“Kartik Maas Ki Katha – Adhyay 1: The Sacred Journey Begins | कार्तिक मास कथा – अध्याय 1: The Significance of Kartik Mahatmya”

कार्तिक मास कथा – अध्याय 1 | Kartik Maas Ki Katha | Kartik Mahatmya Adhyay 1

“कार्तिक मास कथा – अध्याय 1 का पहला दिन कार्तिक मास की महत्वपूर्ण कथा का आधार है। कार्तिक मास हिन्दू पंचांग में महत्वपूर्ण मास माना जाता है, और इसके दौरान व्रत, पूजा, और धार्मिक क्रियाएं अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। इस कथा के पहले अध्याय में कार्तिक मास के महत्व और धार्मिक आचरणों के बारे में विस्तार से बताया जाता है। यह कथा धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है और लोग इसे सुनकर अपने आचरणों को सुधारने का प्रयास करते हैं।

कार्तिक मास :- एक समय की बात है गर्गाचार्य बहुत क्रोधित हो गए | उन्हें निर्णय लेना है कि वही एक ऐसे पुत्र को जन्म देंगे जो यादवो को कष्ट दे | इसी इच्छा के साथ वो दक्षिण दिशा की या चल पड़े या अनहोने घोर तपस्या की | 12 वर्ष तक भगवान शिव की तपस्या करने के बाद आख़िर उनकी इच्छा पूरी हुई | लेकिन यहाँ प्रश्न ये है कि गर्ग आचार्य तो यादवो के कुल गुरु थे? तो फिर उन्होंने यादवों को कष्ट देने वाले पुत्र की मांग क्यू की

एक समय क्या हो सकता है कि यदुवंश के कुल पुरोहित गर्ग आचार्य के बहनोई ने उन्हें नपुंसक कह कर उनकी निंदा की कि हमारे सभी यादव भी वाहा उपस्थित मुनि के बारे में मेरे ऐसे वचन सुनकर वे सब हसने लगे | और ये देख कर गर्ग आचार्य को बहुत क्रोध आया तब उनको ये तय किया कि ऐसे पोटर को जन्म देने जो यादो से उनका प्रतिशोध लेगा कुछ समय बाद एक यवनो के राजा थे जिन्हें संतान नहीं हो रही थी | 

इसलिए उन्होंने गर्ग मुनि से पुत्र प्राप्ति की इच्छा प्रकट की। उनके आर्शीवाद से रानी के गर्भ से एक पुत्र ने जन्म लिया उस पुत्र का क्रोध रूद्र के सामान था इस लिए उसका नाम पडा कालयवन | एक बार कालयवन ने नारद मुनि से पुषा इस पृथवी पे सबसे शक्तिशली कौन है जिस से में युद्ध कर सकूँ | उस समय उन्होंने उसे यादवो के बारे में बताया वही कारन था यादवो से युद्ध काने के लिए मधुरा पर चढाई की | कालयवन राजा ने भी अपने 3 करोड़ सेनिको के साथ मधुरा पर चढ़ाई कर दी थी | 

इस खतरे को देखते हुए भगवान कृष्ण ने कहा भैया हमें एक ऐसे किले का निर्माण करना होगा जिसे कोई भेद न पाये | जिस से हम अपने परिवार को भेज कर इस यवनराज का वध कर सकते हैं, इस प्रकार की योजना पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, श्री कृष्ण ने समुंदर के बीच में 150 किमी की दूरी तय कर द्वारिका नगरी का निर्माण किया है। जब सारी तैयारी हो गई तो भगवान श्री कृष्ण ने मधुरा वासियों को रातों रात मधुरा से द्वारिका पंहुचा दिया | भगवान् सभी को द्वारका इस्थापित कर वापस मधुरा आ गए और कालयवन से युद्ध शुरू किया | 

जब भगवन श्री कृष्ण युद्ध करने युद्ध भूमि में गए तो उनके पास कोई अस्त्र शस्त्र नहीं था तो उन्हें देख कालतवन ने सोचा में भी बिना अस्त्र शस्त्र के ही लड़ाई करूंगा | इस प्रकार भगवान भाग कर एक गोफा में चले गए कालयवन में उनके पीछे हमें गोफा में चला गया जैसे ही कालयवन के तहत आया तो उसने वहां किसी को सोते देखा उसने सोचा ये कृष्ण है या बुरा भला बोलते होए हमें जोर से लाट मारकर हमें सोते होए को जगया से सब भगवान छुपकर देख रहे थे 

जैसे ही सोए हुए साधु की नींद खुली तो उनकी आंखों से निकली तेज अग्नि ने कालयवन को भस्म कर दिया। और भगवान ने उन संत को दर्शन दे कर कृतार्थ किया | 

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