सफला एकादशी की व्रत कथा | Safala Ekadashi Vrat Katha: Significance, Rituals, and Story in Hindi-25

सफला एकदशी महात्म/महत्व | Ekdashi Mahatam

सफला एकादशी की व्रत कथा:- ब्रह्माण्ड पुराण में वर्णन आता है कि एक दिन महाराज युधिष्ठर और भगवान श्री कृष्ण के बीच महत्पूर्ण विषयो पर चर्चा हो रही थी ऐसे में महाराज युधिष्ठर ने बड़ी विनम्रता से एकादशी के बारे में अपनी जिज्ञासा व्यक्त की तब भगवान ने कृष्ण ने कहा- हे प्रिये युधिष्ठर पौष मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम सफला एकादशी है।

इस दिन सभी को भगवान नारायण की आराधना करनी चाहिए। यह एकादशी सभी व्रतों में सर्वोत्तम है और जो गंभीर पूर्वाक इस एकदाशी का पालन करता है वह मेरा परम प्रिय बन जाता है और यह व्रत कैसे करना चाहिए तो सुनो इस दी भक्त को देश काल या परिस्थति के अनुरूप फल, फूल, धूप, दीप से मेरी आराधना करनी चाहिए।

और संपूर्ण रात्रि जागरण करके मेरे पवित्र नाम और जाप या कीर्तन करना चाहिए क्योंकि इस व्रत के पारण पर पुरी रात्रि जागरण करने वाले भक्त को पृथ्वी पर 5000 हजार वर्ष तक तपस्या करने का पुन्य प्राप्त होता है अब मैं तुम्हें इस सफला एकदाशी की कथा सुनाता हूं।

सफला एकदाशी की कथा/कहानी – Saphala Ekadashi Vrat Katha

चम्पावती नामक नगरी में राजा महिष्मति राज्य करते थे उनके चार पुत्र थे जिनमें से जेष्ठ पुत्र लुम्पक अत्यंत पाप पूर्ण कार्य में संलघन था मासाहार, नशा, धृयुत कीड़ा, अवैध स्त्री संग, चोरी आदि कार्य ना जाने क्यू लेकिन उसे बहुत प्रिय लगते थे वह न तो अपने माता-पिता का सम्मान करता है और न ही देवताओं और ब्राह्मणों का सम्मान करता।

उसके दुराचार से राजा की संपत्ति का भी नाश होने लगा था राजा महिष्मत ने उसे सुधारने का कई बार प्रयास किया और अवसर भी दिया लेकिन कोई परिणाम नहीं आया अंत में राजा ने उसका त्याग कर दिया और अब वह राज्य के बाहर वन में भटकने लगा।

उसके पास रहने के लिए कोई ज़मीन और कोई जगह नहीं थी, इसलिए वह दिन भर जंगल में घूमता रहता था, जंगली जानवरों का शिकार करता और उनके मांस का भक्षण करता और रात्रि में नगर में जाकर चोरी और डकैती करता।

इस प्रकार कई दिन और महीने बीत गए। आखिर एक दिन पौष मास की सफला एकदशी आई दशमी की पूर्व संध्या वह बरगत के पेड़ के नीचे सोने का प्रयास कर रहा था लेकिन त्रीव ठण्ड और कम वस्त्र के कारण उसे नींद नहीं आ रही थी ठंडी लहरों के कारण उसके दाँत किटकिटाने लगे और सूर्योदय होते-होते वह मानो अधमरा हो गया।

अगले दिन एकदशी थी शरीर की दुर्बलता के कारण वह किसी प्राणी का शिकार भी नहीं कर पाया इस लिए संध्या वही पेड़ के नीचे बैठा रहा उस दिन वह अपने जीवन का प्रायश्चित करने लगा।

उसने मन ही मन अपनी आँखें बंद करके भगवान से प्रार्थना करने लगा। और मानसिक रूप से अपने पास रखे कुछ फलों को भगवान को समर्पित किया और वो दिन था सफला एकदशी का उस रात्रि भी वह अत्यंत ठण्ड के कारण वह पूरी रात्रि सो नहीं पाया।

उसके द्वारा किये गए एकादशी व्रत पालन और तपस्या से भगवान श्री हरी उस पर प्रसन्न हो गए अगले दिन जब सूर्य उदय हो तो एक सुन्दर स्वेत और तजवी घोडा लुम्पक को ढूँढ़ता हुआ उसके पास आया उस समय आकाश वाणी हुई जिसने कहा हे लुम्पक ये घोडा तुम्हारे लिए है परम भगवान श्री हरि की असीम कृपा और सफला एकादशी का पालन करने के कारण तुम अपने सभी पूर्व पापों से मुक्त हो चुके हो।

अब इस घोड़े पर सवार होकर अपने राज्य में वापस जाओ अपने परिवार से मिलो और तुम्हारा राज्य तुम्हें पुनः प्राप्त होगा आकाशवाणी सुनकर लुम्पक की आंखों में खुशी के आंसू छलक पड़े।

उसका शरीर पुनः यौवन, तेजस्वी और सुन्दर बन गया जब वह अपने पिता के पास पहुँचा और राजा ने उसका हर्ष पूर्वक स्वागत किया कुछ समय बाद उसका विवाह सुन्दर राजकुमारी के साथ हुआ और उसे एक तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ। पिता के वानप्रस्थ आश्रम जाने के बाद उसने कुशलता पूर्वक राज्य संभाला और जीवन के अंत में भगवनधाम को प्राप्त किया।

कथा का समापन करते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते है- हे राजन जो व्यक्ति इस सफला एकदशी ( Safala Ekadashi) कथा का सवर्ण और कथन मात्र से उसे भी राजसूय यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है उसके भौतिक कष्ट दूर होते है और अंत में आध्यात्मिक लोक की प्राप्ति होती है।

सफला एकदशी व्रत विधि – सफला एकादशी संपूर्ण पूजा विधि ।  Saphala Ekadashi Vrat Vidhi

हे राजन, यदि आप भी अपना जीवन सफल बनाना चाहते हैं तो इस सफला एकादशी का व्रत अवश्य करें। एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म महूरत में उठ जाइये स्नान आदि से स्वाम को शुद्ध करके भगवान विष्णु की मंगला आरती करिये उसके बाद हाथ में गंगाजल लेकर भगवान के सामने एकादशी व्रत का संकल्प लीजिए।

तुलसी देवी के समक्ष घी का दीपक अर्पित कीजिये उन्हें जल अर्पण कीजिये और उनकी 3 बार प्रदक्षिणा कीजिये और उनका पूजन कीजिये और अपने शरीर के अनुसार उपवास करिये। अगले दिन परं के समय भगवान को भोग लग कर ब्रह्मो को भोजन कराये भगवन के सपने प्राथना कर व्रत का परान करे और फिर स्वाम प्रसाद ग्रहण करे।

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सफला एकादशी का व्रत रहने से क्या फल मिलता है?

– राजसूय यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है उसके भौतिक कष्ट दूर होते है और अंत में आध्यात्मिक लोक की प्राप्ति होती है।

सफला एकादशी व्रत में रात्रि जागरण से क्या फल मिलता है?

– पुरी रात्रि जागरण करने वाले भक्त को पृथ्वी पर 5000 हजार वर्ष तक तपस्या करने का पुन्य प्राप्त होता है