जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद को ‘महाप्रसाद’ क्यों कहा जाता है: एक अद्भुत कथा-Title: “Unveiling the Mysteries: Fascinating Facts About the MahaPrasad of Jagannath Puri”-2023

“भगवान विष्णु के अनमोल महाप्रसाद: श्री हरि प्रसाद का अद्भुत महत्व”

पद्म पुराण में श्रीला व्यास देव जी कहते कहते है जयमिन ऋषि से कहते है की भगवान श्री विष्णु के नवैदय यानी महाप्रसाद का शेष भाग जो सभी पापों को नष्ट करने वाला है उसको भक्ति भाव से जो खाता है वो परम पद को प्राप्त करता है । ये है भगवान श्री विष्णु जी के प्रसाद की महिमा आज श्री हरि प्रसाद को हम आसानी से प्राप्त के सकते है यही प्रसाद एक समय पर बहुत दूरलब था

पृथ्वी के जीवो को तो क्या स्वर्ग के देवी देवता भी भगवान के उस प्रसाद का कण भी नहीं प्राप्त के सकते थे ।
एक समय ऐसा था भगवान के प्रिये भक्त नारद मुनि को भी भगवान श्री हरि का उच्छिष्ट प्रसाद नहीं मिलता था जो आज हम मनुष्यों को भगवान ने सुलभता से दे दिया है ।

“नारद मुनि की आश्चर्यजनक भक्ति: भगवान श्री कृष्ण के प्रसाद और उद्भव के दिव्य लक्षण”

एक समय सम्पूर्ण ब्रह्मांड में विचरण करते हुए भगवान के प्रिये भक्त नारद मुनि ने देखा कि भगवान श्री कृष्ण का प्रसाद खाने के बाद उनके भक्त उद्भव के अंदर दिव्य लक्षण प्रकाशित हुए है

उनके अंदर भगवान के प्रेम ओर भावावेश की लहरे उठ रही है उनका ये दिव्य स्वरूप देखकर नारद मुनि को अतियांत आश्चर्य हुआ । ओर थोड़ा बुरा भी लग ओर उन्होंने मन में सोचा हे प्रभु में इतने युगों से आपकी भक्ति कर रहा हूँ ओर में स्वाम को पूर्ण रूप से आपको समर्पित कर दिया है लेकिन फिर भी क्या में उतना भी लायक़ नहीं हूँ की अपने एक बार भी अपना मुझे उच्छिष्ट नहीं दिया ?

लेकिन मैंने भी अब ये निर्णय कर लिया है आपकी कृपा से ही आपके उच्छिष्ट प्रसाद को प्राप्त कर के रहूँगा ।
फिर इस संकल्प के बाद नारद मुनि पहुँच गए माँ लक्ष्मी जी के पास ओर उनके पास रहकर अब वो लक्ष्मी देवी की सेवा करने लगे ।

कुछ वर्षों तक जब नारद जी ने लक्ष्मी देवी की सेवा की तो लक्ष्मी देवी बहुत प्रसन्न हुई ओर उन्होंने नारद मुनि से कहा – हे वत्स तुमने आत्यंत निस्ठा ओर श्रद्धा पूर्वक मेरी सेवा की है ओर मेरे आराध्या देव नारायण की सेवा में भी मेरी सहायता की है इसलिए माँगो तुम्हें जो भी वरदान मुझसे चाहिए ।

“माता लक्ष्मी की दुविधा: नारद मुनि के कटु वचन के बाद उनकी इच्छा का पूरण”

मैं वचन देती हूँ मैं तुम्हारी इच्छा आवश्यक पूर्ण करूँगी । ओर बस नारद मुनि को तो इसी समय का इंतज़ार था उन्होंने तुरंत माँ लक्ष्मी से कहा- हे माता अगर आप सच में मुझ पर कृपालु है तो कृपया मुझे मेरे आराध्या देव श्री हरि का उच्छिष्ट प्रसाद दें । ओर फिर मुझे अधिक नहीं चाहिए केवल एक मूठी ही दे दीजिए माता ।

नारद मुनि की बात सुनकर माता लक्ष्मी दुविधा में पड़ गई उन्होंने मुनि से कहा ये तुमने क्या माँग लिए ऐसा वरदान जो मैं किसी को नहीं दे सकती । मेरे स्वामी ने मुझे साफ़ मना किया है की उनका उच्छिष्ट प्रसाद किसी को भी ना दिया जाए । अब ऐसे मैं उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकती ।

लक्ष्मी जी की ये बात सुनकर नारद मुनि बालक की तरह रूष्ट हो गए । ठीक है माता यदि आपकी यही इच्छा है तो कोई बात नहीं पर याद रखिएगा आज के बाद संसार में लोग कहेंगे माता लक्ष्मी वचन तो दे देती है पर पूरा नहीं करती । नारद मुनि के कटु वचन सुनकर लक्ष्मी जी बहुत चिंतित हो गई । ओर उन्होंने नारद से कहा वत्स मैं तुम्हारी इस इच्छा को अवश्य पूर्ण करूँगी ।

इतना कहकर श्री लक्ष्मी भगवान विष्णु के पास जाती है ओर उनकी सेवा करते होये लक्ष्मी जी बहुत चिंतित दिखाई पड़ रही थी भगवान श्री हरि ने उन्हें देखा ओर चिंता का कारण पूछा इसके उतर में लक्ष्मी जी ने सारी बात बताई । भगवान श्री विष्णु भी मंद मंद मुस्कुराने लगे ओर लक्ष्मी जी से कहा- हे देवी उचित है जाओ तुम नारद को मेरा उच्छिष्ट प्रसाद दे दो । अब लक्ष्मी जी प्रसन्न होकर नारद मुनि के पास पहुँची ओर उन्होंने मुनि को भगवान नारायण का प्रसाद दिया ।

ओर जैसे ही नारद मुनि ने उस महाप्रसाद का सेवन किया । उनके अंदर अष्टसात्विक विकार प्रकट होने लगे । वह ज़ोर ज़ोर से भगवान का कीर्तन करने लगे इस भावावेश में वो सम्पूर्ण ब्रह्मांड का विचरण करते होये भगवान के पास केलाश पहुँच गए । उनकी ऐसी अवस्था देखकर भगवान शिव को भी बहुत आश्चर्य हुआ उन्होंने सोचा आज नारद मुनि को क्या हो गया है तब नारद जी ने उनसे कहा- आज उन्हें भगवान श्री विष्णु का महाप्रसाद प्राप्त हुआ है । जो किसी को नहीं मिलता ऐसा सौभाग्य सिर्फ़ मुझे मिला है

“भगवान शिव की अद्वितीय भक्ति और तांडव नृत्य: श्री हरि के महाप्रसाद की कहानी”


ऐसा सुनकर भगवान शिव ने कहा क्या तुम मेरे लिए नहीं लाए श्री हरि का महा प्रसाद इतना कहते हुए शिव जी देखा नारद मुनि की ऊँगली पर अभी भी महाप्रसाद के कुछ कण चिपके थे ये देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए ओर उन्होंने नारद मुनि की ऊँगली में चिपका वो प्रसाद खा लिया बस फिर क्या था फिर पृथ्वी पर प्रलय आने की तैयारी होने लगी । भगवान शिव के अंदर श्री हरि की प्रेमा भक्ति का ऐसा भावावेश उमड़ा की उन्होंने तांडव नृत्य करना शुरू कर दिया ।

जिस से पूरी पृथ्वी कापने लगी चारों तरफ़ त्राहि त्राहि मच गई। तभी पृथ्वी देवी माता पार्वती के पास पहुँची ओर उनसे प्रार्थना करते हुए कहती है
कृपया मेरी रक्षा करे असमय ही महादेव आज तांडव करने लेग है अगर ऐसा ही चलता रखा ओर जल्द ही में ख़त्म हो जाऊँगी । आप मेरी रक्षा करें । पृथ्वी देवी के विनती सुनकर माता पार्वती भगवान शिव के पास जाकर उन्हें शांत करती है ओर इस स्तिथि का कारण पूछती है आप इतने भावावेश में केसे आ गए थे तब शिव जी ने भगवान विष्णु के उच्छिष्ट महाप्रसाद की सारी बताई ।

ये सुनकर माता पार्वती को बहुत क्रोध आया । उन्होंने शिव की को ताना मारते हुए कहा स्वामी अभी तक मुझे लगता था मैं आपकी अर्धागनी हूँ आप मेरे प्रति उदार ओर दयालु है पर ये सब झूठ है मेरे प्रति आपका प्रेम दिखावा ही है । ये बात मुझे आज समझ आई है इतने बड़े धन को आपने मुझसे छिपा के अकेले ही ग्रहण के लिया ।

“भगवान नारायण की विशेष प्रसन्नता और माता पार्वती की इच्छा: एक महाप्रसाद की कथा”


कोई बात नहीं अब मैं भी प्रतिज्ञा लेती हूँ यदि भगवान विष्णु के मन में मेरे प्रति दया है तो में तीनो लोकों में प्रत्यक मनुष्य जीव जंतु को उनका महाप्रसाद दिलाऊँगी ।ओर फिर उन्होंने भगवान श्री हरि की घोर तपस्या की उनसे प्रसन्न होकर भगवान नारायण उनके सामने प्रकट हुए । उन्होंने माता पार्वती को वरदान देते हुए कहा- हे देवी तुम्हारी इच्छा अवश्य पूर्ण होगी । मैं तुम्हारे समक्ष प्रतिज्ञा लेता हूँ मेरा महाप्रसाद बिना भेदभाव के सभी में वितरित होगा ।


जिसकी सुगंध से ही जीव भोतिक ज़ंजीरो से मुक्त हो जाएगा ओर अपनी भोतिक इच्छा का त्याग करेगा।
कलयुग में मेरा अभिर्भाव होगा तब विमला देवी के नाम से तुम मेरे निकट ही वास करोगी । मुझे अर्पित भोग सबसे पहले तुम्हारे प्रदान किया जाएगा । ओर फिर उस उच्छिष्ट महाप्रसाद को अभी जीवों में विस्तृत किया जाएगा । ओर इस प्रकार भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद प्रकट हुआ जिसका आसुवादन आज प्रत्येक मनुष्य बिना किसी जाति, धर्म ओर वर्ण के करता है । जिसे खाने से परम आध्यात्मिक गति प्राप्त होती है ।

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