“नवरात्रि की शुरुआत शैलपुत्री माता की विशेष विधिपूजन: Shailputri Mata”
Shailputri Mata Navratri ki katha: नवरात्रि के पहले दिन प्रातःकाल उठकर स्नान करें तथा स्वच्छ वस्त्र धारण करें पूजा घर में एक चौकी सजाये उस पर लाल कपडा बिछाकर उस चौकी पर माँ शैलपुत्री को विराजमान करें और कलश स्थापित करें कलश पर स्वस्तिक बनाकर आम के पते लगाकर नारियल रखे माँ शैलपुत्री को फूलों की माँ समर्पित कर दीप, धुप, कपूर प्रज्जावलित करें माता शैलपुत्री का पूजन करे और कथा पढ़े ऐसा ही पूजन रात्रि में भी करें और माता का ध्यान करें
शैलपुत्री माता नवरात्रि की कथा महत्व – Shailputri Mata: First Day Katha of Navratri
नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के रूप शैलपुत्री (Shailputri ) माता की पूजा की जाती है पर्वत राज हिमालय के यहाँ पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री कहा गया इनका वाहन वृषभ है माँ शैलपुत्री ने दाईं हाथ में त्रिशूल धारण किया है और बांय हाथ में कमल धारण किया है ये नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा है माता शैलपुत्री को सती के नाम से भी जाना जाता है
माता शैलपुत्री (Shailputri ) की कथा इस प्रकार है एक बार प्रजपति दक्ष ने बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया उसमे उन्होंने सभी देवी देवताओ को आमंत्रण दिया किन्तु सती माता भगवान शिव को आमंत्रण नहीं दिया जब सटी को इस विषय में ज्ञात हुआ की उनके पिता अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे है उनका मन वहाँ जाने के लिए बेचैन हो गयी
उन्होंने भगवान शिव को अपने पिता के द्वारा कराये गए आयोजन के बारे में बताया सभी बात सुनाने के बाद भगवान शिव ने देवी सती से कहा देवी दक्ष प्रजापति ने हमें उनके द्वारा किये यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया इस लिए तुम्हे वहां नहीं जाना चाहिए
भगवान शिव के इन वचनों को सुन माता सती दुखी हो गई पता के यज्ञ में शामिल होने और वह जाकर अपनी माता और बहनो से मिलने के लिए उनका मन लालयित था भगवान शिव के समझने पाए भी बार बार पिता के घर जाने के लिए आग्रह करने पर महादेव ने देवी सती को जाने की आज्ञा दे दी
फिर तुरंत ही देवी सती अपने पिता के घर पहुंच गयी और उन्होंने वहां जाकर देखा उनकी माता को छोड़कर सभी ने उनसे मुख फेर रखा है और उनके पिता दक्ष ने भी भगवान शिव को भरी सभा में बहुत भला बुरा कहा इस अपमान को माता सती सहन न कर पाई तभी उन्होंने यज्ञ की अग्नि में कूद कर खुद को भस्म कर दिया
इस प्रकार माता सती ने अपना अगला जन्म पर्वतराज हिमायल के घर में लिया इस बार वे शैलपुत्री के नाम से विख्यात हुई इन्हे पार्वती और हेमवती भी माँ शैलपुत्री (Shailputri ) के ही नाम है माता शैलपुत्री की विधिवत पूजा एवं कथा पढ़ने और सुनाने मात्र से दांपत्य जीवन सुखी रहता है और घर में समृद्धि आती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा करने से चंद्रमा से संबंधित सभी प्रकार के दोष दूर हो जाते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जीवन में उत्साह और उन्नति का विकास होता है
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