Mohini Ekadashi Vrat ki Katha Hindi – मोहिनी एकादशी व्रत की कथा
Mohini Ekadashi Kahani: एक दिन भगवान कृष्ण से धर्म और ज्ञान की चर्चा करते हुए महाराज युधिष्ठिर पूछते है हे जनार्दन वैशाख मास के शुक्लपक्ष वाली एक को क्या कहते कहते है? और इस एकादशी के पालन से क्या फल मिलता है? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् श्री कृष्ण कहते है -हे राजन पूर्व काल में श्री राम ने अपने गुरु वशिष्ट जी पूछा हे ऋषिवर सीता के विरह में मैं अत्यंत निराश हूँ कृपया मुझे कोई ऐसा व्रत बताये जिसके पालन से मै समस्त दुःखो से मुक्त हो सकूँ?
वशिष्ट मुनि कहते है प्रिय वत्स आप तो अत्यंत बुद्धिमान है आपका पवित्र नाम ही समस्त दुखों को दूर करने वाला है। फिर भी जीवो के कल्याण के लिए अपने जो प्रश्न पूछा है वह सभी जीवो के कल्याण करने वाला है वैशाख मास के शुक्लपक्ष वाली मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) बहुत ही मंगलकारी है। जिसके पालन से व्यक्ति सभी क्लेशो और पापों से मुक्त हो जाता है।
मुनि वशिष्ट ने श्री राम को सुनाई मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की पौराणिक कथा
कथा इस प्रकार है सरस्वती नदी के किनार भद्रावती नाम का एक सुन्दर राज्य था वजा के राजा थे राजा धियुतिमान उस राजा के राज्य में धनपाल नाम का एक वैष्णव अपने परिवार के साथ रहता था उस वैष्णव ने उस राज्य में अनेक पाठशाला, पानी के कुएं, उथानपाथ, पियाउ और भगवन श्री हरि के मंदिर बनवाये थे।
इस परोपकारी वैष्णव के पांच पुत्र थे जिनके नाम थे सामान, तियुतिमंद, मेधावी, सुकृति और धृष्ट्बुथि। सभी पुत्र तो सदाचारी थे लेकिन पुनका पांचवा पुत्र धृष्ट्बुथि अपने नाम के जैसा ही दुराचारी था निर्दोष पशु हत्या, मास भक्षण, मदिरापान, चोरी, जुआ आदि सभी बुरी आदतें उसके अंदर थी।
एक दिन धृष्ट्बुथि के पिता ने उसे खुलेआम किसी वैश्या के साथ कंधे पर हाथ रखकर जाते हुए देख लिया। और उसी दिन धनपाल ने पाने इस पुत्र को अपने घर और धन सम्पति से निष्काषित कर दिया। उसी समय धृष्ट्बुथि भी घर से निकल गया लेकिन उसने अपना पुराना आचरण वैसा ही रखा।
उसकी हरकतों के ऐसे चलते हुए उस राज्य के राजा ने भी धृष्ट्बुथि को राज्य से निकाल दिया। अब वह जंगल में भटकने लगा था और जंगल में जीवो का शिकार करके उनका कच्चा मास खाना शुरू कर दिया। लेकिन वह हमेशा दुखी और निराश रहता उसके पापा कर्मो का घड़ा इतना भर चुका था की मानो वह बस अब फूटने ही वाला था।
एक दिन वन में भटकते हुए धृष्ट्बुथि कुंडिये मुनि के आश्रम में जा पंहुचा। कुंडिये मुनि गंगा से स्नान करने आये ही थे तो उनके कपड़ो से कुछ गंगा जल की बुँदे धृष्ट्बुथि के ऊपर जा गिरी। और बस फिर क्या था साधु संतो के दर्शन मात्र और गंगा जल की कुछ बूंदो से धृष्ट्बुथि के सभी पापा नष्ट हो गए।
बुद्धि पवित्र हो गई उसने विनय के साथ ऋषि को प्रणाम किया। और उनसे कहा हे मुनिवर मैं बहुत पापी हूँ ऐसा कोई पापा नहीं जो मैंने ना किया हो। जिसके परिणाम के कारण मैं अपने परिवार और राज्य से भी दूर हो चुक्का हूँ। क्या मुझ जैसे पापी के लिए इस दुःख से निकलने का कोई मार्ग है?
उसके वचन सुनकर ऋषि ने कहा हे वत्स ध्यान पूर्वक सुनो मैं तुम्हे एक ऐसे व्रत के विषय में बताता हूँ। जो मेरु से भी अधिक बड़े पापो को नष्ट कर देता है। इस व्रत के पालन से कुछ ही छणों में तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जायँगे। और तुम अधियात्मिक गति को प्राप्त करोगे। ये व्रत है वैशाख मास के शुक्लपक्ष की मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) इस व्रत का नियम पूर्वक पालन करो जिस से तुम्हारे सभी कष्ट समाप्त हो जायँगे।
ऐसा कहकर ऋषि ने धृष्ट्बुथि मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) की विधि बताया जिसका धृष्ट्बुथि ने नियमपूर्वक पालन किया। उसके परिणाम स्वरुप उअके सभी पापा नष्ट हो गए। जिससे उसे वैकुण्ठ की प्राप्ति हुई।
इस प्रकार वशिष्ट मुनि द्वारा प्रभु श्री राम को सुनाई गई कथा का समापन करते हुए। भगवान् श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर महाराज से कहा ये धर्मराज इस व्रत के पालन से अर्जित पुण्य की छठे भाग की तुलना भी किसी दान या तीर्थ स्नान से नहीं हो सकती। जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता और सुनता है उसे १००० गौ दान का पुण्य फल प्राप्त होता है।
Read More- देवउठनी एकादशी, आमलकी एकादशी, पापांकुशा एकादशी, वरुथिनी एकादशी
Table of Contents