Aja Ekadashi Vrat Ki Katha: अजा एकादशी
अन्नदा/अजा एकादशी व्रत कथा, सब प्रकार का सुख प्रदान करने वाली यह कथा: एक बार महाराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी के विषय में पूछा तब भगवान कृष्ण ने राजा हरिश्चंद्र को स्मरण करते हुए बताया। राजा हरिश्चंद्र परम सत्यवादी थे। भगवान की ली गई परीक्षा के कारण उनको अपना राज पाठ सब त्यागना पड़ गया।
परीक्षा हो रही थी उनके सत्य की और फिर काशी के बाजार में आकर के अपना राज पाठ को त्याग ही चुके थे। उसके बाद अपने पुत्र, अपनी पत्नी, और अपने को भी विक्रय कर दिया था। और स्वम एक चांडाल के यहाँ नौकर बन गए। उनकी धर्म पत्नी एक सेठ के यहाँ नौकरी करती थी और वहा उनके इकलौते पुत्र का भी देहांत हो गया था।
जब राजा हरिश्चंद्र की पत्नी अपनी पुत्र को लेकर उसी शमशन पर आई जिस शमशन पर हरिश्चंद्र जी चांडाल की नौकरी कर रहे थे। तब राजा हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी से भी कर माँगा था उस समय उनकी पत्नी के पास धन नहीं था देने के लिए तब अपने साड़ी का एक टूक फटकार अपने पति को कर के रूप में वे देने लगी। उसी समय भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश प्रगट हो गए। और राजा हरिश्चंद्र को वर दिया की आपके सत्य की जीत हुई फिर राजा को उनका राज पाठ सब मिल गया था।
लेकिन अजा एकदशी की कथा इस प्रकार है की एक दिन जब राजा हरिश्चंद्र के मन में विचार आया की ये क्या हो रहा है राज पाठ भी चला गया। मेरी पत्नी की भी ऐसी अवस्था हो गई. और पता चला है मेरे पुत्र का भी देहांत हो गया है। तब उस समय राजा बहुत दुःखी थे उन्हें दुखी देख उनके पास गौतम ऋषि आये।
तब गौतम ऋषि ने राजा हरिश्चंद्र जी को कहा आप क्यों दुखी होते हो। राजा हरिश्चंद्र जी ने कहा ना जाने कौन सा प्रारब्ध आया कहा तो इतना बड़ा राज ठाठ सुख सुविधा थी और कहा और कहा ये हाल हो गया है। एक राजा को एक चांडाल के यहाँ नौकरी करनी पड़ रही है। मेरी रानी किसी के यहाँ झूठे बर्तन मांज रही है। कौन सा ऐसा मेरा पाप है जो ऐसा कठिन समय हमको देखना पड़ रहा है।
तब गौतम ऋषि ने राजा हरिश्चंद्र जी को कहा जो भी प्रारब्ध है उसकी विषय में ना सोचकर समाधान की विषय में सोचना चाहिए। राजा ने कहा महाराज आप समाधान बताइये। उस समय गौतम ऋषि ने राजा हरिश्चंद्र से कहा की आप भाद्र मास की कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी व्रत का पालन करो। जिससे तुम्हरा सारा दारिद्र दूर हो जायेगा सब संकट दूर हो जायेगा।
पुनः खोया हुआ वैभव वो भी प्राप्त हो जायेगा। हे राजन तुम भगवत भक्ति करते हुए अपने पत्नी पुत्र के साथ अपने राज्य का निर्वाह कर पाओगे। तब राजा हरिश्चंद्र ने अजा एकादशी का पालन किया था। जिसके परिणामस्वरूप उनका मरा हुआ पुत्र भी जीवित हो गया। खोया हुआ राज्य भी प्राप्त हो गया। लोक और परलोक सब जगह मंगल हो गया। अंततः राजा हरिश्चंद्र को भगवान के चरण कमलो की प्राप्ति हुई। अजा एकादशी व्रत करने वाली के जीवन से दरिद्रता को दूर करने वाली है सभी दुखो को नाश करने वाली है और सब प्रकार का सुख प्रदान करने वाली है।
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