Devi Kushmanda: नवरात्रि के की कथा-कहानी
Kushmanda Mata: नवरात्रि का चौथा दिन देवी दुर्गा के स्वरुप माँ कुष्मांडा को समर्पित है। माँ कुष्मांडा का प्रिये रंग हरा है इस लिए इस दिन हरे रंग के वस्त्र धारण करने की विशेष महत्वता है। माँ कुष्मांडा को कद्दू की मिठाई का भोग अर्थात पैठे की मिठाई का भोग अर्पित करें। आइये कुष्मांडा की कथा आरम्भ करते है।
पुराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि नहीं थी। चारो तरफ के केवल अंधकार ही अंधकार था। तब माँ कुष्मांडा ने अपनी मंद मंद मुस्कान से ब्रमांड की रचना की थी। इस लिए इन्हे सृष्टि की आदि शक्ति भी कहा जाता है।
माँ कुष्मांडा (Kushmanda ) की 8 भुजाये है, माँ की सवारी शेर है। ऐसा कहा जाता है जब चारो तरफ के केवल अंधकार ही अंधकार था।
तब एक छोटे से ऊर्जा के गोले ने जन्म लिया ऊर्जा का गोला देखिते ही देखते चारो ओर प्रकाशित होने लगा फिर उस गोले ने नारी का रूप लिया वह नारी आदि स्वरूपा आदि शक्ति कुष्मांडा माँ है।
माँ कुष्मांडा ही ब्रमांड की रचिता है। देवी कुष्मांडा का वास सूर्य मंडल के भीतरी लोक में है सूर्य लोक में रहने की शक्ति माँ कुष्मांडा में ही है। इस लिए इनका तेज़ और कान्ति सूर्य के सामान है।
ब्रमाण्ड की के सभी जीवो में इनका तेज़ ही व्याप्त है। इस प्रकार माँ कुष्मांडा (Kushmanda ) सभी प्राणियों ऊर्जा प्रदान करती है। माँ कुष्मांडा तीन प्राणियों की रचना की वे सभी देवियाँ थी।
अपनी बाई आंख से महाकाली को उत्पन्न किया अपने मस्तिक की आंख से उनहोने माँ लक्ष्मी को अवतरित किया और अपनी दाई आंख से एक दयालु और मुस्करात रूप अवतरित किया।
जिसका नाम उन्होंने देवी सरस्वती रखा नवरात्रि के चौथे दिन शुद्ध बुद्धि और पवित्र मन से माँ कुष्मांडा की पूजा आराधना चाहिए। जिससे सभी रोग नष्ट हो जाते है। और उन्हें आयु, यश, बल, आनंद प्राप्त होता है।
माँ कुष्मांडा (Kushmanda ) अपने भक्तो द्वारा की गई बहुत कम भक्ति से ही बहुत प्रस्न हो जाती है और भक्त को जीवन अंत में मुक्ति की मिल जाती है
कुष्मांडा पूजा मंत्र- ॐ देवी कुष्मांडायै नमः
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