Shri Yamunashtak: श्री यमुना जी की महिमा यमुनाष्टक का महत्व
गोस्वामी श्रीहित हरिवंश चन्द्र महाप्रभु प्रणीत: श्री यमुना जी का हृदय से ध्यान करते हुए जो वैष्णवजन इस यमुनाष्टक का प्रतिदिन भाव पूर्वक प्रातः, मध्यान, साँय तीनों काल पाठ करेगा, वह इस जन्म में श्री राधावल्लभलाल जी के चरण- कमलों की उत्तम रस-भक्ति प्राप्त कर लेगा और देहपात के बाद उनकी प्राण-प्रिया श्री राधा रानी जी की सहचरी का पद निश्चय ही प्राप्त करेगा।
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શ્રી યમુનાષ્ટકમ
ब्रजाधिराज नन्दनाम्बुदाभ गात्र चन्दना-
नुलेप गंध-वाहिनीं भवाब्धि-बीज-दाहिनीम् ।
जगत्त्रये यशस्विनीं लसत्सुधा पयस्विनीं,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 1 ॥
रसैकसीम राधिका पदाब्ज-भक्ति-साधिकां,
तदंग-राग-पिंजर प्रभाति पुंज मंजुलाम् ।
स्वरोचिषाति शोभितां कृतां जनाधिगंजनां,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 2 ॥
ब्रजेन्द्रसूनु – राधिका हृदि प्रपूर्यमाणयो-
र्महा रसाब्धि पूरयो-रिवाति तीव्रवेगतः ।
बहिः समुच्छलन्नव प्रवाह-रूपिणी-महं,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 3 ॥
विचित्र रत्न बद्ध सत्तटद्वय श्रियोज्ज्वलां,
विचित्र हंस सारसा-द्यनन्त पक्षि संकुलाम् ।
विचित्र मीन मेखलां कृताति-दीन-पालितां,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ ४॥
वहन्तिकां श्रियां हरे-र्मुदा कृपा – स्वरूपिणीं,
विशुद्धभक्ति – मुज्ज्वलां परे रसात्मिकां विदुः ।
सुधा श्रुतित्व-लौकिकीं परेश-वर्ण-रूपिणीं,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 4 ॥
सुरेन्द्रवृन्द वन्दितां रसादधिष्ठिते वने,
सदोपलब्ध माधवाद् – भुतैक – सदृशोन्मदाम् ।
अतीव विह्वला – मिवोच्चलत्तरंग दोर्लतां,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 5 ॥
प्रफुल्ल पंकजाननां लसन्नवोत्पलेक्षणां,
रथांगनाम युग्मक – स्तनी – मुदार – हंसिकाम् ।
नितंब चारु रोधसां हरेः प्रिया रसोज्ज्वलां,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 6 ॥
समस्त वेद – मस्तकै – रगम्य वैभवां सदा,
महामुनीन्द्र नारदादिभिः सदैव भाविताम् ।
अतुल्य पामरै-रपि श्रितां पुमर्थ-सारदां,
भजे कलिन्द-नन्दिनीं दुरन्त-मोह-भञ्जिनीम् ॥ 7 ॥
य एतदष्टकं बुधस्त्रिकाल – मादृतः पठेत्,
कलिन्द-नन्दिनीं हृदा विचिन्त्य विश्ववन्दिताम् ।
इहैव राधिकापतेः पदाब्ज-भक्ति-मुत्तमा-
मवाप्य स ध्रुवं भवेत् परत्र तत्प्रियानुगः ॥ 8 ॥
Shri Yamunashtak: यमुनाष्टक के पाठ के लाभ
- उत्तम रस-भक्ति की प्राप्ति:
- यमुनाष्टक का नियमित पाठ भक्तों को श्री राधावल्लभलाल जी के चरण- कमलों की भक्ति प्रदान करता है।
- यह भक्ति साधारण नहीं, बल्कि उत्तम रस-भक्ति होती है जो भक्तों को परम आनंद देती है।
- श्री राधा रानी जी की सहचरी का पद:
- यमुनाष्टक के नियमित पाठ से भक्तगण मृत्यु के बाद श्री राधा रानी जी की सहचरी का पद प्राप्त करते हैं।
- यह पद वैष्णव धर्म में अत्यधिक मान्यता प्राप्त है और इससे भक्तों को भगवान के निकट रहने का सौभाग्य मिलता है।
- तीनों कालों में पाठ:
- यमुनाष्टक का पाठ प्रातः, मध्यान, और सांय तीनों कालों में करने से इसका प्रभाव और भी बढ़ जाता है।
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