गरीबी की छाया में जन्म – A Poor Child’s Struggle
छोटे से गाँव के एक गरीब बच्चे के पास न महंगे कपड़े थे, न खिलौने, लेकिन उसके पास था – एक बड़ा सपना। गाँव के संकरे रास्तों पर नंगे पाँव दौड़ता हुआ, वह हमेशा आसमान में उड़ते हुए पक्षियों को देखता और सोचता, “क्या मैं भी उड़ सकता हूँ?”
उसका परिवार बेहद गरीब था। पिता एक छोटे किसान थे, और माँ घरों में काम करती थी। पढ़ाई के लिए स्कूल जाना आसान नहीं था, लेकिन उसकी आँखों में जिज्ञासा थी। जब भी उसे किताबें पढ़ने को मिलतीं, वह पन्ने पलटता और नई दुनिया में खो जाता।
लेकिन असली चुनौती तब आई जब एक दिन उसके पिता बीमार पड़ गए। घर में खाने तक के लाले पड़ गए। अब उसे भी काम करना था, लेकिन उसने अपने सपने को कभी मरने नहीं दिया।
दिन में वह खेतों में काम करता और रात में सड़क किनारे स्ट्रीट लाइट के नीचे किताबें पढ़ता। गाँव वाले उसका मज़ाक उड़ाते – “पढ़-लिखकर क्या उखाड़ लेगा?” लेकिन उसने परवाह नहीं की।
एक दिन, एक शिक्षक ने उसे देखा और उसकी लगन से प्रभावित हुए। उन्होंने उसे पढ़ाई में मदद की और उसे एक्स्ट्रा समय देकर पढ़ने में मदद की। अब उसकी मेहनत रंग लाने लगी थी।
समय बीता, और वह बच्चा गाँव से निकलकर शहर की बड़ी यूनिवर्सिटी तक पहुँच गया। उसने पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ी और हर परीक्षा में टॉप किया। अपनी मेहनत के दम पर उसने एक प्रतिष्ठित नौकरी हासिल कर ली।
जब वह सालों बाद अपने गाँव लौटा, तो वही लोग जो कभी उसका मज़ाक उड़ाते थे, अब तालियाँ बजा रहे थे। उसने गाँव में एक छोटा स्कूल बनवाया, ताकि कोई और गरीब बच्चा अपने सपनों से वंचित न रहे।
सीख: सपने देखने का हक़ हर किसी को है, लेकिन उन्हें पूरा करने का हौसला बहुत कम लोगों में होता है। गरीबी सिर्फ एक परिस्थिति है, लेकिन मेहनत और लगन से कोई भी इसे हरा सकता है।
एक गरीब बच्चे दीपू की कहानी: सपनों की राह पर संघर्ष
छोटे से गाँव में एक गरीब बच्चा दीपू रहता था। उसकी झोपड़ी कच्ची थी, पैरों में चप्पल तक नहीं थीं, लेकिन उसकी आँखों में एक चमक थी – कुछ बड़ा करने की चमक।
वह स्कूल जाने के लिए हर दिन कई किलोमीटर पैदल चलता, लेकिन कभी शिकायत नहीं करता। उसके पास किताबें नहीं थीं, तो वह दोस्तों की पुरानी किताबों से पढ़ता। वह जानता था कि “शिक्षा ही उसकी गरीबी मिटाने की चाबी है।”
उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर थे, जो मुश्किल से दो वक़्त का खाना जुटा पाते थे। माँ दूसरों के घरों में काम करके कुछ पैसे जोड़ती थीं। कई बार घर में इतना भी खाना नहीं होता था कि पूरे परिवार का पेट भर सके, लेकिन दीपू की हिम्मत कभी नहीं टूटी।
एक दिन, जब स्कूल की फीस जमा करनी थी, लेकिन पैसे नहीं थे, तो उसने खुद कमाने का फैसला किया। वह सुबह स्कूल जाता और शाम को चाय की दुकान पर बर्तन धोता।
गाँव के लोग मज़ाक उड़ाते – “पढ़ाई-लिखाई से क्या मिलेगा? बर्तन ही धोने हैं तो अभी से सीख ले!” लेकिन वह चुपचाप अपने सपनों को सींचता रहा।
एक दिन, स्कूल में एक निबंध प्रतियोगिता हुई। लड़के ने दिल से लिखा – “गरीबी कोई रुकावट नहीं, अगर इरादे मजबूत हों!” उसका लेख स्कूल के हेडमास्टर को इतना पसंद आया कि उन्होंने उसकी फीस माफ कर दी और उसे मुफ्त किताबें भी दीं।
अब वह पहले से ज्यादा जोश के साथ पढ़ाई करने लगा। दिन में स्कूल, शाम को काम, और रात में स्ट्रीट लाइट के नीचे पढ़ाई – उसकी मेहनत जारी रही।
समय बीता, उसने स्कूल टॉप किया और स्कॉलरशिप पर कॉलेज पहुँच गया। वहाँ भी संघर्ष जारी रहा, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। पढ़ाई के साथ-साथ छोटे-छोटे काम करके उसने खुद को आगे बढ़ाया।
कुछ साल बाद, वही लड़का जिसने चाय की दुकान पर बर्तन धोए थे, अब एक बड़ी कंपनी में इंजीनियर बन चुका था। जिस गाँव में लोग उसे गरीब समझकर हँसते थे, वहीं लोग अब गर्व से उसका नाम लेते थे।
दीपू अपनी पहली सैलरी से गाँव में एक “मुफ्त लाइब्रेरी” बनवाई, ताकि कोई भी बच्चा सिर्फ पैसों की कमी के कारण अपने सपनों से दूर न रहे।
सीख: गरीबी कोई अभिशाप नहीं, अगर हौसला और मेहनत हो। जब तक हम खुद हार नहीं मानते, तब तक कोई हमें हरा नहीं सकता।
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