गणेश चतुर्थी: पूजा विधि और धार्मिक महत्व
गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरया: हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्ल चतुर्थी को हर वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार भक्ति, आस्था, और उल्लास का प्रतीक है। गणेश पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र श्री गणेश का आविर्भाव इसी दिन हुआ था। वे सभी विघ्नों को हरने वाले और कृपा के सागर माने जाते हैं। इसलिए, उन्हें विघ्नहर्ता के रूप में पूजा जाता है।
गणेश चतुर्थी पूरे भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाई जाती है, लेकिन महाराष्ट्र में इस पर्व का विशेष महत्व है। भारत में करोड़ों लोग इस पर्व को मनाते हैं, जहां 10 दिनों तक गणपति बप्पा की पूजा-अर्चना की जाती है और अंतिम 11वें दिन, अनंत चतुर्दशी पर गणेश प्रतिमा का विसर्जन किया जाता है। इस त्योहार की गहराई न केवल धार्मिक है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी इसका विशेष महत्व है।
गणेश चतुर्थी पूजा विधि घर में गणेश की प्रतिमा स्थापित करके 10 दिनों तक पूजा की जाती है दीपक जलाया जाता है और पुष्प, फल अर्पित किये जाते हैं। गणेश मंत्रों का जाप और गणेश चालीसा का पाठ किया जाता है। पूजा के बाद प्रसाद का वितरण किया जाता है। मोदक, लड्डू और दूर्वा घास को गणपति को अर्पित किया जाता है। इस दौरान दैनिक पूजन, आरती, मंत्रोच्चारण और प्रसाद वितरण किया जाता है।
भगवान गणेश: प्रथम पूजनीय और माता-पिता के प्रति भक्ति की कथा
शास्त्रों और आचार्यों के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य का आरंभ भगवान श्री गणेश की पूजा से ही होता है। चाहे वह गृह प्रवेश हो, विवाह का शुभ अवसर हो, नामकरण संस्कार हो या फिर गर्भाधान संस्कार—हर मंगल कार्य में सबसे पहले गणेश जी की आराधना की जाती है। इसका कारण यह है कि भगवान गणेश को बुद्धि और विवेक के देवता माना जाता है, और वे सभी विघ्नों को हरने वाले हैं। इसीलिए उन्हें प्रथम पूजनीय कहा जाता है।
गणेश जी को प्रथम पूजनीय बनाने के पीछे एक प्रचलित पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, एक दिन भगवान शिव ने गणेश जी और उनके भाई कार्तिकेय को पृथ्वी की परिक्रमा लगाने का आदेश दिया। कार्तिकेय जी तुरंत अपने वाहन मयूर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े, जबकि गणेश जी ने अपने माता-पिता भगवान शिव और माता पार्वती की ही परिक्रमा लगाई। तब शंकर जी और माता की एक परिक्रमा लगाने से उन्हें संपूर्ण ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाने प्राप्त हो गया। माता पिता की सेवा करने का सिद्धांत हमें भगवान गणेश जी देते है। इसलिए वो प्रथम पूजनीय
गणेश जी का यह कार्य माता-पिता के प्रति उनकी असीम भक्ति और सम्मान को दर्शाता है। इसी सिद्धांत के कारण वे हमें यह शिक्षा देते हैं कि माता-पिता की सेवा और सम्मान सर्वोपरि है। इस अद्भुत ज्ञान और भक्ति के कारण ही भगवान गणेश को हर शुभ कार्य में सबसे पहले पूजा जाता है।
श्री गणेश के द्वादश नाम
पद्म पुराण के अनुसार श्री गणेश के द्वादश नामों का वर्णन है। जैसे गणपति अर्थात शिव जी के गणो में प्रधान इनका एक नाम है विनायक जिसका अर्थ है जो ज्ञान के भंडार है इनका एक नाम है विध्नेश्वर संसार के सभी विध्नों को हरने वाले तथा के नाम है गजानंद क्योकि इनका मस्तक हाथी का है और नाम जैसे सुमुख – सुंदर मुख वाले, एकदंत – एक दांत वाले, कपिल – पीतवर्ण वाले, गजकर्णक – हाथी के कान वाले, लंबोदर – बड़े पेट वाले, विकट, धूम्रकेतु, भालचंद्र आदि।
गणेश चतुर्थी: महत्वपूर्ण गणेश मंत्र: गणेश चतुर्थी पर लोग गणेश मंत्र “वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि सम्प्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।” का जाप करते हैं। यह मंत्र गणेश जी की महिमा को व्यक्त करता है और उनकी कृपा मांगता है, जिससे सभी कार्यों में बाधाएं दूर हों और सफलता मिले।
गणेश चतुर्थी की पौराणिक कथा
भगवान श्री गणेश की जन्म कथा और उनकी पूजा की प्रथा को समझने के लिए हम पौराणिक कहानियों का सहारा लेते हैं। शिवपुराण के अनुसार, माता पार्वती ने स्नान से पहले अपनी मैल से एक बालक को जन्म दिया और उसे अपना द्वार पाल बना दिया। जब शिव प्रवेश करना चाहते थे, तो बालक ने उन्हें रोक दिया।
शिव और गणों ने बालक से लड़ाई की, लेकिन कोई उसे हरा नहीं सका। अंततः शिवजी ने क्रोधित होकर बालक का सिर काट दिया। पार्वती ने इस से नाराज होकर प्रलय करने की सोची।
देवताओं ने नारद की सलाह से पार्वती की स्तुति की और उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर, भगवान विष्णु ने हाथी का सिर काटकर बालक के धड़ पर रख दिया और उसे जीवित कर दिया।
गणेश चतुर्थी मनाने की दूसरी कथा
ब्रह्म वरव पुराण के अनुसार शिव जी के बड़े पुत्र के रूप में कार्तिकय जी का प्राक्ट्य हुआ इनका प्राकट्य पार्वती माता के गर्भ से नहीं अपितु भगवान शिव के तेज़ से हुआ था इस लिए उनका झुकवा माता की ओर ज्यादा न होकर पिता की और था। इसी कारण वश माता पार्वती ने अपने वातसल्य भाव को पूर्ण करने हेतु सुन्दर पुत्र कामना करते हुए।
पुण्य व्रत किया ये व्रत भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के गया था। फिर कई वर्षो बाद श्री कृष्ण प्रसन्न हुए और माता पार्वती सामने प्रकट हुए। श्री कृष्ण बोले देवी में आपके इस कठोर व्रत पालन से प्रसन्न हुआ हूँ आप कोई भी वरदान मांग है माता ने भगवान से कहा प्रभु मुझे वैसे तो अभिलाषा किन्तु सामान पुत्र चाहिए जिससे में अपना वात्सल्य भाव प्रकट कर सकूँ। श्री कृष्ण ने अति प्रसन्न होकर तथा अस्तु कर वरदान दे दिया।
तत पश्चात् भगवान भगवान को समझ आया इस जगत में ना तो मेरे कोई ऊपर है न कोई मेरे तुल्य है इसका समाधान करते हुए भगवान ने स्वम् पुत्र रूप में माता पार्वती के यहाँ जन्म लेने का निश्चय किया और स्वम् गणेश रूप में प्रकट हो गए।
गणेश चतुर्थी के दिन चाँद नहीं देखना चाहिए
पुराणिक कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी के दिन चाँद नहीं देखना चाहिए इसकी कथा कुछ इस प्रकार है – एक बार गणेश देवताओ की सभा में आ रहे थे चूँकि गणेश जी का स्वरुप विशाल है इसलिए उनका एक नाम लंबोदर है किन्तु उनका सुन्दर्यै अकल्पनीय है सभा में आ रहे थे और उनका पैर फिसल गया गिर गए। तभी चंद्र देव ने हसंकर उनका खूब मज़ाक उड़ा दिया। भगवान गणेश जी जैसे महान देवता का मज़ाक बनाना घोर अपराध है चंद्र देवता श्राप मिला की गणेश चतुर्थी के दिन जो भी चंद्र दर्शन करेंगा। वह अंगिनत पापों का भागीदार बन जायेगा। गणेश जी के असीम कृपा आप पर हो ऐसी शुभकामनाये गणपति बप्पा मोरिया, मंगल मूर्ति मोरया!
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गणेश चतुर्थी क्या है और यह कब मनाया जाता है?
गणेश चतुर्थी हिंदू त्योहारों में एक प्रमुख है, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। यह भगवान गणेश के जन्मदिन को चिह्नित करता है।
गणेश चतुर्थी का क्या महत्व है?
गणेश जी को विघ्नहर्ता और ज्ञान के देवता माना जाता है। इसलिए, गणेश चतुर्थी का त्योहार बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन कोई भी मांगलिक कार्य शुरू करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है।
गणेश चतुर्थी पर पूजा का तरीका क्या है?
घर में गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती है और 10 दिनों तक पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा में दीपक जलाया जाता है, पुष्प और फल अर्पित किये जाते हैं, और गणेश मंत्रों का जाप किया जाता है। इसके बाद, गणेश चालीसा का पाठ किया जाता है और आरती की जाती है।
गणेश जी की आराधना का क्या महत्व है?
गणेश जी को विघ्नहर्ता, बुद्धि के दाता और समृद्धि के अग्रदूत माना जाता है। किसी भी मांगलिक कार्य में सबसे पहले गणेश जी को पूजा जाता है। वे शुभारंभ के देवता हैं। गणेश जी की कृपा से सभी संकट और विघ्न दूर होते हैं और सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
गणेश चतुर्थी के दिन चाँद नहीं देखना चाहिए?
एक बार गणेश जी देवताओं की सभा में आ रहे थे। उनका स्वरूप विशाल है, इसलिए उन्हें लंबोदर कहा जाता है, एक बार गणेश देवताओ की सभा में आ रहे थे रास्ते में उनका पैर फिसल गया, जिससे चंद्र देव ने हंसकर उनका मज़ाक उड़ाया। इस अपराध के कारण चंद्र देव को श्राप मिला कि गणेश चतुर्थी के दिन जो भी चंद्र दर्शन करेगा, वह पाप का भागी बनेगा।