सदन की भगवान के प्रेम और परम-धाम प्राप्ति की कहानी
श्री जगन्नाथ महाप्रभु के भक्त श्री सदन कसाई: कसाई कुल में जन्मे थे सदन जी उनका दिन भर एक ही काम था मास बेचना मास तोलना दिन भर यही काम करते थे सदन कसाई। एक बार की बात है वह रास्ते से जा रहे थे उन्हें एक गोल पत्थर मिला। सदन कसाई जी ने सोचा ये तो भार तौलने आएगा। वह उस पत्थर को मांस तौलने के लिए अपनी दुकान पर ले आये। और फिर उसी से मास तौलते लेकिन उन्हें ये नहीं पता था वह गोल पत्थर शालिग्राम भगवान है। वह कीर्तन करते हुए मांस तौलते उनकी आँखों से अश्रु पात होता रहता।
जब साधु जी ने भगवान शालिग्राम को सदना जी से मांग लिया
एक बार एक महातमा मुँह पर कपडा रखकर वहा से निकलते जा निकल रहे थे। उन्होंने देखा ये तो शालिग्राम जी है वह तभी बोलते है अरे तुम ये क्या कर रहे हो। बहुत बड़ा पाप है ये तो ये साक्षात् शालिग्राम जी है। सदन जी ने कहा महाराज मुझे गलती हो गई मुझे तो पहचान है नहीं। महात्मा ने कहा लाओ लाओ इन्हे मुझे दो। शालिग्राम ले लिए जाकर महात्मा ने शुद्ध नदियों के जल से स्नान कार्य पंचामृत से स्नान कराया।
इत्र लगाया चन्दन लगाया। चांदी के सिंहासन पर पाथराकर माला पहना दी। ठाकुर जी का कीर्तन किया ख़ीर बनाकर भोग लगाया। भगवान शालिग्राम के सामने खूब रोये महात्मा और बोले नाथ आप भी कहा एक कसाई के यहाँ बैठे थे। अब आप यही प्रेम से विराजो ठाकुर जी विराज गए।
रात्रि को महात्मा के सपने में आये और सपने आते ही बोले की सुनो सुबह होते ही हमको सदन कसाई के पास छोड़कर आओ। महात्मा बोले महाप्रभु मांस बेचता है वो आपको भार की तरह उपयोग करता है एक पलड़े में मांस रखता है दूसरे में आपको, आप क्या करोगे यहाँ जाकर ठाकुर जी कहते है हम जितना कह रहे है उतना करो बस महात्मा बोले नाथ ये तो वेद विरुद्ध शास्त्र विरुद्ध हो जायेगा। मैं आपको कैसे वह छोड़कर आ सकता हूँ।
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मांस बेचने वाले कसाई से क्यों खुश हुए ठाकुर जी
प्रभु आपको वहा क्या सुख मिल रहा है? वो शुद्ध नहीं, पवित्र नहीं, वह स्थान अच्छा नहीं मांस विक्रय करने वाला व्यक्ति महापापी व्यक्ति वहां क्यों जाना है आपको? ठाकुर जी बोले कही पर हमको स्नान करने में सुख मिलता, कही हमको सिंहासन पर बैठने में सुख मिलता, कही भोजन करने में सुख मिलता है।
सदन कसाई के यहाँ हमको लुड़कने में सुख मिलता है। जब वह तराजू से तौलता है तो हम इधर उधर लुड़कते है हमें उसमे बहुत आंनद आता है। हमें तुम वहा छोड़कर आओ उसके पास ही जब सदन कसाई मांस तौलते वक्त अश्रु पात करते हुए कीर्तन गाता है हमें उसमें बहुत सुख मिलता है इस लिए तुम मुझे उसके पास छोड़कर आओ।
सदन कसाई के पास महात्मा वापस आ गए। और आकर शालिग्राम भगवान को सदन को देने लगे सदन बोले महात्मा आप यहाँ क्यों ले आये इन्हे यहाँ तो मांस बेकता हूँ मै बहुत गन्दा स्थान है ये महात्मा बोले धरो इन्हे अपने पास ही ठाकुर जी रात को स्वप्न में आकर कह कर गए। इन्हे तो तुम्हरे संग ही रहना है। ये सुनते ही सदन कसाई जी के हाथ पैर कांपने लगे नेत्रों से अश्रु बहने लगे।
सदन कसाई मन में विचार करने लगे मैं इतना पापी इतना गन्दा इंसान और ये ठाकुर जी मुझसे मिलने के लिए मेरे पास चले आये। क्या मैं इनके लिए इतना भी नहीं कर सकता की ये दूषित काम ना करूँ। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा भोजन ही तो नहीं मिलेगा मुझे धन ही तो नहीं कमा पाऊँगा। लेकिन इस से बढ़ कर ओर क्या चाहिए की ठाकुर जी मुझसे मिलने के लिए व्याकुल हो रहे है।
उसी समय सदन कसाई जी ने अपनी दुकान बेच दी, सब काम बंद कर दिए। अब बस अपने ठाकुर जी के लिए जीवन जीने लगे। आप मुझसे मिलने के लिए तड़प रहे थे अब मैं तड़पूँगा आपसे मिलने के लिए मैं आऊंगा आपसे मिलने के लिए और निकल पड़े सदन कसाई जगन्नाथपुरी की ओर पूछा लोगो से कहा है पूरी लोगों ने दिशा बताई और फिर चल दिए सदन पूरी की ओर।
मार्ग पर चलते हुए संध्या के समय, सदन जी एक गाँव में एक गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए पहुंचे। घर में दो व्यक्ति थे, एक पुरुष और उसकी स्त्री। स्त्री सदन जी के उस स्वस्थ, सुंदर, और सबल पुरुष पर मोहित हो गई। आधी रात के समय, सदन जी के पास गई और अनेक प्रकार की अशिष्ट चेष्टाएँ चाहने लगी। देखकर, सदन जी ने हाथ जोड़कर कहा, “तुम मेरी माँ हो ! अपने बच्चे की परीक्षा मत लो, माँ ! मुझे तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए। तुम्हारे पति होते हुए तुम किसी और पुरुष पर दृष्टि रखती हो माँ ये ठीक है।
उस महिला ने ये समझा लिया कि उसके पति के डर से ये संत उसकी बात नहीं मानेंगे। उसने वहाँ जाकर एक तलवार ली और अपने पति सोते हुए पति के सिर को काट दिया। फिर सदन जी के पास जाकर बोली, “प्यारे, अब तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है। मैंने अपने पति के सिर को काट दिया है। अब तुम मेरी बात मानो।” सदन डर से काँप उठे। और कहने लगे दुष्ट औरत, तूने अपने पति को मार डाला अपनी वासना के लिए तू मेरी माँ के सामान है। तेरी सोच कभी सच नहीं होगी वह जब और महिला को लगा अब मेरी बात ये नहीं मानेगा तो वह द्वारपर आकर छाती पीटने लगी और रोने लगी।
लोग उसका रोना सुनकर एकत्र हो गए। उस औरत ने कहा – ‘इस यात्री ने मेरे पति को मार दिया है और यह मेरे साथ गलत चेष्टा करने की कोशिश कर रहा था।’ उस औरत ने भक्तसदन को कई तरह से बदनाम किया, कुछ लोगो ने उसे मारा भी; लेकिन सदन ने कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया। मामला वहा के राजा के पास के पास पहुँचा। सदन वास्तविकता में अपने प्रभु की लीला देख रहे थे, इसलिए अपराध न करने पर भी अपराध स्वीकार कर लिया।
जब सदन कसाई के हाथ कट गये
राजा के आदेश के बाद, उनके दोनों हाथों को काट दिया गया। सदना के हाथ कट गए, और रक्त की धारा बहने लगी; वे इसे अपने प्रभु की कृपा मानते हैं। उनके मन में भगवान के प्रति कोई भी रोष नहीं आया। भगवान के सच्चे भक्त इस तरह के दुख को भी अपने स्वामी की दया मानते हैं। भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए, सदन जगन्नाथपुरी की ओर बढ़ गए।
श्री जगन्नाथ जी ने सदना जी के लिए पुजारी द्वारा पालकी भेजी
वहां पुरी में भगवान ने पुजारी को सपने में आदेश दिया – ‘मेरा भक्त सदन मेरे पास आ रहा है, उसके हाथ कट गए हैं।’ पालकी लेकर जाओ और उसे आदर पूर्वक ले आओ। पुजारी पालकी लिवा कर गये और आग्रह पूर्वक भक्तसदन को उस में बैठाकर ले आये। सदन ने जैसे ही श्री जगन्नाथ जी को दण्डवत् करके की लिये भुजाएँ उठाई, उनके दोनों हाथ पूर्ववत् ठीक हो गये।
सदन ने भगवान की असीम कृपा का अनुभव किया। वह भगवत प्रेम में पूरी तरह से लीन हो गए। बहुत समय तक, वह भगवान के गुणों की प्रशंसा करने, उनके नाम का कीर्तन करने और उनके ध्यान में मग्न रहे। फिर उन्होंने पुरुषोत्तम क्षेत्र में निवास किया और अंत में श्री जगन्नाथ जी के पादों में अपने शरीर को त्याग दिया और वे परम-धाम में पहुंच गए।
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