Diwali ki katha | दिवाली की कथा इन हिंदी | महालक्ष्मी दिवाली की कथा- Deepawali ki katha in hindi
दिवाली की कथा:- एक समय की बात है धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से कहा हे गोविंद कृपा कर आप मुझे कोई ऐसा उपाए बतायें जिस से हमारा नष्ट साम्राज्य पुनः प्राप्त हो जाए तथा राज्य, लक्ष्मी, धन, वेभव प्राप्त हो जाए ।
इस बात को सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने कहा- हे राजन जब देतेया राज बलि राज्य कर रहे थे । तब उनके राज्य में सारी प्रजा सुखी थी मेरा भी वह प्रिये भक्त है एक बार राजा बलि ने सौ अश्वमेघ यज्ञ करने की प्रतिज्ञा की उसमें जब 99वें यज्ञ पूरे किए ओर एक ही शेष बचा था तब इंद्र को अपने सिंघासन छीन जाने का भय हुआ क्यूँकि एक सौ यज्ञ करने वाला इंद्र सिंघासन का अधिकारी होता है ।
इस भय से वह रूद्र आदि देव महादेव के पास पहुँचा किंतु वे कोई उपाय ना कर सके । तब सभी देवतागण इंद्र के साथ झीर सागर भगवान विष्णु के पास पहुँचे ओर भगवान की स्तुति की भगवान विष्णु प्रकट हुए उनके सामने इंद्र ने अपना दुःख सुनाया । भगवान ने कहा इंद्र तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारे इस भय का अंत कर दूँगा यह कहकर भगवान ने उन्हें अपने धाम को भेज दिया । भगवान वामन का रूप धर के राजा बलि के वहाँ पहुँचे जब वह 100वाँ यज्ञ कर रहा था ।
भगवान वामन ने भिक्षा में राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगा । दान का संकल्प हाथ में लेकर भगवान ने एक पग में पूरी पृथ्वी नाप ली, दूसरे पग से अंतरिक्ष ओर तीसरा पग राजा के सिर पर रख कर नाप दिया । इतना होने पर वामन भगवान ने राजा से वर माँगने को कहा- राजा ने कहा हे भगवान कार्तिक के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी, चतुर्दशी ओर अमावशया तीन दिन पृथ्वी पर मेरा राज रहे इन दिन दीनो में लोग दीप दान, दीपावली आदि कर के उत्सव मनाए लक्ष्मी का पूजन करे, दिवाली की कथा सुने लक्ष्मी का निवास हो, ओर ऐसा ना करने वाले पर लक्ष्मी जी क्रुद्ध हो जाए ।
इस प्रकार वर माँगने पर विष्णु भगवान ने कहा हे राजन यह वर हमने तुमको दिया । लक्ष्मी पूजन दिवाली करने वाले के घर लक्ष्मी का निवास होगा ओर अंत में मेरे धाम को प्राप्त होगा ।
यह कहकर भगवान ने राजा बलि को सुतल लोक का राज्य देकर उनके लोग में भेजा ओर इंद्र का भय दूर किया । उस दिन से माँ लक्ष्मी आदि का पूजन दीपावली पर किया जाता है जिसके फलस्वरूप दिवाली मनाने वाले के घर में कभी लक्ष्मी का आभाव नहीं होता ।
भगवान श्री कृष्ण बोले हे राजन एक कथा ओर सुनिए- मणिपुर नामक नगर में एक राजा था जिसकी पत्नी पतिव्रता एवं धर्मपरायण थी एक दिन उसकी पत्नी अपनी छत पर स्नान के निमित अपने गले के सुंदर क़ीमती नोलख़ा हार को उतारकर वहाँ स्नान करने लीग ।
उसी समय आकाश में घूम रही चील की दृष्टि हार पर पड़ी ओर वो उसे लेकर उड़ गई एक स्थान पर एक बुढ़िया की झुपडी की छत पर मरा हुआ सर्प पड़ा था जैसे ही उसकी दृष्टि सर्प पर पड़ी चील हार छत पर छोड़कर सर्प लेकर चली गई । उधर रानी हार चील के द्वारा ले जाने पर उदास होकर अपने महल में चली गई । थोड़ी देर बाद राजा के आने पर उनसे सारी बात बताई। राजा ने उसे विश्वास दिलाया हार अवश्य मिल जाएगा ।
यह कहकर राजा सभा में पहुँचा सारे नगर में डिडोर पिटवा दिया की जो रानी का हार लाकर देगा वो मनचाहा वर पाएगा । दूसरे दिन एक बुढ़िया हार लेकर राजा के पास पहुँची ओर राजा को वह हार दे दिया ।
फिर राजा ने उसे वरदान माँगने को कहा उसने वरदान में माँगा की आज से 8वे दिन दीपावली है उस दिन नगर में महालक्ष्मी का पूजन कोई ना करे केवल मैं ही करूँगी उसके लिए पूजा के सारी सामग्री मेरे घर में भिजवा दें ।
इस बात से आश्चर्य से राजा ने पूछा की इस वर से तुम्हें क्या लाभ हुआ ।
बुढ़िया बोली हे राजन इस दिन लक्ष्मी पूजन एवं दीपावली करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती है सदा उसके घर में स्थित रहती है राजा ने कहा मुझे भी लक्ष्मी पूजन करना है बुढ़िया ने कहा प्रथम मैं करूँगी बाद में आप कर लेना। ऐसा करने PR राजा एवं बुढ़िया के घर अतुल सम्पत्ति का निवास हो गया ।
इसलिए श्री महालक्ष्मी की प्रसनता के लिए बड़े राज से लेकर रंक की झोपटी तक में श्री महालक्ष्मी का पूजन होता है और दिवाली की कथा सुनी जाती है । भगवान कृष्ण ने कहा हे धर्मराज युधिष्ठिर श्री महालक्ष्मी के पूजन तथा दीपावली के उत्सव से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है इसलिए राजन तुम भी करों तुम्हारा खोया हुआ राज्य तुम्हें मिल जाएगा ।
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