Varuthini Ekadashi Vrat ki Katha Hindi
Varuthini Ekadashi: एक दिन महाराज युधिष्ठिर भगवान कृष्ण के साथ बैठे थे और उनके बीच भगवतिक चर्चा हो रही थी तभी महाराज युधिष्टर श्री कृष्ण से पूछते है -हे केशव वैसाख मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते है ये तो मै जनता हूँ किन्तु आप मुझे कृपया करके बताईये इस एकादशी के व्रत से क्या फल मिलता है? इससे क्या लाभ प्राप्त होता है?
भगवान श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए उत्तर देते है और कहते है धर्मराज ये एक ऐसी विशेष एकादशी है इस एकादशी के पालन करने वाले को इस जन्म में सुभाग्य की प्राप्ति होती है इतना ही नहीं इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति जन्म मरण के चक्र से छूट जाता है और अधियात्मिक लोक को प्राप्त करता है।
आगे भगवान श्री कृष्ण कहते है ये वही एकादशी है जिसके पालन करने से महान राजा मान्धाता को मुक्ति मिली थी एक समय की बात है जब इश्वाकु वंश के राजा त्रिशंकु थे उनके पुत्र का नाम था धुंधुमार।
राजा धुंधुमार अत्यंत पराक्रमी और भगवान के भक्त थे। लेकिन एक दिन उन्हें शिव जी से श्राप मिला वैसे तो भगवान शिव अत्यंत दयालु और आशुतोष है लेकिन राजा धुंधुमार को शिव जी द्वारा श्राप प्राप्त हुआ। राजा को इस करना कुष्ट रोग हो गया।
लेकिन जैसे ही राजा धुंधुमार को वरुथिनी एकादशी व्रत के माहात्म्य के बारे में ज्ञान हुआ उन्होंने इस एकादशी का नियम पूर्वक पालन किया। वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) व्रत पालन के बाद ही राजा धुंधुमार कुष्ट रोग से मुक्त हो गए। और उन्होंने परम आधियात्मिक गति को प्राप्त किया।
वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) व्रत के माहात्म्य बताया जाता है की इस एकादशी के पालन से 10 हज़ार वर्ष की तपस्या का फल प्राप्त होता है। इस एकादशी के महातम को बताते हुए श्री कृष्ण आगे कहते है, हे राजन जो व्यक्ति अपने पुत्र की धन सम्पति पर आश्रित रहता है उसे सम्पूर्ण ब्रमांड के जल मगन होने तक नारकीय अवस्था में रहता पड़ता है। इस से विपरीत यदि को व्यक्ति आभूषणों से सुसज्जित अपनी पुत्री का कन्या दान देता है तो वह स्वर्ग लोक प्राप्त होता है।
श्री कृष्ण आगे युधिष्ठिर महाराज से कहते है अब में तुम्हे इस व्रत में ना करने वाले वर्जित चीज़ो के बारे में बताता हूँ जैसे कांसे के बर्तन में भोजन न करना, मसूर की दाल, हरी सब्जियाँ मटर का सेवन न करना, अभक्तो के हाथ से भोजन न करना, दशमी और एकादशी के दिन शारारिक सम्बन्ध से दूर रहना, झूठ न बोलना और किसी की निंदा ना करना इत्यदि।
भगवन श्री कृष्ण अंत में कहते है जो भी व्यक्ति निष्ठा और नियम के साथ इस वरुथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi) व्रत का पालन करता है वह सभी पापों से दूर हो जाता है। और जो व्यक्ति केवल इस एकादशी व्रत महिमा को पढ़ता और सुनता है उसे एक हज़ार गायों के दान का पुण्य फल मिलता है।
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