Apara Ekadashi: अपरा एकादशी का महत्तम पढ़े।
आज हम जेष्ट मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) की कथा कहेंगे। एक बार युधिष्ठिर महाराज भगवान श्री कृष्ण से याचना करते है की हे मधुसुधन कृपया करके हमें विस्तार पूर्वक अपरा एकदशी के बारे में बताये। ये सब सुनकर कृष्ण कहते है। की हे राजन आपका ये प्रश्न संपूर्ण जगत का मगंल करने वाला है। मैं तुम्हे इस एकादशी के बारे में बताता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो।
ये धर्मराज अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) बहुत ही सुंदर वरदान प्रदान करने एकादशी धन देने वाली एकादशी है। जो व्यक्ति इस व्रत का पालन करता है वो पुरे विश्व में प्रसिद्धि प्राप्त करता है। इस व्रत के प्रभाव से ब्राह्मण हत्या, दुसरो के प्रति निंदा, दुराचार आदि सब पाप दूर हो जाते है।
यहाँ तक की परस्त्री गमन, झूठी गवाही देना, झूठ बोलना इस तरह के घोर पाप नष्ट हो जाते है। हे राजन ये एकदशी सभी पापो को ऐसे काट देती है जैसे एक कुल्हाड़ी बड़े से बड़े पेड़ को काट देती है। जैसे अग्नि सबको भस्म कर देती है इस तरह से सभी पापों को जला देती है।
रण भूमि से भाग जाने वाला क्षत्रिय, गुरु की निंदा करने वाला शिष्य, अत्यंत पापी व्यक्ति भी अगर इस अपरा एकादशी का पालन करता है। वो भी आध्यात्मिक लोक में जाने का अधिकारी बन जाता है।
पुष्कर नदी में कार्तिक पूर्णिमा में स्नान करने से और गंगा में नदी में पितृ को पिंड दान करने से जो फल मिलता है। वही फल अपरा एकादशी के पालन करने वाले को सहज ही मिल जाता है।
Apara Ekadashi Vrat Katha: आपदा या अचला एकादशी से सुख-समृद्धि और धन में वृद्धि होती है
इस की कथा इस प्रकार है प्राचीनकाल में महीध्वज नाम का एक पुण्यवान धर्मात्मा राजा रहता था। और दूसरी ओर राजा का छोटा भाई वज्रध्वज बहुत ही क्रूर और अधर्मी व्यक्ति था। वह अपने बड़े भाई से अत्यंत द्वेष करता था।
इसी ईर्ष्या के चलते उसने एक दिन अपने भाई की हत्या करके उसके शरीर को एक पीपल के वृक्ष के नीचे गढ़ दिया। इस आकाल मृत्यु के कारण राजा प्रेत बनकर उसी पीपल के वृक्ष पर रहने लगा।
एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि वहां से गुजर रह थे। ऋषि ने उस प्रेत को देखा और अपने तपो बल से समझ पाए की किस कारण से इसे प्रेत योनि मिली। करुणामय होकर उन ऋषि ने उस प्रेत को वृक्ष से निचे उतरा और उसे परलोक विद्या का उपदेश दिया।
करुणामय दयालु ऋषि ने उस राजा को प्रेत योनि से मुक्त करने के लिए अपरा एकादशी (Apara Ekadashi) का बहुत निष्ठा और नियम से पालन किया। ऋषि ने उस अपरा एकादशी से अर्जित समस्त पुण्य उस प्रेत को अर्पित कर दिया।
इस पुण्य के प्रभाव से राजा महीध्वज की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। ऋषि को धन्यवाद व्यक्त कर राजा महीध्वज दिव्य देह धारण कर स्वर्ग लोक चले गए।
कथा का समापन करते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते है -हे प्रिय युधिष्टर जो व्यक्ति इस व्रत का पालन निष्ठा से करता है वह राजा महीध्वज की तरह स्वर्ग लोक को प्राप्त करता है। और इस दिन व्रत को रखने से सुख-समृद्धि और धन में वृद्धि होती व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इस व्रत के पालन से सभी जीवो का कल्याण होता है ये एकादशी धन, वैभव और सम्प्पति देने वाली उत्तम एकादशी है। उनकी निष्ठा और नियम से सभी का पालन करना चाहिए और अपना कल्याण करना चाहिए।
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