कर्म का फल तो भोगना ही पड़ेगा -Shri Premanand Ji Maharaj
जो लोग दूसरों के साथ धोखा धड़ी करते है और जिसके साथ तुमने ऐसा किया है और उसके मुख से ऐसा निकला, अच्छा ऐसा धोखा तुमने मेरे साथ किया। अब भोगोगे तुम ये जो निकलता है न भोगोगे ये अकाट्य होता है। क्युकि यदि किसी का भी ह्रदय किसी भी मनुष्य, जीव, जंतु को आप कष्ट दें और उसका ह्रदय आह से भर जाये तो वो आह बज्र की लकीर है वो आपको भोगना पड़ेगा।
कभी जीवन में किसी के साथ गलत मत करो कि उसकी आह आपको लग जाये। उसकी आह तुम्हे मिट्टी में मिला देगी। ऐसा नहीं है आप कुछ भी कर रहे है और कोई देख नहीं रहा कोई हिसाब किताब नहीं जो कर रहे है अवश्य भोगना पड़ेगा।
जीव निरंतर कर्मो के जाल को रच रहा है और अपने आपको बांध रहा है। आपको मुक्त होना है बंधना नहीं है। जिव का जन्म कर्मो के बंधन से होता है और उसको अपना ऋण चुकाना होता है। जैसे आपने जिस परिवार जन्म लिया है उस परिवार के लोगो से आपका ऋण है इसलिए उस परिवार में आप आये है। इसलिए आप उसे बिना वसूले या बिना चुकाए आप वहां से जायँगे नहीं।
ये पूर्व के जन्मों से निश्चित किया गया है। जैसे किसी के यहाँ पुत्र हुआ जन्म से ही पैसा खर्च हुआ। बड़ा हुआ तो अपनी उदंडता से, पुरे परिवार को क्लेश पर क्लेश देता चला आ रहा है। ये तुम्हारे कर्म का फल है या ऐसे शक्तिहीन बुद्धिहीन परिवार उसकी बस सेवा करे वो तुमसे अपना हिसाब लेने आया है।
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अब जैसे परिवार के नए सदस्य जुड़े आकर जैसे पत्नी उसके आते ही पुरे ह्रदय में आनंद परिवार में आनंद पुरे जीवन में आनंद सुख देने के लिए ही उसका जन्म हुआ है। दूसरी तरह किसी के जीवन में उसकी पत्नी या पति आते ही भयंकर क्लेश खड़ा कर दिया और घरो के बीच दीवार आये दिन गृह कलेश, झगड़ा पूरा जीवन नर्क समझ लो हिसाब करने आई या आया है।
ऋण चुकाए बिना कोई जा नहीं सकता। किसी को ऋण वसूल करना है तो किसी को ऋण चुकाना है। अनेक जन्मों में अनेक लोगो के साथ जो हमने बर्ताव किये है अच्छे या बुरे। अनेक जन्मों में अनेक लोगों से जो लेना देना है इस लेने देने को मिट देने के बाद ही तुम मुक्त हो पाओगे। इसलिए पहले ही भगवान को समर्पित हो जाओ। वो सब खत्म आकर देने आगे-पीछे लेना-देना एकादशी स्कन्द में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है- जो भक्त मेरे चरणों का आश्रय लेकर मेरी भक्ति करता है। उसे मातृ ऋण, देव ऋण, पितृ ऋण, ऋषि ऋण सब ऋणों से मैं मुक्त कर देता हूँ।
जिनसे तुमने सेवा करवाई है उनकी सेवा करनी पड़ेगी। जिनसे अपने जो कुछ लिया है उनको वापस देना पड़ेगा। लेने देने का व्यापार जब तक खत्म नहीं होगा तब तक ये जन्म मरण चलता रहेगा। इन सबके बचने का एक ही उपाय है कि अब जो शरीर धारण किया है इसी का भोग लें आगे नहीं होना चाहिए। तो अब क्या करें- भगवान की शरण ले लें। हमें अपनी सारी जिम्मेवारी भगवान को समर्पित कर देनी है वो सब जानते है। तभी हम जिआवन मुक्त होंगे।
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