पूज्य उड़िया बाबा कहते है इन अष्टमैथुन से ब्रह्मचर्य का नाश होता है।
आज के सत्संग की महत्वपूर्ण बातों में श्री प्रेमानंद जी महाराज ने बात की पूज्य उड़िया बाबा कहते है इन अष्टमैथुन से ब्रह्मचर्य का नाश होता है। जिसका वर्णन हमने विस्तार से नीचे बताया है। उपासक को किस तरह अपने जीवन में ब्रह्मचर्या का पालन करना चाहिए।
पहला अष्टमैथुन किसी जगह अपने पढ़ा काम सम्बन्धी बात या या अपने किसी जीव को भोग करते देखा पशु पक्षी किसी को या अपने चित्र देखा या चलचित्र देखा भोग सम्बन्धी तो आपके ह्रदय का चिंतन होगा काम का और ह्रदय में एक मनोवा नाड़ी है। उस मनोवा नाड़ी को रक्त की मथानी कहते है जहां गाढ़ चिंतन काम का किया। तो अष्टमैथुन में पहला मैथुन हो गया वो मनोवा नाड़ी पुरे रक्त से मथ करके वीर्य को एकत्रित क्र देती है।
तब शौंच के समय या स्वप्न में रात्रि के सोते समय निकल जायेगा। तो उपासन को अष्टमैथुन में पहले मैथुन का त्याग करना चाहिए। ना कोई ऐसी किताब पड़े जिसमे काम सम्बन्धी बाते लिखी हो, ना किसी जीव को हस्तमैथुन करते देखें, ना कोई गन्दा चित्र देखे और ना कोई उसका चिंतन बन पावे।
दूसरा चार पुरुष बैठकर काम सम्बन्धी स्त्री के अंग प्रत्यंगो का वर्णन करना, काम सम्बन्धी बाते करना। काम संबंधी अश्लील बातो में कितना सुख है ऐसी चर्चा करना। इसकी चर्चा करने से चिंतन बनता है। हमें चाहिए हम चार लोग बैठकर के भगवान की चर्चा लीला का रूप गुण महिमा की चर्चा करें। अगर हम स्त्री संबंधी संबंधी चर्चा और काम सुख संबंधी चर्चा करेंगे तो हमारे ह्रदय में मनोवा नाड़ी एक्टिव हो जाएगी। और वह आपके पुरे शरीर से रक्त को मथ कर के वीर्य बहार निकल देगी।
तीसरा एकांत में इशारे करना, हास्य विनोद करना, काम भाव से छूना एकांत में ये चिंतन बनेगा। फिर वही दुर्दशा हो जाएगी अष्टमैथुन में तीसरे में कभी भी कही भी किसी भी तरह से ब्रह्मचर्य साधन करने वाले को स्त्री के साथ एकांत सेवन नहीं करना चाहिए। इन्द्रियां बहुत बलवान है वे बड़े बड़े विद्वानों को भी आकर्षित करके भ्रष्ट कर देती है।
चौथा एकांत से किसी स्त्री को चोर दृष्टि करते हुए काम भाव से देखना, ये अष्टमैथुन में चौथा है। ये आपको भ्रष्ट कर देगा।
पाँचवा मुस्कुराहट हाव भाव कटाक्ष वार्ता यह काम संबंधी करना। मुस्कुरा दिया परस्पर कटाक्ष कर दिया। अब मिलो या ना मिलो वो अब आपका चिंतन बनेगा और चिंतन आपका सर्वनाश कर देगा।
छठवां शृंगार शरीर को सजाना, जब शरीर को शृंगार करते है तब हमारे अंदर रजोगुण आता है। और रजोगुण काम को उत्पन्न करता है रजोगुण से ही काम का प्रादुर्भाव होता है। शरीर की सजावट नहीं होनी चाहिए ब्रह्मचारी को शरीर से उपेक्षा रखनी चाहिए। हमें स्नान दिनचर्या के लिए करना है वैष्णव शृंगार अपने आराध्य की सेवा के लिए करना है। अगर ब्रह्मचर्या धारण करना है तो शृंगार से बचें।
सातवां किसी के द्वारा भोग की बात सुन करके उसकी प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना। ये अष्टमैथुन में सातवां है। भोगों की बातें सुन सुन सुन करके पागल होना और अब आपका चित खोजने लगा की कहा हमें भोग सुख मिलेगा कैसे भोग मिलेगा। ऐसे वो भ्रष्ट हो जायेगा पतित हो जायेगा।
आठवां प्रत्यक्ष में सहवास, प्रत्यक्ष में सम्भोग ये आठ प्रधान अष्टमैथुन है और अष्टमैथुन में ही प्रकट संभोग के अन्तगर्त ही हस्त मैथुन क्रिया आती है। यह बहुत भयंकर बीमारी है बालकों से लेकर बड़ो तक और अन्य बीमारियों के लिए तो औषधि है लेकिन हस्त क्रिया के लिए कोई औषधि नहीं है। ये बड़े दुर्भाग्य की बात है जिनको हस्तमैथुन का अभ्यास हो गया है।
ये हस्त क्रिया बच्चा हो या बच्ची हो स्त्री हो या पुरुष हो उसका नष्ट कर डालता है। इसलिए ये अष्टमैथुन सर्वनाश कर देते है। ये सब सद्गुणों का नाश करके नर्क की प्राप्ति करता है। हस्त क्रिया करने वाला व्यक्ति अंदर से बिलकुल खोखला हो जाता है। इस से वह गृहस्थी लायक नहीं रह जाता इस से संतान उत्पति की क्षमता का नाश हो जाता है। एक नहीं लाखों करोड़ो लोग इसके शिकार है इस से जीवन बिलकुल बर्बाद हो जाता है।
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