प्रभु आपको मिलेंगे भजन करते समय ये नियम होने ही चाहिए
1. भगवत दर्शन करने वाले के नियम प्रभु में अटल विश्वास: अब इस अटल विश्वास को समझिये जो टल ना सके ऐसा विश्वास। भजन मार्ग में चल रहे है तो भारी प्रतिकूलता, निंदा, अपमान, रोग से ग्रसित शरीर कोई साथ देने वाला नहीं और इतने पर भी तुम्हारा विश्वास प्रभु से नहीं टलना चाहिए। अपने धर्म में अचल और विश्वास में अटल देखो अपने अंदर देखो आप भगवत दर्शन की लालसा प्राप्त करने के लिए अपने आराध्य देव में अटल विश्वास। भजन में दृढ़ता, भजन में दृढ़ता कैसी भी परिस्तिथि हो भजन में फर्क नहीं पड़ना चाहिए।
2. हम जिसका भजन कर रहे है वो हमारे भजन को देख रहा है। बहुत सुख मिलेगा आपको आप जब इस बात को जीवन में लाओगे। हम वाणी गायन कर रहे है हमारे प्रियालाल सुन रहे है। हम भजन कर रहे हमारे प्रियालाल सुन रहे है।
3. इस लिए हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जो प्रियालाल के सामने नहीं करना चाहिए फिर देखो आप बच जाओगे। ये है भगवत दर्शन करने वाले का नियम हम जिसका भजन कर रहे है वो उपास्य हमें देख रहा है। उनको सामने देखते हुए भजन करो प्रियाप्रीतम देख रहे है और पक्का विश्वास वो मुझे मिलेंगे। मेरे आराध्य देव से बढ़कर इस ब्राह्मण में और कोई नहीं है ये विश्वास।
4. जो गुरुजी ने भजन दिया है मंत्र दिया है उस पर विश्वास उससे बड़ा कोई मंत्र कोई साधन नहीं है। हमें नाम, मंत्र, भजन उसी में दृढ़ होना है। जो गुरुदेव ने दिया है।
5. जिसका हम भजन कर रहे है सिर्फ उसी की प्राप्ति के लिए भजन है बीच में कुछ मिलावट नहीं होनी चाहिए कोई और मांग नहीं होनी चाहिए। जिसका आप भजन कर रहे है उसी की प्राप्ति के लिए भजन होना चाहिए।
बीच में किसी दूसरे विषय की मांग, किसी परिस्तिथि की मांग तो फिर ये लालसा उत्कट नहीं हो पायेगी भगवत दर्शन की। जिसका नाम जप कर रहे है उन भगवान के रूप को आँखों में लाने की चेष्टा करना भाव करना। मन से उनके रूप का चिंतन, वाणी के द्वारा गुरु प्रदत नाम, मंत्र का जप ये दोनों साथ चलने चाहिए।
6. प्रभु का भजन करते हुए किसी दूसरे मार्ग के उपासक या किसी दूसरे मार्ग के भजनान्दी की अवज्ञा, निंदा, हे भाव, तिरस्कार भाव यह बिलकुल नहीं होना चाहिए। हम जिन प्रभु का नाम ले रहे है। उन्ही के सब नाम है उन्ही की सब उपसना है सबको प्रणाम हमको अपनी उपासना से सर्वो पर मन कर करना है।
पर दूसरे का अपमान, दूसरे की निंदा, दूसरे का तिरस्कार, दूसरे को छोटा समझना ये सब नहीं करना। अपने इष्ट में आसक्त होना दूसरे का विरुद्ध ना करना। इस से आपके ह्रदय में उत्कृष्ट लालसा का जागरण हो जायेगा।
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