पापांकुशा एकादशी की उपवास व्रत कथा: Papankusha Ekadashi
Papankusha Ekadashi: हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एकादशी का उपवास या व्रत रखने से भगवान श्री हरि विष्णु अपने भक्तो से प्रसन्न होकर उन पर अपनी कृपा बनाये रखते है। वायु पुराण में कहा गया है जो व्यक्ति भक्ति भाव से एकादशी व्रत का पालन करता है वह समस्त कठिनाइयों और पापो से मुक्त हो जाता है। और भगवान श्री हरि का धाम प्राप्त करता है।
Papankusha Ekadashi Vrat ki vidhi: पापमोचनी एकादशी व्रत विधि
एकादशी का व्रत पालन द्वादशी से ही शुरू हो जाता है व्रत से एक दिन पहले द्वादशी की शाम को सूर्यास्त से पहले हल्का भोजन ग्रहण करना चाहिए। और अलगे दिन एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त पर उठे स्नान आदि से निवृत होकर, भगवान की मंगला आरती करिये। मंगला आरती के बाद भगवान के सामने हाथ में गंगा जल लेकर पापमोचनी एकादशी व्रत का संकल्प ले। संकल्प लेने के बाद तुलसी देवी की पूजा करें उनके समक्ष घी का दीपक प्रज्योलित कीजिये। पुष्प अर्पित कर उनकी कम से कम तीन परिकर्मा कीजिये। और पुरे दिन भगवान के नामो का जाप करें कथा सुने।
पापांकुशा एकादशी का महत्व: Papankusha Ekadashi ka mahatam
युधिष्टर महाराज ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा- हे मधुसूधन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में कौन सी एकादशी आती है? कृपया विस्तार से बताइये भगवान श्री कृष्ण ने उत्तर दिया हे राजन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi) कहा जाता है ये एकादशी इतनी पावन और पवित्र है की ये मनुष्य के सभी पापों पर अंकुश लगाती है इस लिए इसे पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है।
इस दिन मनुष्य को भगवान पद्भनाभ के विग्रह की पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी का पालन करने से मनुष्य को इस संसार के तमाम प्रकार के सुख प्राप्त होते है। और मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम को प्राप्त होते है इतना ही नहीं पृथ्वी के समस्त तीर्थ स्थलों की यात्रा करने से जो फल प्राप्त होता है उन सबका फल इस पापांकुशा एकादशी व्रत रखने से मिलता है। बड़े बड़े १०० राजसु यज्ञ और १०० अश्वमेघ यज्ञ से भी जो फल प्राप्त नहीं होता वो फल इस पापांकुशा एकादशी व्रत का पालन करने से प्राप्त होता है। भगवान कृष्ण ने महाराज युधिष्टर हे राजन अब मैं तुम्हे पापांकुशा एकादशी (Papankusha Ekadashi)व्रत कथा सुनाता हूँ इसे ध्यान पूर्वक सुनो-
पापांकुशा एकादशी की व्रत कथा: Papankusha Ekadashi Vrat Katha
एक बार विंध्य पर्वत पर बड़ा ही क्रूर शिकारी रहता था। पशु पक्षी की हत्याऐं करना ही उसका व्यवसाय था उसके इन पापों के कारण यमराज ने पहले ही नर्क में उसका स्थान निश्चित कर दिया था।
एक दिन इस शिकारी को ज्ञात हुआ की जो पशु पक्षियों की हत्या का व्यवसाय मैं करता हूँ इसके कारण मुझे मृत्यु के बाद नर्क जाना होगा और वहा बहुत कष्ट झेलने पड़ेंगे।
नर्क के डर से भयभीत होकर ये शिकारी अंगिरा ऋषि के आश्रम में चला गया। वह जाकर उसने ऋषि से प्रार्थना की हे ऋषिवर मैंने अपने पुरे जीवन में बहुत पाप कर्म किये है। जिसके कारण मैं अपने जीवन के अंत में बहुत भयभीत हूँ, कृपया आप मुझे पाने पाप कर्मो से मुक्त होने का मार्ग बताये।
शिकारी की बात सुनकर ऋषि अंगिरा ने उसे अश्विन मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली पापांकुशा एकादशी का पालन करने के लिए कहा और इस प्रकार श्रद्धा पूर्वक पालन करने से शिकारी अपने सारे पाप कर्मो से मुक्त हो गया। और जीवन के अंत में वह अधियात्मिक जगत में प्रवेश कर पाया।
भगवान श्री कृष्ण ने कथा का समापन करते हुए कहा हे राजन जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का पालन श्रद्धा भाव से पालन करता है उसकी माता की ओर से 10 पीढ़ी पिता की ओर से 10 पीढ़ी और पति/पत्नी की ओर से 10 पीढ़ी का भी उद्धार हो जाता है। इस एकादशी के दिन जो व्यक्ति गाय, सोना, चांदी, जमीन, तिल पानी, छाता, चप्पल इन चीज़ो का दान करता है उसे कभी यमराज का मुख नहीं देखना पड़ता।
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1. प्रश्न: पापांकुशा एकादशी ( Papankusha Ekadashi) व्रत से का पालन करने से क्या पूर्वजो का उद्धार होगा?
उत्तर: जो व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत श्रद्धापूर्वक करता है, उसकी माता की ओर से 10 पीढ़ियां, पिता की ओर से 10 पीढ़ियां और जीवनसाथी की ओर से भी 10 पीढि़यों का उद्धार हो जाता है और उन्हें वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है।
2. प्रश्न: पापांकुशा एकादशी ( Papankusha Ekadashi) व्रत से प्राप्त होने वाला पुण्य फल?
उत्तर: पापांकुशा एकादशी व्रत से संसार में सभी प्रकार के सुख मिलते हैं। और मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं, इस पापांकुशा एकादशी व्रत को करने से पृथ्वी के सभी तीर्थ स्थानों की यात्रा का फल प्राप्त होता है। जो फल 100 राजसू यज्ञ और 100 अश्वमेध यज्ञ करने से भी नहीं मिलता वह इस पापांकुशा एकादशी व्रत को करने से प्राप्त हो जाता है।