श्री नामदेव जी के बचपन के भक्तिमय चरित्र-कहानी
श्री नामदेव जी बचपन में खिलौनों से खेलते थे, और उनका खेल भगवान् की सेवा-पूजा के समान था। वे अपने नेत्रों को बंद करके मन में भगवान् का ध्यान करते थे। जैसे-जैसे वे इस कार्य को करते गए, वे एक काष्ठ या पाषाण की मूर्ति बना लेते और फिर उसे प्यार से वस्त्र पहनाते, भोग लगाते और घण्टा बजाते। इसके परिणामस्वरूप, वे अत्यंत सुखी और आनंदित होते थे। प्रेमवश, नामदेव जी के दिल में एक अद्भुत प्रेम उमड़ आया। वे अपने नाना, वामदेव जी से बार-बार कहते रहे कि नाना जी भगवान की सेवा में मुझे दे दीजिये। सेवा करना मुझे बहुत प्रिय है। इस तरह नामदेव जी बार-बार वामदेव जी से अनुरोध करते रहे।
कुछ समय बाद, वामदेव जी ने नामदेव से कहा कि वे एक गाँव जाएंगे और तीन दिनों में वापस आएंगे। अगर तुम तीन दिन तक अच्छे से सेवा करोगे, तो मैं तुम्हे भगवान की सेवा सौंप दूंगा। तुम भगवान को स्नान कराना और उन्हें दूध का भोग लगाना।
अब तो नामदेव बार-बार नानाजी से पूछते कि आप कब जाओगे? एक दिन, नानाजी गाँव के बाहर जाने का समय आया, और वामदेव जी नामदेव को भगवान की सेवा सौंप कर तीन दिन के लिए बहार चले गए। अब तो छोटे से नामदेव जी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा वह सु सुबह जल्दी उठकर स्नान कर भगवान की सेवा में लग गए। बड़ी सावधानी से दूध की कड़ाही में दो सेर दूध डालते। उन्होंने मन में यह निश्चय किया कि वे दूध को उत्तम रूप में बनाएंगे, ताकि प्रभु खुश होकर दूध पी सकें। नामदेव जी के दिल में प्रेम और सेवा की भावना थी, और उन्हें चिंता थी कि उनकी सेवा में कोई त्रुटि न हो।
बालक नामदेव जी ने दूध बनाया और उसे एक सुन्दर कटोरे में डालकर भगवान के पास लेकर गए। दूध में इलायची और मिश्री मिला दी। दूध पिलाने की आशा से परदा कर दिया। कुछ देर तक प्यार की सांस ली, फिर पर्दा हटाया तो देखा कि दूध से भरा कटोरा वैसे ही रखा हुआ है। इससे इनके मन में बड़ी निराशा हुई और भगवान से प्रार्थना करने लगे कि प्रभो! दूध पीने से आप तृप्त हो जाओ कृपया भोग लगाओ।
नामदेव जी ने भगवान के सामने दूध का भोग रखा, लेकिन देखा कि भगवान ने दूध नहीं पिया। ऐसा निरंतर दो दिन तक चलता रहा। नामदेव ने भी दो दिन तक कुछ भी नहीं खाया पीया। वे यह बात खुद में ही छिपाकर रखे रहे और उन्होंने इसे माताजी से नहीं कहा। वे रात को भूखे-प्यासे सो गए, लेकिन चिंता की वजह से नींद नहीं आई।
तीसरे दिन की सुबह आई, फिर ध्यानपूर्वक दूध को उबाला, इलायची और मिश्री मिलाई और भगवान को दूध पिलाने का स्थान बनाया। मन में यह भाव रखकर कि भगवान जरूर दूध पीएंगे, मैंने दूध उनके सामने रखा और कहा, “प्रभु! आपको दूध पीना होगा, तब मैं तभी संतुष्ट होऊँगा।” नाना जी आयंगे हो में उन्हें क्या जवाब दूंगा। वो फिर मुझे आपकी सेवा से हटा देंगे। फिर भी, जब भगवान ने दूध नहीं पीया, तो श्री नामदेव जी ने कहा, “मैं बार-बार आपसे दूध पीने की विनती करता हूँ, परंतु आप दूध नहीं पीते हैं।”
जब पहली बार भगवान् विट्ठलनाथ ने श्री नामदेव जी को दर्शन दिए
कल सुबह नानाजी आएंगे और हम पर नाराज होंगे, और फिर शायद वे हमें सेवा नहीं करने देंगे। इसलिए, ऐसे जीने से तो मरना ही अच्छा है। तो ठीक है, अब से मैं इस शरीर को ही त्याग दूंगा, तभी भक्तवस्ल भगवान् प्रकट हुए और कहा “अरे नहीं नामा ! ऐसा मत करो, मैं अभी दूध पी रहा हूँ।” इसके बाद भगवान ने दूध पीना शुरू किया। श्री नामदेव जी ने देखा कि भगवान् सारा दूध पी रहे हैं, तो उन्होंने कहा कि थोड़ा-सा प्रसाद मेरे लिए भी बचा देना; क्योंकि नानाजी के भोग करने पर मैं हमेशा दूध-प्रसाद पीता था।
चौथे दिन, वामदेव जी गाँव से वापस लौटकर आए और नामदेव जी से पूछे, “तुमने अच्छी प्रकार से सेवा की या नहीं? नामदेव जी ने खुशी खुशी दुग्धपान लीला का वर्णन किया। वामदेव जी ने कहा, “अगले दिन फिर पिला दो, तब हम जानेंगे। तब श्री नामदेव जी ने उसी तरीके से दूध तैयार किया और उसे भगवान के सामने रखा, परंतु भगवान ने उसे नहीं पीया। तब वह यह कहकर अड़ गए कि कल पीकर आज वे झूठा नहीं बनाना चाहते हैं, आपको दूध पीना होगा।
बालक के प्यार से प्रेरित होकर भगवान ने वामदेव जी के देखते-देखते दूध पी लिया और नामदेव को भी पिलाने का सौभाग्य दिलाया। वामदेव जी ने सोचा कि मैंने जीवन भर भगवान की सेवा की, पर उनके दर्शन नहीं हुए थे। आज बच्चे के प्रेम के कारण भगवान ने मुझे अपने दर्शन का सौभाग्य दिया।
सर्वत्र भगवान के दर्शन
एक दिन सायंकाल में, श्री नामदेव जी की कुटिया में अचानक आग लग गई। लेकिन श्री नामदेव जी तो अपने प्रिय प्रभु को ही सबकुछ मानते थे, चाहे वो जल हो, थल हो, या अग्नि हो। इसलिए उन्होंने अपने घर में बचे हुए गुड़ और घी जैसे सुंदर पदार्थों को उठाया और आग में डालने लगे और प्रार्थना की, “हे नाथ! कृपया इन सब चीजों को भी स्वीकार करें।”
उनकी इस प्रेमभाव को देखकर भगवान ने प्रकट होकर हँसते हुए कहा, तुम मुझे श्यामसुंदर को तीक्ष्ण अग्नि की ज्वाला में भी तुम मुझे देख रहे हो नामा। श्री नामदेव जी ने कहा, “प्रभो! यह आपका भवन है, आपके अतिरिक्त दूसरा कौन यहाँ आ सकता है?” यह सुनकर प्रभु खुश हो गए और अग्नि ठंडी हो गई। प्रभु खुश होकर अपने हाथों से नामदेव जी का सुंदर छप्पर फिर से बना दिया।
सुबह होते ही लोगों ने वो सुंदर छप्पर देखा, तो वे आश्चर्यचकित हो गए और नामदेव जी से पूछने लगे, “यह किसने बनाया है? जिसने यह बनाया है, उसे बता दो, ताकि हम भी एक ऐसा छप्पर बना सकें। हम जितनी मजदूरी मांगेगे, हम वो देने को तैयार हैं।”
नामदेव जी ने कहा, “इस प्रकार के छप्पर बनाने के लिए तन, मन, और प्राण – सब कुछ समर्पित करना पड़ता है।” इस तरह नामदेव जी ने भगवान् के साथ लीलाएं करते हुए अपना पूरा जीवन उन्हें समर्पित कर दिया और अंत में भगवान् के धाम को पधारे।
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