ब्रह्मचर्य नाश की भरपाई- Satsang by Sri Premanand Ji Maharaj
जो अध्यात्म मार्ग, आनंद मार्ग पर कहलना चाहते है तो उन्हें एक इंद्री के सयंम के लिए तो उन्हें पांचो ज्ञान इंद्रियों पर सयंम करना होगा इन बातों से वीर्यवान और ऊर्जावान बन जाओगे। एक जन इंद्री की जब आप पुष्टा कर लोगे तो उसकी पुष्टा के लिए आपको सर्वतो भावे ब्रह्मचर्य करना होगा।
नेत्र का ब्रह्मचर्य जो नेत्र किसी को भी देख कर भोग कामना कर लेते है। भोग बुद्धि से देखते है वस्तु को, व्यक्ति को, किसी को भी इन नेत्रों से बेविचार हो रहा है। इसीलिए सावधान रहना चाहिए जैसे नाटक सिनेमा आदि है। किसी बाहरी व्यक्ति का अनुकरण मत कीजिये। इस लिए सबसे पहले नेत्र का ब्रह्मचर्य शुरू कीजिये। कोई भी गलत क्रिया वाली आपको वो चीज़ नहीं देखनी, वो बात नहीं पढ़नी, वो दृश्य नहीं देखना।
फिर वाणी का ब्रह्मचर्य बहुत प्रभाव पढता है इस से यदि आप ज़बान से अश्लील बातें, गन्दी बातें, कामुक बातें करेंगे। तो आप ब्रह्मचर्य से नहीं रह सकते। इस लिए वाणी से भी ऐसी कोई वार्ता मत कीजिये जिससे आपके अंदर काम वेदना बढ़े। साधक को आराध्य देव के सिवा कान से और कोई बात सुनना उसे बेविचार कहते है। हमारी श्रवण इंद्री का बेविचार नहीं होना चाहिए। धर्म की बात, अपने आराध्य देव की बात, शास्त्र सम्मत बात हम श्रवण करें।
त्वगेंद्र इंद्री का ब्रह्मचर्य आनावश्यक किसी को स्पर्श मत करो। परस्पर विरोधी शरीर को तो भूल कर भी स्पर्श मत करो।
एक एक इंद्रि का जब आप सयंम करोगे तब आपका वीर्य सयंम होगा। आप नेत्र इंद्री से गंदे चित्र देखे, श्रवण इंद्री से गन्दी बाते सुने, वाणी से गन्दी बाते बोले, रस इंद्री से गन्दा भोजन करें और सोचें ब्रह्मचर्य रह जायँगे बिलकुल नहीं कदापि नहीं ब्रह्मचर्य कोई खिलवाड़ नहीं है।
फिर आता है अन्तः कारण का ब्रह्मचर्य -इन बातों से वीर्यवान और ऊर्जावान बन जाओगे
हमारा मन काम की तरफ तभी जाता है जब उसको निज सुख नहीं मिलता। सृष्टि में जितने भी दुर्गुण दुराचार होते है उनमें दो प्रधान होते है एक काम भोग और एक धन प्रधानता दो ही है कंचन और कामिनी। उपासक को मन को समझना चाहिए हम जहां जहां आसक्त हो रहे है वहा केवल हमारे मन का ब्रह्म है। वैरागी भगवत मार्ग का पथिक मन के द्वारा ऑपेरशन करता है हर वस्तु का।
यदि आप किसी भी तरह से हस्तमैथुन आदि के द्वारा, गंदे दृश्य देखकर के, गन्दी क्रियाओं के द्वारा आप अपना नाश करते रहेंगे तो ना आप इस लोक में सुखी रहेंगे ना परलोक मेंइस लिए ब्रह्मचर्य अति आवश्यक है।
सयंम में रहना ही विद्या का वास्तविक स्वरूप है। अपनी इन्द्रियों को संयम में रखना, अपने को संयम में रखना। बुजुगों का, गुरुजनों का, शास्त्रों का भय रखना ह्रदय में आप तभी निर्भय हो पाओगे जीवन में।
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