भजन, पूजा, पाठ का मन तो है पर आप कर नहीं पाते- श्री प्रेमानंद जी महाराज
श्री श्यामा श्याम बड़े कृपालु है। हमारे पूर्व जन्म की संस्कार व्रति ही इस जन्म में स्वभाव, कर्म, चिंतन इस पर प्रभाव डालती है। जैसी पूर्व जन्म में हमारी आदत रही है वैसा ही इस जन्म में वो हम पर प्रभाव डालती है। उसी प्रभाव को बदलने के लिए हमें ये मानव देह मिला है। पूर्व जन्म के प्रभाव के अनुसार पशु जन्म भोगते है लेकिन इसे मिटा नहीं सकते है। लेकिन मनुष्य शरीर में इसे मिटाने की समर्थ है।
हमारे मन में जो भोगों के प्रति प्रियता है ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है। ये सब प्राणियों के अंदर है चिति से लेकर ब्रह्मा तक इसी को मिटाने को साधना कहते है।जिन्हे भगवान की कृपा से साधन मार्ग मिला है वो इसे मिटा सकते है यदि मिटाना चाहे तो। पर मिटाना न चाहकर के भोग भोगकर बढ़ाने की चाह ये तो दुर्गति प्रदान कर देगी। और पुनः ऐसे नए संस्कार पैदा कर देगी। जो आपको भोगो में पागल बना देंगे।
इसलिए प्रार्थना है की यदि आपको भगवान ने भजन का समय दिया है। परमार्थ मार्ग दिया है तो प्रयास कीजिये की आपसे ऐसी चूक न बने। जिससे आपका जीवन प्रपंच में फ़स जाये माया में फ़स जाये, प्रयास कीजिये भगवान समर्थ देते है।
यदि आप ऐसे ही मनोंरजन के भाव से किसी भी धाम आये है मनोरंजन के भाव से परमार्थ के पथिक का नाटक कर रहे है। तो आप किसी का कुछ नहीं बिगाड़ पायंगे आपका ही सर्वनाश हो जायेगा। कोई यहाँ किसी को बिगाड़ नहीं सकता यदि हम यदि हम बिगड़ना न चाहें। हम हम अपने आप का ही नाश कर लेते है। नाश का तात्पर्य होता है बुद्धि का पतित हो जाना।
जब हम काम आदि भोगों में रोकने का प्रयत्न न करके भोगने की चेष्टा करते है। बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है। इसलिए अभी समझ जाये। क्योकि सब स्वतंत्र वृति से मन और इन्द्रियों के साथ विषय सेवन को ही सुख मानते है। कौन समझेगा ये दुःख योनियाँ है दुःख ही मिलेगा।
शांति परमानंद ये तो भगवान के शरणो का आश्रय लेकर खूब भजन करें। प्रयास करें हमसे ऐसी ग़लती न हो तो भगवान ऐसी स्थिति प्रदान कर देंगे जहां से ग़लती होती ही नहीं है। कोई वासना नहीं रह जाती कोई इच्छा नहीं रह जाती। बस रात दिन भजन की भूख बढ़ती रहती है। प्रभु मधुर मधुर झाँकी दिखाकर चित का अपहरण करते रहते है। इसलिए बड़ो आगे बड़ो अभी जहा खड़े हो वो स्थान ठीक नहीं है। यहाँ माया की दौड़ आपको भागा ले जाएगी।
इसलिए ऐसी स्तिथि लाओ भगवान का मुश्कुराना देखें इन मरण धर्मा शरीरों के मुश्कुराने से क्या मिलेगा। सच्चिदानन्द की प्राप्ति का अवसर आया है इन शरीरों के दुलार में मत पड़ो कोई तुम्हारा नहीं। फस जाओगे तो फिर निकलना मुश्किल है। इसलिए सावधान से अभी बात मान लो माया जब आकर्षण करती है तो सामने विपत्ति नहीं सुख नज़र आता है। और जब गुरुजन है तो बुरा लगता की सुख को ही दुःख कह रहे है। लेकिन जब फस जाते है तब समझ आता है। ये माया ऐसा दलदल है एक बार जो फस जाये तो केवल भगवान ही निकल पाये नहीं तो निकल नहीं पाओगे।
श्रीपाद प्रबोधानंद जी कहते है यदि प्रिया लाल की प्राप्ति करना चाहते हो तो, अधात प्रेम समुन्द्र श्री राधा का यदि असाधाण भाव प्राप्त करना चाहते हो। तो अपने कामों को प्रिया लाल की चर्चा को और कुछ मत सुनने दो। अपनी जुबान से भगवत चर्चा के सिवा और मत बोलो कुछ अपने नेत्रों में प्रिय लाल की छवि बिठा लो।
अधात प्रेम समुन्द्र श्री राधा का यदि असाधाण भाव प्राप्त करना चाहते हो। तो इन तीन बातो को सुधार लो जुबान से प्रिय प्रीतम की बात नहीं तो मौन नाम जप कर रहे है। कानों से भगवत चर्चा प्रपंच की मत सुनो। आँखों को बहुत संभल कर रखा जाता है वही देखो जिससे आपकी दृष्टि ना बिगड़े। आँख, कान, जुबान इन तीन को संभल लो आपकी साधना परिपक हो जायेगी।
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