Nirjala Ekadashi Vrat Ki Katha hindi – भीमसेनी एकादशी व्रत कथा
पांडव निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) सभी एकादशियों में से प्रमुख एवं सबसे अधिक पुण्यफल प्रदान करने वाली एकादशी है जिसकी कथा इस प्रकार है पांडवो में सबसे बलशाली भीम आज बहुत चिंतित प्रतीत पड़ रहे थे। जो अपने बल से सम्पूर्ण धरा को कम्पायमान करने की क्षमता रखते है। वही भीमसेन आज चिंतित थे। और इसी चिंता से मुक्त होने के लिए वे जाते है अपने पितामह वेदव्यास जी के पास और उनके आश्रम से जाकर उन्होंने व्यासदेव को प्रणाम किया।
वेदव्यास भी अपने पुत्र भीमसेन के मुख को देखकर समझ गए भीम के मन में कुछ प्रश्न है। वेदव्यास भीम के सर पर हाथ फेरकर कहते है आओ पुत्र क्या बात है सहस्त्र हाथियों का बल धारण करने वाले मेरे इस पुत्र के मुख है ये चिंता की लकीर कैसे? बताओ वत्स तुम क्यों इतने चिंतित प्रतीत होते हो क्या बात है स्पष्ट कहो?
व्यासदेव ऐसा पूछने पर भीमसेन कहते है हे पितामह मेरे परिवार में माता कुंती, बड़े भाई युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल, सहदेव और यहाँ तक की द्रुपति भी मास में आने वाली दोनों एकादशियों का नियम पूर्वक पालन करते है। भ्राता श्री युधिष्टर मुझे भी इस व्रत को रखने के लिए कहते है। लेकिन मेरी समस्य यह है की मैं भूखा नहीं रह सकता। हे पितामह मैं सम्पूर्ण दिन तो क्या में एक क्षण भी कुछ खाये बिना नहीं रह सकता। आप तो जानते ही है मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदैव प्रज्जवलित रहती है।
जिसके कारण मुझे दिन में कई बार बहुत अधिक मात्रा में भोजन करना पड़ता है। ऐसी अवस्था में मैं व्रत के विषय में सोच भी नहीं सकता। वो भी मास में दो बार नहीं ये मेरे लिए असंभव है। लेकिन हाँ ज्यादा से ज्यादा में वर्ष में एक उपवास रख सकता हूँ।
इसलिए कृपा करके आप मुझे कोई ऐसा व्रत, तप या दान के बारे में बताइये जिसके केवल एक बार पालन से मुझे वर्ष की सभी एकादशियो का फल प्राप्त हो जाये। भीमसेन की बात सुनकर व्यासदेव जी मुस्कुराते है और कहते है हे पुत्र तुम्हारी समस्या मैं समझ चूका हूँ। इसलिए अब ध्यान पूर्वक सुनो पुत्र- जेष्ट मास के शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि आती है जिसका नाम है निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi)।
इस निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का वर्ष में केवल एक बार पालन करने से व्यक्ति को वर्ष की सम्पूर्ण एकादशियो का फल मिल जाता है। इस एकादशी में अन्न के साथ साथ जल का भी त्याग करना होता है। जो व्यक्ति इसका पालन करता है उसे एकादशी के सूर्य उदय से लेकर द्वादशी के पारण समय तक जल की एक बूंद भी नहीं स्वीकार करनी होती।
फिर व्यासदेव भीम से से कहते है पुत्र अब में तुम इस निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) से प्राप्त पुण्य फल के विषय में बताता हूँ। इस एकादशी के पालन से सभी तीर्थो में स्नान करने का पुण्यफल प्राप्त होता है। जो निष्ठा पूर्वक इस व्रत का पालन करता है उसे मृत्यु के समय भगवान विष्णु के पार्षद वैकुण्ड लेजाने आते है।
एकादशी का पालन करने के बाद जो व्यक्ति गौ दान या गौ सेवा करता है। उसके सारे पाप नष्ट हो जाते है फिर चाहे वे कितने ही बड़े क्यों न हो यही इस एकादशी की महत्वता है। इस लिए जी व्यक्ति पुरे वर्ष सभी एकदशीयो का पालन नहीं कर पते उन्हें वर्ष की ये निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) का पालन अवश्य करना चाहिए जिसके पालन से बाकि सभी एकादशियो का फल स्वतः ही मिल जाता है और मनुष्य को भगवत धाम की प्राप्ति होती है।
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