारों स्थलों पर पवित्र नदियों के जल में प्रकट होती है और इसलिए करोड़ो लोग जन्म मृत्यु से मुक्त होने के लिए और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए उस जल को पीने और उन नदियों में डुबकी लगाने के लिए आते है।
अब विशेष प्रयाग का मतलब है यज्ञ बलिदान और तपस्या यह पर तीन नदियाँ मिलती है। सफ़ेद धारा वाली गंगा, नीली काली धारा वाली यमुना और अदृश्य भूमिगत प्रवाह करते हुए माँ सरस्वती और तीनों नदियाँ जब मिलती है तो उसे कहा जाता है त्रिवणी संगम जिससे ये प्रयागराज तीर्थराज कहलाता है।
जिसे अभी सभी तीर्थो का राजा कहते है। यहाँ एक बार डुबकी लगाने से 100 गुना ज्यादा पवित्रता यहाँ पर प्राप्ति होती है शास्त्र कहते है। कि प्रयाग में प्रवेश करने मात्र से सभी पाप नष्ट हो जाते है और इस महा कुंभ (Kumbh) में विशेष कर राजसी स्नान का बहुत महत्त्व है। पहले ये शाही स्नान कहलाता था लेकिन अब इसका नाम बदलकर राजसी स्नान कर दिया है। यहाँ तक की देवता भी मानव रूप धारण कर इसमें स्नान करने आते है।
इस बार राजसी स्नान की तिथियां है जिसे स्न्नान पर्व कहा जाता है। पौष पूर्णिमा 13 जनवरी को, मकर सक्रांति 14 जनवरी को, 29 जनवरी मौनी अमावस्या,
3 फरवरी को वसंत पंचमी, 12 फरवरी को माधी पूर्णिमा, 26 फरवरी महाशिवरात्रि।
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