सुख, संपत्ति, यश रोज़ का रोज़ ऐसे बढ़ता है: by Premanand ji Maharaj
जिसने प्रभु का आश्रय लेकर भजन किया उसकी संपत्ति, उसका यश, उसका सुख, उसका प्रताप रोज़ का रोज़ ऐसे बढ़ता है जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा बढ़ता है।पत्नी में, पुत्र में, धन में, घर में आसक्त होकर के हर्षित मत होइये ये सब छूट जायँगे। इस संसार में किसी को नहीं टिकना सबको जाना है इसलिए भाई उधाणतता नहीं, मनमानी आचरण नहीं, प्रभु का आश्रय लेकर धर्म आचरण करते हुए नाम जप करो। जीवन का परम मंगल हो जायेगा।
उपासक ध्यान रखे हर भोग माया माया का ऐसा दलदल है जो इसमें एक बार चखने के लिए कूदा वो धस्ता चला गया। गुरुकृपा या हरी कृपा निकल ले तो निकल ले या निकला हुआ महापुरुष निकाल ले अन्यथा उसमे डूब ही जाता है। जिसे वृन्दावनधाम मिला राधा नाम जपने को मिला रसिकों का संग मिला तो मानो लो प्रभु हमें बुला रहे है। संसार चक्र से दूर करके अपने निज लीला रसास्वादन के लिए लीला पात्र बनाने के लिए ये सब संयोग बैठा है।
महापुरुष कहते है हे भाई यदि तुम्हें वृंदावन वास मिल गया है या आश्रय मिल गया है आप दो चार दिन के लिए ही वृंदावन को आए है । तो आप अपने भाग्य को सोभाग्य में बदलें दुर्भाग्य में नही। यहाँ दोनो काम हो जाएँगे आपका भाग्य सद्भाग्य में बदल जाएगा। ओर अगर असावधान हुए तो अपका भाग्य दुर्भाग्य में बदल जाएगा।
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भगवान की छाती से धर्म का प्रादुर्भाव हुआ है ओर भगवान की पीठ से अधर्म का ओर दोनो ही भगवान से ही प्रकट हुए है धर्म ओर अधर्म ओर दोनो समर्थशाली है। पीठ जो भगवान से विमुख है उनके ऊपर अधर्म का ओर जो भगवान के सम्मुख है उनके ऊपर धर्म का का प्रभाव पड़ता रहता है । जो दूसरों की वृंदावन वासी की दोष दृष्टि से निंदा आदि करते है। ये बहुत निकरिस्ट बात है किसी वैष्णव या वृंदावन वासी की निंदा भूल कर भी मत करना।
जब कोई भगवान के मार्ग में चलता है तो ये तीन खाइयाँ है जो उसे गिराती है:
पहली कंचन:- रुपया, पैसा का संग्रह
दूसरा कमिनी:- जब वो कंचन पर विजय प्राप्त कर धन पर फिर कमिनी। कमिनी का तात्पर्य हर इंद्री संयोग से है ओर विशेष कर जन इंद्री के संयोग से जब साथ पार करना चाहता है माया को कंचन को पार कर गया। तो फिर कमिनी का आकर्षण जिस कोटि का महात्मा होता है साधक होता है ।
अगर वो मृत्युलोक की कमिनी से परास्त हो सकता है तो उसे भेज दिया जाएगा ओर नहीं तो फिर स्वर्गलोक ओर नहीं तो फिर ब्रहमलोक ओर जब यह से लेकर ब्रह्म लोक तक के सुख उसे परस्था नहीं कर पाते तो फिर रिधियाँ सिंधिया इसके बाद भगवत प्राप्ति ये एक परीक्षा का क्रम है।
तीसरा कीर्ति:- कोई बिरला ही होता है जो इन तीन पर विजय प्राप्त कर लेता है । इनमे ऐसे सुखों का आकर्षण ब्रह्मा जी ने रखा है कमिनी कंचन कीर्ति ऐसा लगता है कि भगवानतो मिल ही जाएँगे इनका भोग कर के देख लेते है। ये माया से रची घाटियाँ वही प्राप्त नहीं कर पाता तो भगवत प्राप्त महापुरुषों का आश्रय नहीं लेता। जिसने भगवत प्राप्त संतो का आश्रय लिया तो आराम से पार हो जायेगा।
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