राग द्वेष क्या है?
राग: जिस व्यक्ति वस्तु स्थान से हमारा लगाव ऐसा लगाव जाये जिसके बिना हम खुद को अधूरा समझे चाहे वो व्यक्ति हो, वस्तु हो या स्थान हो। इसे कहते है राग हो जाना।
द्वेष: वही जिस से राग हुआ है उसी से द्वेष होता है जिस वृति से राग हुआ, जिस अनुकूलता से राग हुआ, जिस वस्तु से राग हुआ, जिस पदार्थ से राग हुआ उसी से प्रतिकूलता मिलती है। चाहे वो वृति हो, वस्तु हो, व्यक्ति हो, स्थान हो हमारा द्वेष हो जाता है। तो वृति, वस्तु, स्थान या व्यक्ति इसकी अनुकूलता का नाम राग और इसी की प्रतिकूलता का नाम द्वेष है।
राग द्वेष जबतक है तबतक भगवत प्राप्ति नहीं होती। द्वेष दोनों को नष्ट कर देता है वही निर्वाण पद पर मोक्ष पदवी को प्राप्त होता है या भक्ति को। लेकिन जब तक राग द्वेष है तब तक ना भक्ति ना ही निर्वाण पद मिलता है।
ये राग द्वेष कैसे मिटे?
जिससे आपका बहुत लगाव हो जाये अब उस लगाव को छोड़ सकते उसी में भगवान का भाव करते हुए और लगाव बढ़ा लो। राग मिटता जायेगा- जैसे हमें पदार्थ प्रिये है और हम उस पदार्थ को भगवान को भोग लगा दें। औरअल्प मात्रा प्रसाद लेकर बाँट दे। उस प्रिये पदार्थ से हमारा राग खत्म हो जायेगा। क्युकी वह पदार्थ हमने भगवत अर्पित कर दिया। इसी तरह अगर हमें कोई व्यक्ति प्रिय है अब हम उसमें भगवत भाव करके “हे नाथ ” आप इस रूप प्रभु आप मुझे आकर्षित कर रहे हो। आप ही हो “हे करुनानिधान” आप अपने इस रूप से मुझे बचाकर अपने सच्चिदानन्द रूप में लगाइये बस भगवत भाव कर लो।
राग को तो आप भगवत भाव से मिटाओ और जो आपसे द्वेष कर रहा है उसे प्रियता करके मिटा दो। द्वेष वाले की प्रियता जैसे वो आपसे बोल नहीं रहा तो आप उससे राधेश्याम कहकर बोलिये। वो आपसे नफरत करता है आप उससे प्यार कीजिये और उसमे भगवान बैठे है तो अपने आप उसमे आपके भाव का प्रभाव पड़ेगा। एक दिन वह द्वेष रहित हो जायेगा। हमें संसार से तभी निर्विकार होकर के परम पद में पहुंचना होगा जब किसी से राग नहीं होगा और किसी से द्वेष नहीं होगा।
राग द्वेष व्यक्तियों का संग ना करें। जो राग द्वेष सिखाते है परमार्थ का स्वरुप किसी की स्तुति सब में एक परब्रह्म परमात्मा को देखना। हम क्यों किसी अंमगल सोचें जब सबमें हमारे मगलमय प्रभु विराजमान है। किस विरुद्ध करें सब में जो विरजमान है मेरे आराध्य जिनकी मैं आराधना कर रहा हूँ। एक रूप में मैं आरती पूजा करूँ, दूसरे रूप में उनको दुःख पहुंचाओ तो मेरे प्रभु की प्राप्ति कैसे होगी।
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शुद्ध परमार्थ का स्वरूप है सब जगह एक ही परमात्मा विराजमान है। ना किसी से राग ना किसी से द्वेष। जो राग द्वेष व्यक्ति का भाषण सुनता है, राग द्वेष व्यक्ति का लेखन पढ़ता है, राग द्वेष युक्त व्यक्तिओ का संग करता है उसका राग बढ़ता है।
जो विचारवान उपासक है वो इन बातों का चिंतन करें उसका राग द्वेष खत्म हो जायेगा। परमात्मा प्राप्त के लिए इसका नष्ट होना बहुत जरुरी है।
- जो व्यक्ति अपने प्रति राग या द्वेष रखता हो उससे उदासीन हो जाओ। तुम्हे बहुत प्यार करता हो उदासीन हो जाओ या बहुत द्वेष करता हो तो उदासीन हो जाओ। उदासीन को कोई मतलब नहीं उदासीनता: जैसे हम रस्ते में जा रहे है और कोई गाली बक रहा है हम ही को दे रहा है गाली तो हम उसी मस्ती से चले जाये जिस मस्ती से जब कोई कुछ नहीं कह रहा था और रहे थे वही हमारी मस्ती रेहनी चाहिए।
ऐसे ही कोई हमारी बड़ाई कर है हमें बहुत प्यार कर रहा है कोई मन में खुश नहीं होनी चाहिए। जैसे कोई निंदा करें तो हमें कोई दुःख नहीं ऐसे ही कोई प्रसंश करें तो हमें कोई सुख नहीं। परमार्थ के पथिक की स्थति है ये हमें धारण करनी होगी। कोई बहुत प्यार कर ये उसका स्वभाव है कोई नफरत कर है ये उसका स्वभाव है अपने अपने दिमाग़ से दोनों कर रहे है। हमको अपने दिमाग से रहना है। हमको देखना है स्तुति करने वाले में भी भगवान है और निंदा करने वाले में भी भगवान है। ना राग ना द्वेष - यदि हम सच्चे संतो का संग करेंगे विरक्तों का संग करेंगे तो ह्रदय में राग द्वेष टिक ही नहीं पायेगा। क्युकि राग द्वेष की सत्ता नहीं है
- जब हमारा ह्रदय भगवान का चिंतन करता है। और सच्चे संतों की बात सुनता है तो हमारे ह्रदय म पवित्र विचार आते है। सच्चे अच्छे सत्य विचार आते है। तो सत्य विचार में मायाकृत अपवित्र विचार राग द्वेष जिनसे ह्रदय अपवित्र होता है। इन अपवित्र विचारो की सत्ता नहीं रह जाती जब हमें सच्चे संतो का संग करते है। उनके श्री मुख से सच्चा परमार्थ सुनते है तब हमारे ह्रदय में शुद्ध विचारआते है जिनके आगे ये राग द्वेष टिक नहीं पाते।
- महात्माओं करने से पुण्य वृद्धि होती है और दुरात्माओं करने से पाप वृद्धि होती है। तो हमारी मैत्री महात्माओं से होनी चाहिए। जब हम किसी को खुश देखे तो खुश हो और जब देख दुखी देखे तो उसके दुःख निवारण की उपाय करें। तो इस तरीके से हमारा राग द्वेष नष्ट हो जायेगा।
- रोज़ एक बार प्रार्थना करें भगवान से के हमारे भजन का फल हो सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुख भागभवेत- सुखी हो, सब निरोग हो, सबका जब हम दर्शन करे तो सब हमें प्रसन्न दिखाई दें, किसी को किंचिन मात्र कभी दुःख ना हो। या हमारे भजन का फल हो- तो राग द्वेष नहीं होगा
- मेरा लक्ष्य है राग द्वेष मिटाना ऐसा दृढ़ नियम ले लेना ना किसी से राग ना किसी से द्वेष
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