प्रेमानंद महाराज जी ने बताया ऐसे 9 लोगों को कष्ट, दुख, रोग भोगना पढ़ता है
आज के सत्संग में श्री प्रेमानंद जी महाराज ने अति गोपनीय बातें कही की ऐसे 9 लोगों को कष्ट, दुख, रोग भोगना पढ़ता है। जिनका वर्णन हमने नीचे विस्तार से किया है। और साथ में ये भी बताया की इन लोगों का संग एक साधक को कदापि नहीं करना चाहिए। ये ऐसे 9 लोगों को कष्ट, दुख, रोग भोगना पढ़ता है जिनके संग से से साधक का भजन नष्ट हो सकता है।
पहले प्रकार के लोग- मुझे सुख भोगना है मस्त रहना है चाहे कुछ भी हो जाये। ऐसे लोगो के बहुत से विरोधी बन जाते है। वो ऐसे दुर्गति के जल में फसता चला जाता है। जहा से निकलना मुश्किल होता है।
दूसरे प्रकार के लोग- जिन लोगो के ये विचार रहते है अरे किसने देखा है भगवान को मरने के बाद क्या होगा किसने देखा ये सब बेकार बाते है। ना लोक है ना परलोक मौज़ मस्त करो। ऐसा व्यक्ति कभी कर्तव्य पालन नहीं कर सकता जिसके ऐसे विचार है। ना भगवान पर विश्वास है ना लोक पर विश्वास है ना धर्म पर विश्वास है। ऐसा स्वैच्छाचारी मनुष्य ही कहा जाता है। ऐसे भाव वाला पाप कर्म ही करता है।
तीसरे प्रकार के लोग- मेरा कोई क्या बिगाड़ लेगा मैं जो करूँगा वो करूँगा। ऐसे लोग किसी से ठीक से बात भी नहीं करते अंहकार से भरे रहते है। अभिमान के करना इनकी शत्रुता ही बढ़ती रहती है। अपने बंधु बांधव का भी ये हित नहीं करते ऐसे स्वभाव वाले लोग ये फलस्वरूप सबसे घृणा करते है और सब के घृणा के पात्र बन जाते है। ये केवल अपने अभिमान की पुष्टा के लिए ही कर्म करते है। ऐसे दूर रहना चाहिए।
चौथे प्रकार के लोग- क्या करूं सुनता तो हूँ शास्त्र की बात भजन करना चाहिए, सत्य से चलना चाहिए, बेविचार नहीं करना चाहिए, चोरी नहीं करना चाहिए। समझता हूँ पर मैं ऐसा कभी कर नहीं पाऊँगा। वो कोई अवतारी पुरुष होते है जो भजन आदि करते है। हम लोगो के तो बसकी नहीं- इन लोगों की बस थोड़ी से बुद्धि प्रकाशित है जो इतना तो मानती है कि जी शास्त्र और संत जन कह रहे है वो सत्य है। पर मैं कर नहीं पाऊँगी ऐसे लोग भी चौथे नंबर पर है। ऐसे लोगों का भी संग नहीं करना चाहिए।
Read more- इसके 8 लक्षण जानें भगवान आपके साथ हैं
ऐसे लोग भी कर्तव्य कर्म का पालन नहीं कर सकते। इनके बहाने होते है क्या करूँ लाचार हूँ पर नहीं कौन मेरे सिर पर बैठ जाता है मुझसे ये सब पाप कर्म करा लेता है मैं करना तो नहीं चाहता पर पता नहीं कैसे हो जाता है। और बहुत सी जिम्मेवारी मेरे ऊपर है ये सब शास्त्र की बाते मैं नहीं कर पाउँगा। हाँ अगर कोई भगवत प्राप्ति है तो महात्माओं के लिए हम तो गृहस्थ है। हमें तो केवल जीवन यापन करना है अपने परिवार का पोषण करना है। महापुरुष कहते साधक को ऐसे लोगों का संग कदापि नहीं करना चाहिए।
पांचवे प्रकार के लोग- मैं क्यों किसी का हित करूँ, प्रेम करूँ। सब मुझसे घृणा तो मैं भी घृणा करूँगा देखते कौन क्या बिगड़ है। ऐसी हीन भावना अपने अंदर भर लेते है। कि सबको दुःख देते है वाणी से चेष्टा से ऐसे लोग इतनी घृणा दुसरो से करने लगते है की इन्हे अपना जीवन भी भार लगने लगता है। ऐसे लोग हिताश और निराश हो जाते अपने जीवन से इसलिए साधक को ऐसे दुष्टो का भी संग नहीं करना चाहिए।
छठे प्रकार के लोग- क्या करूँ मैं तो सिर्फ दुःख भोगने के लिए पैदा हुआ हूँ। सब सुखी है मेरे हिस्से में ही पूरा दुःख दिया। नहीं भजता मैं भगवान को चलूँगा विरुद्ध में चलूँगा और कितना दुःख देंगे। फिर ऐसा व्यक्ति और उत्साहित होकर पाप कर्म करता है बुद्धि देखो कैसे उसे प्रेरित करती है। ऐसे लोगो का बड़ा चिड़चिड़ा स्वभाव होता है नाक पर गुस्सा कोई बोल दें तो पीटने के भाव से देखते है। ये लोग सोचते है मैं देख लिया इस संसार में मेरा कोई नहीं सब मुझे दुःख देते है तो मैं किसी को सुख क्यों दूँ। इन लीगो में उदासी, निराशा, मस्तिक विकृति, उन्माद ये सब इन लोगो के मित्र होते है।
सातवें प्रकार के लोग- जगत में कोई भी अच्छा नहीं सब दुष्ट स्वभाव वाले गंदे लोग है कोई अच्छा नहीं है फिर मैं इनके साथ अच्छा क्यों करूँ। जो जैसा होता है उसके साथ वैसा ही करना करना चाहिए दुष्टों के साथ दुष्टता ही करुँगा। ऐसे लोग जिसको देखो उसमे दोष ही निकालेंगे। कही भी इनकी गुण बुद्धि नहीं होती। न ये अपना भला करते है न दुसरो का भला होने देते है।
आठवें प्रकार के लोग- मुझे ऐसे कार्य करना चाहिए कि अंदर से भले मैं वैसे नहीं हूँ लेकिन लोग मुझे कह की बहुत बढ़िया है। ऐसे लोग थोड़े सुधार की तरफ है इतनी तो बात समझ आई की मुझे ऐसे कार्य करना चाहिए की लोग कहे की ये बढ़िया है। घोर राक्षसी से तो थोड़ा मनुष्यता में भले असलियत नहीं है। पर कम से कम यश प्राप्ति के लिए प्रकट में ऐसे बुरे कार्य दूसरों को दुःख देने वाले कार्य नहीं करेंगे ये। आठवें प्रकार के ये लोग चाहते है कि लोग मुझे अच्छा समझे। ये देखावे के लिए अच्छा बनाना चाहते है।
नौवें प्रकार के लोग- कहते है की वैराग्य ले लो, राग मत करो, भजन करो जा करके अगर मैं घर से निकल जाऊँ तो सब चौपट हो जायेगा। मेरे द्वारा ही ये घर चलता है। ऐसे लोग भी उसी पंक्ति में है जिनका संग नहीं करना चाहिए।
Read more- इन 4 बातों से लौकिक पारलौकिक समस्त सुखों की प्राप्ति, ब्रह्मचर्य नाश की भरपाई
Table of Contents