Papmochani Ekadashi: के पढ़ने सुनने मात्र से 1000 गौ के दान का पुण्य फल मिलता है
एक बार महाराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) के बारे में पूछते है इसके उत्तर में भगवान श्री कृष्ण कहते है- ये राजन एक समय लोमस ऋषि ने राजा मानधाता को इसी पापमोचनी एकादशी की महिमा सुनाई थी। इस एकादशी का पालन करने से अत्यंत खोर पापों का भी नाश हो जाता है और मनुष्य को अष्टसिद्धि प्राप्त होती है। हे राजन अब मैं तुम्हे लोमस ऋषि द्वारा कही इस कथा को कहता हूँ ध्यान से सुनो-
अनेक वर्षो पहले की बात है। देवता कुबेर के पास चित्ररथ एक बहुत सुन्दर उपवन था। वहां पुरे वर्ष बसंत ऋतू का मौसम रहता था। उस उपवन में स्वर्ग के देवता इंद्र भी ब्राह्मण के लिए आते थे इसी वन में मेधावी नाम के शिव भक्त महान ऋषि तपस्या कर रहे थे।
उनकी तपस्या से प्रभावित होकर कई अप्सरा प्रभावित होती थी पर कोई भी अप्सरा ऋषि की तपस्या को भंग नहीं कर पाई उन सभी अप्सराओं में से ही एक मुख्य अप्सरा ने निश्चय कर लिया ऋषि की तपस्या को भंग करने रहूंगी और उस अप्सरा का नाम था। मंजुघोषा उसने उस वन में ही अपना वास बना लिया।
अब अप्सरा मंजुघोषा दिन रात मेधावी ऋषि को रिझाने में लगी रहती लेकिन वह किसी भी तरह सफल नहीं हो पाई। वह तपस्या के शत्रु कामदेव वहां आ गए कामदेव ने मेधावी ऋषि के शरीर में प्रवेश कर गए। और उसी वक्त कामासक्त मंजुघोषा उनके समीप पहुंची फिर क्या था। ऋषि की तपस्या भँग हुई और ऋषि को समय का ध्यान ही नहीं रहा दिन रात और साल बीतते गए।
आखिरकार जब मंजुघोषा को ज्ञात हुआ की अब ऋषि का पतन हो चुका है। फिर उसने स्वर्ग लोक वापस लौटने का निर्णय किया और ऋषि से कहा हे ऋषिवर अब मुझे स्वर्ग लोक लौटने की आज्ञा दे। तभी ऋषि ने कहा सुंदरी तुम अभी संध्या में तो आई हो कल प्रातः चली जाना।
मंजुघोषा रुक गई इस प्रकार ५७ वर्ष ९ माह ३ दिन बीत गए लेकिन कामदेव के प्रभाव से ऋषि को इतना समय अर्धरात्रि के समान लग रहा था। पुनः मंजुघोषा ने ऋषि से जाने की अनुमति मांगी फिर पुनः ऋषि ने उसे रुकने के लिए कहा मंजुघोषा मुस्कुराई और बोली हे ऋषि आपको प्रातः विधि में कितना समय लगेगा मेरे संग में बिताये गए समय का ध्यान करे। क्या आपको तृप्ति नहीं हुई है।
जब ऋषि ने मंजुघोषा के मुख से ये सब सुना तो उन्होंने समय की गणना की और अश्रुपात करते हुए बोले मैंने अपने जीवन के 57 वर्ष व्यर्थ कर दिए तुमने मेरे जीवन और तपस्या का सर्वनाश कर दिया। मैं तुम्हे श्राप देता हूँ तुम इसी क्षण पिशाच योनि में जाओ ऋषि की वाणी सुनकर मंजुघोषा बहुत भयभीत हो गई। और ऋषि से क्षमा याचना करने लगी लेकिन मेधावी ऋषि ने कहा इस श्राप को में मिध्या नहीं कर सकता।
लेकिन अगर तुम इस योनि में भी चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का पालन करोगी। तो तुम इस पिशाच योनि से मुक्ति प्राप्त कर पाओगी इतना कहकर मेधावी ऋषि अपनी गलती का प्रायश्चित करने के लिए अपने पिता चवन ऋषि के आश्रम में लौट गए।
वे अपने पिता के चरणों में गिर पड़े और उनसे क्षमा याचना करते हुए सारी बात बताई मेधावी ऋषि कहते है। हे पिताश्री मैंने स्त्री संग से अपनी सारी तपस्या खो दी है कृपया मुझे कोई ऐसा मार्ग बताये जिस से मै इसका प्राश्चित कर सकूँ।
चवन ऋषि कहते है निःसंदेह पुत्र तुम्हे अत्यंत भयंकर भूल की और इसका प्रायश्चित केवल यही हो सकता है। की तुम चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का अत्यंत कढ़ोरता पूर्वक पालन करों ऐसा करने से तुम इस पाप से मुक्त हो जाओगे।
इस प्रकार मेधावी ऋषि ने अपने पिता कहे अनुसार पापमोचनी एकादशी (Papmochani Ekadashi) का अत्यंत कढ़ोरता पूर्वक पालन किया और फिर उन्हें अपना तपोबल पुनः प्राप्त हुआ। और पाप कर्म से मुक्त हुए और पापमोचनी एकादशी के पालन से मंजुघोषा भी पिशाच योनि से मुक्त हुई और स्वर्ग लोक में वापस चली गई।
Papmochani Ekadashi ka Mahatam
कथा का समापन करते हुए भगवान श्री कृष्ण महाराज युधिष्ठिर से कहते है हे राजन इस व्रत के पालन मात्र से समस्त पाप कर्मो का नाश हो जाता है। इस पापमोचनी एकादशी के सुनने और पढ़ने मात्र से 1000 गौ के दान का पुण्य का फल प्राप्त होता है इस व्रत के पालन से भ्रूण हत्या, ब्रह्म हत्या, परस्त्री संग इत्यादि महापापों का भी नाश हो जाता है।
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प्रश्न: पापमोचनी एकादशी ( Papmochani Ekadashi) व्रत से प्राप्त होने वाला पुण्य फल?
उत्तर: इस व्रत के पालन मात्र से समस्त पाप कर्मो का नाश हो जाता है। इस पापमोचनी एकादशी के सुनने और पढ़ने मात्र से एक हज़ार गौ के दान का पुण्य का फल प्राप्त होता है इस व्रत के पालन से भ्रूण हत्या, ब्रह्म हत्या, परस्त्री संग इत्यादि महापापों का भी नाश होता है।