“राधारानी की सखी बनने का मार्ग: श्री राधाष्टक स्तोत्रं महत्व”
श्री राधाष्टक स्तोत्रं की रचना जगद्गुरु श्री निम्बार्काचार्य जी ने अपने एकांतवास के दौरान श्री राधा माधव के दिव्य चिंतन में लीन होकर की थी। यह स्तोत्रम् इतना प्रभावशाली है कि जो भी भक्त इसे श्रद्धा और समर्पण के साथ पाठ करता है, उसे श्री राधारानी की सखी होने का भाव प्राप्त होता है। ऐसा भक्त सदा के लिए श्री राधा-कृष्ण के निकुंज में वास करता है, जहाँ उसे शाश्वत प्रेम और दिव्यता का अनुभव होता है। श्री निम्बार्काचार्य जी द्वारा कृत यह स्तोत्र भक्ति और राधा-कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का अनमोल मार्ग है।
अनंत श्री विभूषित श्री सुदर्शन चक्रावतार जगद्गुरु श्री निम्बार्काचार्य जी द्वारा रचित श्री राधाष्टक स्तोत्रं
नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै, नमस्ते नमस्ते मुकुन्द – प्रियायै ।
सदानन्दरूपे ! प्रसीद त्वमन्तः, प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम् ।। 1 ।।
स्ववासोपहारं यशोदासुतं वा, स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।
स्वदाम्नोदरे या बबन्धाशुनीव्या, प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम् ।। 2 ।।
दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे तं, महाप्रेमपूरेण राधाऽभिधाऽभूः ।
स्वयं नाम कीर्त्या हरौ प्रेम यच्छ, प्रपन्नाय मे कृष्णरुपे समक्षम् ।। 3 ।।
मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेण बद्ध:, पतंगो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः।
उपक्रीडयन् हार्द्दमेवानुगच्छन्, कृपावर्तते कारयातो मयीष्टिम् ।। 4 ।।
व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं, मुकुन्देन साकं विधायांकमालम् ।
समामोक्ष्यमाणाऽनुकम्पाकटाक्षैः, श्रियं चिन्तयेत्सच्चिदानन्दरुपाम् ।। 5 ।।
मुकुन्दानुरागेण रोमांचितांगै, रहं व्याप्यमानां तनुस्वेद – विन्दुम् ।
महाहार्दवृष्ट्या कृपापांगदृष्ट्या, समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे ।। 6 ।।
यदंकावलोकं महालालसौघं, मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः ।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्त, हृदिस्थं नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ।। 7 ।।
सदा राधिका – नाम जिह्वाग्रतः स्यात्, सदा राधिकारूपमक्ष्यग्र आस्ताम् ।
श्रुतौ राधिकाकीर्तिरन्तः स्वभावे, गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे ।। 8 ।।
इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः, पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य ।
सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि, सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूला ।।
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