Satsang by – Shri Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
इन 12 नियमों का पालन करने वाले ही महापुरुष हैं: जिस व्यक्ति में ये 12 लक्षण हों वह पुरुष नहीं महापुरुष होता है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री – श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज का सत्संग आज के सत्संग की महत्वपूर्ण बाते जरूर पड़े जो अपने महत्वपूर्ण बदलाव लायेंगी। आज सत्संग में प्रेमानंद महाराज कहा जो व्यक्ति इन 12 नियमों का पालन करने वाले ही महापुरुष हैं ये बारह लक्षण नीचे विस्तार से बताये गए है।
इन 12 नियमों का पालन करने वाले ही महापुरुष हैं– by Premanand Ji Maharaj
1. झूठ ना बोले: हम किसी भी परिस्तिथि में झूठ ना बोले सदैव सत्य वचन बोले मीठा और अच्छा बोले।
2. दम्भ: इन्द्रियों का दमन करना यहाँ दम्भ का मतलब है वे इंद्रिया जो विषय भोग की तरफ जाती है उनका दमन करना। उन्हें विषय भोगने न देना उन पर विजय प्राप्त करना दम्भ कहलाता है।
3. सम: सम मतलब चित निरंतर प्रभु में रखना सम है प्रभु इस संसार को जीतने के लिए चित को निरंतर भगवान में लगाना। वासुदेव भगवान ने चित का समाहित हो जाना इसे सम कहते है।
4. तप: नियम पालन करने के लिए जो कष्ट मिलता है उसे सह जाना जैसे जो जगाने का कष्ट है जो काम क्रोध आदि के आवेश की जलन को सह जाना ये सब तपस्या होती है। एक एक सेकंड का हिसाब होगा चाहे आप कैसे भी कर्म कर रहे हो शुभ या अशुभ अधर्मा आचरण या शुभ आचरण भगवान आपका एक एक पल देख रहे है। इसलिए बहुत सावधान रहो। तप का तात्पर्य है अपने धर्म अपने नियम के लिए जो कष्ट सेहना पड़े उसे तप कहते है।
5. शौच: शौच का मतलब शरीर की पवित्रता और अन्तःकरण की पवित्रता। शरीर की पवित्रता जैसे शौच आदि के बाद स्नान आदि के रज आदि द्वारा वस्त्र का पक्षालन द्वारा साधक को बहुत पवित्र रहना चाहिए। एक साधक का शरीर भी पवित्र होता है वस्त्र भी पवित्र होते है आचरण भी पवित्र होते है दृष्टि पवित्र होती है मन पवित्र होता है। तब वह परमपवित्र भगवान को प्राप्त कर लेता है।
6. संतोष: प्रारब्ध के अनुसार भगवान ने तुम्हारे लिए भगवान ने व्यवस्था की उसी में संतोष रखना। बिना संतोष के कामनाओ का नाश नहीं होता और बिना कामनाओ के प्रेम या आनंद का तत्व ज्ञान प्राप्त नहीं होता। कामना वाले पुरुष को सपने में भी जिसे सुख कहते है वो कभी प्राप्त नहीं होता।
7. लज्जा: अधर्मा आचरण करने बिलकुल संकोच हो जाना। जैसे कोई पाप का कार्य है तो एक दम ह्रदय में खबराहट हो जाना भयभीत जाना इसे भगवतिक लज्जा कहा जाता है। असत्य आचरण, असत्य भाषण, असत्य क्रिया इसमें बहुत लज्जा लगे की नहीं नहीं ऐसा बिलकुल नहीं करना चाहिए। पापी पुरुष वो तो निर्लज्ज होते है और सतवान पुरुष लज्जावान है।
8. क्षमा: अपने जीवन में क्षमावान बने यदि आप क्षमा कर देते है आपका सतमार्ग बढ़ जायेगा और उसको दंड मिलेगा। यदि आप आप मौन हो गए और सामने वाले क्षमा कर दिया तो सामने वाला का अपने आप सुधार शुरू हो जायेगा भगवान उसका सुधार कर देंगे अपने आप सुधार कर देंगे। उपासन को क्षमा धारण करना चाहिए बलवान वही है जो क्षमा धारण करता है।
9. आर्जव: आर्जव का अर्थ है सरलता। सरल व्यवहार, सरल भाव जो मन में, वही वाणी में, वही शरीर में। इसके आलावा छुपाओ बनावटी दम्भ ये सब भक्त में नहीं होता। छलकपट रहित ह्रदय, छलकपट रहित आचरण, छलकपट रहित वाणी।
10. ज्ञान: ज्ञान का तात्पर्य है सत और असत का निर्णय। सत क्या है श्री भगवान, शास्त्र, संतजनों के वाक्य, संतजनों का उपदेश। हमारा लक्ष्य भगवत प्राप्ति है हमारा शरीर असत है संसार असत है व्यवहार असत में ही करना है। साधक को व्यवहार में नाटक करना है पति पुत्र परिवार लेकिन ज्ञान में न कोई पति है न कोई पुत्र है। सब भगवत स्वरुप है सब में एक ही आत्म तत्व भगवान विराजमान है।
11. दया: दया बहुत मीठा शब्द लगता है दया सबके जीवन में होनी चाहिए। कौनसी दया अच्छी है जिसमे भगवान का विस्मरण हो जाये वो आपको फ़सा देंगी। और वो दया जो भगवन की याद में तन्मय कर दें। इसलिए दया वही अच्छी है जो भगवत समरण में हमें बनाये रखें।
12. ध्यान: ध्यान भगवान के नाम का, भगवान के रूप का, भगवान की लीला कथाओं का चिंता ये ध्यान अन्तर्ग्रत आता है।
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