Vijaya Ekadashi ki Vrat Katha kahani -फाल्गुन मास की विजया एकादशी
ये उस समय की बात है जब महाराज युधिष्ठिर इस सम्पूर्ण भारतवर्ष पर राज्य कर रहे थे एक दिन महाराज युधिष्ठिर की भगवान श्री कृष्ण से चर्चा हो रही थी। तभी युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से पूछा- हे वशुदेव फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में कौनसी एकादशी आती है और उसका महात्म्य क्या है? भगवान श्री कृष्ण ने कहा- हे राजन फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम है विजया एकादशी(Vijaya Ekadashi) और इसके विषय में एक समय नारद मुनि ने भी स्वम् ब्रह्मा जी से इसके बारे में जानने की जिज्ञाषा प्रकट की थी जिसके उत्तर में ब्रह्मा जी ने उन्हें इस विजया एकादशी की कथा नारद जी से कही जो इस प्रकार है।
ब्रह्मा जी कहते है हे नादर फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली ये विजया एकादशी अपने नाम के अनुसार ही विजय प्राप्त करने वाली है और इसकी कथा का स्वर्ण सभी पापो का नाश करता है अनेक वर्षो पूर्व जब भगवान राम अपने पिता की आज्ञा अनुसार वनवास गए थे। तब पंचवटी में रावण ने माता सीता का उपहरण कर लिया था। उस समय माता सीता को भाई लक्षण के साथ उन्हें वन वन खोज रहे थे।
ऐसे में उनकी भेट जटायु से और फिर उन्होंने काबन्द राक्षस का वध किया। तत्पश्चात सुग्रीव से मित्रता की वानर सेना एकत्रित करके और सीता माता की खोज में श्री राम ने हनुमान को भेजा तथा कुछ समय बाद ही श्री हनुमान सीता माता का पता लेकर वापस आ गए।
फिर भगवान राम ने लंका पर विजय प्राप्त करने के लिए समुद्र ओर प्रस्थान किया। लेकिन समस्या ये थी की समुद्र को पार कैसे किया जाये इतनी बड़ी सेना के साथ उसी समय लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई से कहा हे भ्राता श्री आप ही आदि देव और पुराण पुरषोतम हो आपसे कुछ भी अज्ञात नहीं है आप ये भी जानते है हम जिस द्वीप पर है उसी स्थान पर महान ऋषि बकदाल्भ्य का आश्रम है। क्यों न हम उन्ही इस इस समस्या का समाधान पूछे?
फिर भगवान श्री राम चंद्र ने लक्ष्मण के बात मान ली और वे श्री बकदाल्भ्य के आश्रम में पहुंचे वहा जाकर उन्होंने ऋषि को प्रणाम किया। श्री राम ने उनसे कहा हे ऋषिवर मै वहा लंका पर चढाई कर दुष्ट रावण का संहार करने आया हूँ, कृपया हमारा मार्ग दर्श करें।
ऋषि बकदाल्भ्य समझ गए थे की यही परम पुरषोतम भगवान है फिर उन्होंने कहा हे प्रभु श्री राम आप तो सर्वज्ञ है फिर भी मैं आपको फिर भी आपकी इच्छा पूर्ति हेतु मैं आपको सभी व्रतों में श्रेष्ट व्रत के बारे में बताऊंगा। जिसका पालन करने से आप निश्चित ही विजय प्राप्त कर पायेंगे और अनंत काल तक आपकी महिमा का गुणगान किया जायेगा।
Vijaya Ekadashi Katha Mahatam-विजया एकादशी का महत्व व्रत विधि
ये व्रत है फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली विजया एकादशी ( Vijaya Ekadashi) का इसका पालन करने से व्यक्ति को हर प्रकार की विजय प्राप्त होती है। इसका पालन करने वाले व्यक्ति को दशमी के दिन सोने या चांदी या तांबे या मिटटी के कलश की स्थापना करनी चाहिए। उसके उपरांत एकादशी के दिन दिन पुष्प माला, चन्दन, सुपारी, नारियल अर्पित करके उस कलश की पूजा करनी चाहिए।
सम्पूर्ण एकादशी में अखंड दीपक जलने से व्रत की सीधी होती है उसे अगले दिन द्वादशी के दिन किसी नदी के किनारे जाकर इस कलश की पूजा करनी चाहिए,और फिर उसे किसी ब्राह्मण को दान चाहिए इस प्रकार व्रत का पालन करने से आपकी विजय अवश्य होगी।
ब्रह्मा जी ने कथा का समापन करते हुए नारद जी से कहा- भगवन श्री राम चंद्र ने ऋषि के कहे अनुसार विजय एकादशी का पालन किया और रावण पर विजय प्राप्त की।
इस सम्पूर्ण कथा को युधिष्ठिर को सुनाने के बाद भगवान् श्री कृष्ण कहते है हे राजन- जो व्यक्ति इस विजया एकादशी ( Vijaya Ekadashi) सुनता या पढ़ता है उसे अश्वमेघ यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है।
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